माँ-बाप ने ठुकराया तो वह बन गई पूरे शहर की बेटी

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जय नागड़ा

मोना को बदकिस्मत कहें या खुशकिस्मत तय करना कठिन है। मात्र 4 वर्ष की उम्र में जिस बालिका के माँ-बाप ने उसे खण्डवा रेल्वे स्टेशन पर लावारिस छोड़ दिया उसकी शादी में पूरा शहर उमड़ा। किसी ने उसके माता-पिता के रूप में कन्यादान किया तो किसी ने भाई की भूमिका निभाकर उसे अग्नि के सात फेरे दिलाए। खंडवा शहर के तमाम प्रतिष्ठित नागरिक, कलेक्टर, एसपी, जनप्रतिनिधि उसे आशीर्वाद देने पहुंचे। जब मोना अबोध थी तब अनाथ आश्रम ने उसका हाथ थामा और अब नए जीवन की दहलीज़ पर एक ऐसे आदर्शवादी नवयुवक ने उसका हाथ थामा जो समृद्ध भरे-पूरे परिवार से है।

आज से पन्द्रह वर्ष पूर्व जीआरपी पुलिस के एक जवान ने खण्डवा रेलवे स्टेशन पर एक रोती-बिलखती बच्ची को अपने माँ-बाप के लिए परेशान होते देखा। उसने बच्ची को चुप कराने के लिए हर जतन किये, उसके परिजनों को खोजने की हर संभव कोशिश की लेकिन नतीजा सिफर रहा। बच्ची इतनी छोटी थी कि वह अपने नाम के अलावा अपने माता-पिता का नाम और पता भी बताने में समर्थ नहीं थी। जीआरपी थाने से उसे एसडीएम ऑफिस भेजा गया, वहां से उसे अनाथ आश्रम भेजा गया, जिसे हिन्दू बाल सेवा सदन के नाम से जाना जाता है। मोना जब इस आश्रम में आई थी तब आँखों में आंसू, रिश्ते तार-तार थे और आश्रम में उदासी पसरी थी और आज यहाँ उत्सवी आनंद छाया था और उसकी झोली में रिश्तों का गट्ठर है।

हिन्दू बाल सेवा सदन की अध्यक्ष वीणा जैन कहती है कि मोना सिर्फ आश्रम की नहीं बल्कि पूरे शहर की बेटी है, इस शहर के लोगों ने आज उसकी शादी में जितना स्नेह दिया है उससे यही लगता है। उसके माँ-बाप ने उसे मात्र 4 वर्ष की उम्र में छोड़ दिया लेकिन आज उसे अनेक माँ-बाप मिल गए है।

मोना के जीवन में उम्मीदों की नई रोशनी लेकर आया पड़ोसी हरदा जिले के टिमरनी का एक आदर्शवादी नवयुवक जिसके मन में समाज सेवा का जूनून है। 24 वर्षीय कमलेश चौधरी पेशे से उन्नत कृषक है, उसके पास ई-रिक्शा की डिस्ट्रीब्यूटरशिप भी है और वो अपने गांव का निर्विरोध निर्वाचित पंच भी है। उसका भरापूरा परिवार है और समाज में खासी प्रतिष्ठा भी। उसे आसानी से समाज के प्रतिष्ठित परिवार की कन्या का रिश्ता मिल सकता था लेकिन उसने खुद तय किया कि उसे किसी अनाथ कन्या का हाथ थामना है। उसके बदरंग जीवन में खुशियों के रंग भरना है। ऐसे में जैसे ही उसे जानकारी मिली कि खण्डवा के हिन्दू बाल सेवा सदन में किसी कन्या के विवाह के लिए संस्था ने विज्ञापन दिया है, वह तत्काल पहुंचा और अपना आवेदन दे दिया। संस्था ने भी उसे सुयोग्य पाते हुए कमलेश का प्रस्ताव स्वीकार किया और आज (8 जुलाई 2016) धूमधाम से उसकी शादी सुनिश्चित की।

दूल्हा बने कमलेश चौधरी का कहना है कि किसी अनाथ को सहारा देना सबसे ज्यादा पुण्य का कार्य है। मैंने पहले ही तय कर रखा था की अपना विवाह किसी अनाथ कन्या से करूँगा। यह मेरी पीढ़ी के युवकों के लिए एक मिसाल भी होगी। मुझे अपने निर्णय पर तो गर्व है ही, परिवार भी बहुत खुश है। मुझे पूरे खण्डवा का प्यार और आशीर्वाद मिला है। मोना को जीवन के सारे सुख दूंगा। दुल्हन मोना कहती है “आज बहुत खुश हूँ, अब बीते दिनों की कड़वाहट भूलकर नया जीवन शुरू करना चाहती हूँ। मुझे इस आश्रम से बिछुड़ने का दुःख भी है जहाँ अनेक रिश्ते बने, अब शादी के बाद मुझे माँ-बाप, भाई-बहनों का प्यार भी ससुराल में मिलने की उम्मीद है। मैंने कभी सोचा नहीं था कि इस तरह मेरी शादी भी होगी।”

कमलेश का हाथ पाकर सिर्फ मोना के दिल के तार ही नहीं झनझनाये बल्कि इसने अन्य कन्याओं के मन में भी उम्मीदें अंकुरित की हैं। अपनों से जुदा होने के गम में यहाँ छाई उदासी आज इस आश्रम से कोसों दूर थी। शादी के गीतों की मस्ती में यहाँ बच्चे खूब झूमकर नाचे और उनका उत्साह बढ़ाने के लिए खण्डवा की कलेक्टर स्वाति नायक तालियां बजाकर अपनी ख़ुशी जाहिर करती रही। शहर के तमाम प्रतिष्ठित नागरिक, स्वयंसेवी संगठन,बिना किसी बुलावे के स्वतःस्फूर्त आयोजन में सहभागी हुए। बरसात के भीगे मौसम में यह आयोजन मन को भिगोने वाला था। मोना जब इस आश्रम में आई थी तब भी रोते हुई थी और आज बिदा भी रोते हुए हुई। बस फर्क इतना था तब आसुंओ में गम था अपनों से बिछड़ने का और आज खुशियाँ थी अपनों से मिलने की।

(यह कंटेट और फोटो हमने खंडवा के वरिष्‍ठ पत्रकार जय नागड़ा की फेसबुक वॉल से लिया है।)

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