शिक्षा सुधार और देश की नई शिक्षा नीति पर मैंने कल अपने इसी कॉलम में जो बात उठाई थी उस पर कई लोगों के कमेंट्स मिले हैं। लेकिन एक पाठक की प्रतिक्रिया बड़ी मजेदार थी। वे बोले- ‘’पता नहीं आप किस दुनिया में जी रहे हैं। देश जिस समय सर्जिकल स्ट्राइक, राम मंदिर, चीनी माल, उत्तरप्रदेश चुनाव,मध्यप्रदेश भाजपा में घमासान जैसे मुद्दों पर बात कर रहा है उस समय आप ये शिक्षा नीति कहां से उठा लाए…’’
जमाने के चलन के हिसाब से पाठक की बात सोलह आने सही थी। लेकिन मुझे लगता है कि राजमार्ग से हटकर कभी पगडंडी की बात भी करनी चाहिए। और शिक्षा का मामला तो पगडंडी नहीं बल्कि देश के राजमार्ग की दिशा तय करने वाला है। शिक्षा के मामले पर देश में सबसे ज्यादा विमर्श किए जाने की जरूरत है। मामला इसलिए भी संगीन है क्योंकि नई शिक्षा नीति के लिए गठित सुब्रमण्यन कमेटी की रिपोर्ट को पूरी तरह सार्वजनिक नहीं किया गया है। आज मैं इस रिपोर्ट के कुछ खास बिंदु अपने पाठकों से शेयर कर रहा हूं। ये बिंदु बताते हैं कि देश की शिक्षा का ढांचा आने वाले दिनों में क्या स्वरूप लेने वाला है। कमेटी ने कहा है कि-
– देश में अखिल भारतीय सेवा के रूप में भारतीय शिक्षा सेवा का गठन हो। इसके तहत आने वाले अधिकारी संबंधित राज्य में ही काम करें, लेकिन उस कैडर को एक प्राधिकरण के जरिए नियंत्रित किया जाए जो मानव संसाधन विकास मंत्रालय के अधीन हो।
– शिक्षा के लिए देश के जीडीपी की कम से कम 6 प्रतिशत राशि का अविलंब आवंटन किया जाए।
– वर्तमान बीएड पाठ्यक्रमों में उन्हीं लोगों को प्रवेश दिया जाए जो स्नातक स्तर पर न्यूनतम 50 प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण हुए हों। शिक्षकों की भरती के लिए शिक्षक प्रवेश परीक्षा अनिवार्य की जाए। इस परीक्षा के लिए योग्यता के साथ साथ अन्य नियम आदि, राज्य व केंद्र सरकार मिलकर तय करें।
– सरकारी और निजी स्कूलों के शिक्षकों के लिए लायसेंस या प्रमाण पत्र अनिवार्य किया जाए, यह लायसेंस दस साल के लिए हो और एक स्वतंत्र बाहरी परीक्षण में खरा उतरने के बाद इसका नवीनीकरण किया जाए।
– 4 से 5 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए स्कूल पूर्व शिक्षा को बच्चों का अधिकार घोषित किया जाए और इसके लिए तत्काल एक योजना आरंभ हो।
– पांचवीं कक्षा तक (11 साल की उम्र वाले बच्चों को) अगली क्लास में क्रमोन्नत किए जाने से न रोकने की नीति जारी रखी जाए। उच्च प्राथमिक कक्षाओं में बच्चों को परीक्षा उत्तीर्ण करने की व्यवस्था भी इस शर्त के साथ लागू हो कि बच्चे को क्षमता में सुधार के लिए विशेष कोचिंग देने के साथ ही अगली कक्षा में क्रमोन्नत होने के दो मौके अतिरिक्त रूप से दिए जाएंगे।
– परीक्षा व्यवस्था को लचीला बनाने और छात्रों एवं उनके अभिभावकों पर पड़ने वाले मानसिक दबाव व तनाव को कम करने के लिए बोर्ड की परीक्षाएं ऑन डिमांड आयोजित करने की व्यवस्था हो। किसी भी स्कूल या बोर्ड से 12 वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करने वाले सभी छात्रों के लिए अखिल भारतीय स्तर का एक टेस्ट डिजाइन किया जाए।
– मध्याह्न भोजन कार्यक्रम का विस्तार करते हुए उसके दायरे में सेकण्डरी स्कूलों को भी लाया जाए। ऐसा करना इसलिए जरूरी है क्योंकि किशोर वय के बच्चों में भी कुपोषण और खून की कमी आम बात है।
– उच्च शिक्षा प्रबंधन के लिए अलग से एक कानून बनाया जाए और यूजीसी एक्ट को स्वत: समाप्त होने दिया जाए। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के भारी भरकम स्वरूप को छोटा कर उसकी भूमिका छात्रवृत्ति एवं शोधवृत्ति वितरण तक सीमित रखी जाए।
– दुनिया के टॉप 200 विश्वविद्यालयों को भारत में अपने कैंपस खोलने की इजाजत दी जाए और इनकी डिग्री की पूरी मान्यता एवं स्वीकार्यता हो।
देश के शिक्षा जगत का भविष्य तय करने वाली ऐसी कई सिफारिशों को समेटे यह रिपोर्ट मोदी सरकार के पास लंबित पड़ी है। कमेटी के अध्यक्ष, पूर्व केबिनेट सचिव टीएसआर सुब्रमण्यन का यह कहना महत्वपूर्ण है कि- ‘’मुझे पता नहीं कि हमसे यह अपेक्षा थी कि हम व्यवस्था कि प्रशंसा करेंगे। हमने तो थोक में वर्तमान व्यवस्था की आलोचना की है। हमारी रिपोर्ट को पूरी तरह सार्वजनिक न करते हुए उसके कुछ अंश ही जारी करने के पीछे मुख्य कारण यह हो सकता है कि यह आलोचना जनता के सामने न आए। लेकिन दुर्भाग्य से वर्तमान व्यवस्था में प्रशंसा करने लायक कुछ है ही नहीं। हमने वास्तविकता का आईना दिखाया है। इसका किसी ‘ए’ या ‘बी’ से कोई संबंध नहीं है यह तो पिछले 70 सालों के ‘अशासन’ की कहानी है।’’
यानी सुब्रमण्यन कमेटी की रिपोर्ट देश की बुनियाद के खोखला होने अंतर्कथा है। आप ही बताइए, क्या यह कथा देश के सामने नही बांची जानी चाहिए, क्या इस पर विमर्श नहीं होना चाहिए?