दो परम मित्रों के बीच बातचीत, पहला- ‘’गुरु अपन तो बड़े नीच और कमीने हैं’’, दूसरे ने फौरन कहा- ‘’हां यार मैं जानता हूं, कमीनेपन में तो तुम्हारा कोई मुकाबला नहीं।‘’ दोनों दोस्त एक दूसरे पर प्यार उड़ेल रहे हैं। यहां पर गुरु और अपन जबलपुर का स्टाइल है, लेकिन बाकी बातचीत किसी भी शहर की हो सकती है।
मेरा सवाल है कि खुद को गाली देना और नीच साबित करना किसी तरह से खुद की तारीफ हो सकती है क्या? मेरे ख्याल से नहीं लेकिन कुछ लोग इसे अपनी खूबी मानते हैं। आमतौर पर ये भाषा शारीरिक और मानसिक तौर पर कमजोर लोग इस्तेमाल करते हैं। दरअसल ये गालियां उस दुश्मन को डराने के लिए बोली जा रही हैं जो मौका-ए-वारदात पर मौजूद नहीं है। ये भी तय है कि वो बहुत शक्तिशाली है, इसलिए ये दो दोस्त उसका सामना नहीं कर पाते, इसलिए पीठ पीछे खुद को खतरनाक साबित करने की कोशिश कर रहे हैं, दूसरा साथी भी डरपोक होने की वजह से दिलासा दिला रहा है कि हां गुरु कमीनेपन में तुम बहुत आगे हो।
इस तरह की चेतावनी आमतौर पर आप और हम कभी भी सुन सकते हैं, दफ्तर में बॉस का सामना ना कर पाने वाले लोग अक्सर पीठ पीछे कहते हैं कि किसी दिन मेरा दिमाग खराब हो गया तो देखना। ये किसी दिन कभी नहीं आता, क्योंकि ऐसे लोगों का कॉन्फिडेंस जमीन से चिपककर चलता है। मजबूत दुश्मनों को अक्सर इसी तरह पीठ पीछे डराने की कोशिश की जाती है। मजे की बात ये है कि इस बात की भी गारंटी रखी जाती है कि दुश्मन तक अगर बात पहुंच ही जाए तो Dilute हो जाए और मामला बिगड़े तो U- Turn की गुंजाइश रहे।
मुझे लोगों की मानसिकता और मनोविज्ञान पढ़ना बड़ा रोचक लगता है, इसलिए अक्सर मैं ऐसे लोगों को बहुत ध्यानपूर्वक सुना और गुना करता हूं। साथ ही खुद को खतरनाक बताने की इनकी धमकी का असर देखने की कोशिश भी करता हूं।
पिछले एक पोस्ट (बलूचिस्तान वाले) में मैंने अपने मित्र अभय तोमर का बताया हुआ एक वाकया सुनाया था कि कैसे बाहर से दरवाजा बंद करके कुछ लोग अपने दुश्मन को बाहर आने की चुनौती दे रहे थे। वही अक्सर होता है, चेतावनी देने वाले ठीक ठाक खोखले होते हैं।
फेसबुक में भी इसी तरह की खोखली धमकी देने वालों की प्रजाति बहुत तेजी से बढ़ रही है। ये लोग जानते हैं कि पर्दे के पीछे होने की वजह से उन पर सीधे कोई आंच नहीं आ सकती। इसलिए जब लिखे का जवाब नहीं दे पाते तो अक्सर फ्रेंड लिस्ट से हटाने की धमकी दे डालते हैं। या फिर खुद को नीच और बदमाश बताने की भी कोशिश करते हैं।
मैंने आज एक पोस्ट देखा जो मेरी फ्रेंड लिस्ट में तो नहीं है, लेकिन पता नहीं किससे चिढ़कर गंदी गालियां लिखे जा रहा था। ये आदमी अपने आपको प्रधानमंत्री का कट्टर समर्थक बताता है। लेकिन बहुत कमजोर है, तभी तो फेसबुक को गंदा करने में लगा हुआ है। जब उसके किसी मित्र ने कमेंट किया कि गुरु पहली बार आपका ये रूप देखा, शायद वो दोस्त की इस हरकत पर हैरान था। पर इस दुर्जन ने उससे पलटकर कहा मैं इससे भी ज्यादा नीच प्रवृत्ति का हूं और गंदगी फैला सकता हूं फेसबुक पर।
वो किसी अज्ञात दुश्मन को धमकी देते हुए ये सब लिख रहा था, लेकिन उसकी हिम्मत उस व्यक्ति को सीधे चुनौती देने की नहीं पड़ रही थी। हालांकि तीन चार घंटे बाद घबराकर शायद पोस्ट हटा लिया गया।
मेरे इस लंबे चौड़े पोस्ट का मकसद ये कहना है कि अगर आपके भी ऐसे दोस्त हों तो उन्हें Encourage मत कीजिए। ये बीमार लोग हैं, ऐसे में बीमारी और बढ़ जाएगी। ऐसे लोगों को दुत्कारना ही सबसे अच्छा इलाज है। ये भी एक तरह का स्वच्छता अभियान है, इसमें सहयोग कीजिए।
(अरुण पांडे की फेसबुक वॉल से)