जब सत्‍ता में नहीं रह सकते तो पार्टी में कैसे रह सकते हैं?

तमिलनाडु में जो कुछ हुआ और जो कुछ हो रहा है, वह नया तो नहीं हैं लेकिन हमारे राजनीतिक सिस्‍टम पर विचार करने की कई दिशाएं जरूर देता है। और चूंकि हम इंडिया यानी भारत के लोग सिर्फ विचार ही कर सकते हैं इसलिए तमिलनाडु की घटनाओं ने जो दिशाएं दिखाई हैं उन पर भी विचार कर लिया जाए तो क्‍या हर्ज है…

सुप्रीम कोर्ट के फैसले के कारण जयललिता की सहेली शशिकला को सीएम हाउस जाने के बजाय जेल जाना पड़ा। आय से अधिक संपत्ति के मामले में शशिकला को जो सजा हुई है उसके कारण वे कई साल तक चुनाव नहीं लड़ पाएंगी और इसीलिए इस सजा को उनके राजनीति कॅरियर के खात्‍मे के रूप में भी देखा जा रहा है। लेकिन अन्‍नाद्रमुक एक पार्टी के रूप में जैसा आचरण कर रही है क्‍या उससे लगता है कि शशिकला का कॅरियर खत्‍म हो गया?

इस घटनाक्रम का सबसे बड़ा सवाल ही यह है कि यदि कोई राजनीतिक दल चुनाव आयोग के साथ पंजीकृत है तो क्‍या उसे यह आजादी मिलनी चाहिए कि एक दागी या सजायाफ्ता व्‍यक्ति उसका अध्‍यक्ष रह सके? यह हमने बिहार में भी देखा था और अब तमिलनाडु में देख रहे हैं।

जिस तरह सजा पाने के बाद शशिकला मुख्‍यमंत्री पद की शपथ नहीं ले सकतीं, उसी तरह ऐसा प्रावधान क्‍यों नहीं होना चाहिए कि यदि किसी राजनीतिक दल के मुखिया या अन्‍य पदाधिकारी को सजा होती है तो वह सरकारी या संवैधानिक पदों के साथ साथ पार्टी में भी किसी पद पर नहीं रह सकता।

जब हम राजनीति में नैतिकता और शुचिता की बात करते हैं तो आपराधिक मामलों में दोषी पाए जाने पर संबंधित व्‍यक्ति की दलगत हैसियत को भी कायदे कानून के  दायरे में क्‍यों नहीं लाया जाना चाहिए? यदि ऐसा नहीं होता तो यह क्‍यों न माना जाए कि वर्तमान स्थितियां राजनीतिक पार्टियों को भी जेल से चलाए जाने की उसी तरह छूट देती हैं जिस तरह कोई गैंगस्‍टर जेल से अपना गैंग चलाता है।

तमिलनाडु में पूर्व मुख्‍यमंत्री पन्नीरसेल्वम के गुट ने चुनाव आयोग के सामने शशिकला के खिलाफ जो याचिका लगाई है, हालांकि उसमें यह आधार तो नहीं लिया गया है लेकिन फिर भी उसमें जयललिता के निधन के बाद पार्टी महासचिव चुनाव की प्रक्रिया को चुनौती देते हुए मांग की गई है कि चुनाव में पार्टी संविधान का पालन नहीं किया गया इसलिए शशिकला द्वारा लिए गए तमाम फैसले और नियुक्तियां रद्द की जाएं।

मेरे विचार से आयोग के समक्ष सुनवाई के दौरान पन्‍नीरसेल्‍वम गुट यदि शशिकला को आपराधिक मामले में हुई सजा को भी आधार बनाते हुए उन पर कार्रवाई की मांग करे तो यह मामला समूचे राजनीतिक परिदृश्‍य के लिए नजीर बन सकता है।

देश में क्षेत्रीय पार्टियों की संख्‍या और समग्र राजनीति में उनका दखल जिस तरह से बढ़ रहा है, उसे देखते हुए भी यह जरूरी है कि जो कानून कायदे सत्‍ता संचालन संबंधी पदों या संसद अथवा विधानसभाओं की सदस्‍यता के सिलसिले में लागू होते हैं, वे ही पार्टियों के भीतर भी लागू हों।

हाल ही में केंद्र सरकार ने चुनावी चंदे में पारदर्शिता लाने के लिए 20 हजार रुपए तक की नकद रकम लेने के प्रावधान को संशोधित कर उसे सिर्फ दो हजार रुपए तक सीमित कर दिया है। प्रधानमंत्री ने संसद में कहा भी है कि सरकार चुनाव सुधार और राजनीतिक दलों की कार्यप्रणाली को जवाबदेह बनाने के लिए काम करेगी। ऐसे में यदि आपराधिक मामलों में सजा पाने वाले पदाधिकारियों के पद भी स्‍वत: ही खत्‍म हो जाने की व्‍यवस्‍था हो तो दलों के भीतर आपराधिक प्रवृत्ति के लोगों का वर्चस्‍व बनने और बढ़ने से रोका जा सकता है।

मेरा तो मानना है कि ऐसे मामलों में न केवल व्‍यक्ति का पार्टी पद समाप्‍त होना चाहिए बल्कि जिस तरह उसे छह साल की अवधि तक चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाता है उसी तरह पार्टी में भी उसे किसी भी पद पर छह साल की अवधि तक कोई नियुक्ति न दिए जाने का प्रावधान होना चाहिए।

ऐसा होने पर शशिकला जैसे लोग अपराध सिद्ध होने या सजा पा जाने के बाद भी सत्‍ता के सूत्रधार नहीं बने रह सकेंगे। शशिकला के मामले में तो यह हुआ है कि उन्‍हें तमिलनाडु के बजाय कर्नाटक की जेल में रखा गया है। वरना कल्‍पना कीजिये, यदि किसी पार्टी की, किसी राज्‍य में सरकार हो और उस पार्टी का अध्‍यक्ष या सर्वेसर्वा आपराधिक मामले में जेल चला जाए तो क्‍या सरकार एक सजायाफ्ता व्‍यक्ति के निर्देश पर जेल से नहीं चलेगी?

ऐसी स्थिति में कानून के राज की अवधारणा का क्‍या होगा? क्‍या उस राज्‍य की सरकार एक अपराधी नहीं चला रहा होगा? तमिलनाडु में होना तो यह चाहिए था कि पन्‍नीरसेल्‍वम को पार्टी से निकालने के बजाय पार्टी के लोग शशिकला को बाहर का रास्‍ता दिखाते। फिर भले ही वे पन्‍नीर को नेता चुनते या पलानी को,लेकिन कहने को तो होता कि पार्टी में रीढ़ भी है और नैतिक साहस भी। लेकिन पहले जयललिता के सामने दंडवत लोग, अब शशिकला के चरणों में पड़े हैं।

शरणम् गच्‍छामि वाली यह मुद्रा न तो पार्टियों का भला करने वाली है और न देश का।

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