क्‍या आप ऐसे विज्ञापनों का प्रसारण रुकवा सकते हैं?

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उज्‍जैन सिंहस्‍थ के दौरान निनौरा में आयोजित अंतर्राष्‍ट्रीय विचार महाकुंभ में मध्‍यप्रदेश के मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह चौहान की इस घोषणा का विरोध (?) शुरू हो गया है कि विज्ञापनों में स्त्रियों को वस्तु के रूप में प्रस्तुत करने पर रोक लगाने का कानून बनाया जायेगा। खबर छपी है कि महिलाएं इस प्रस्‍तावित कानून के खिलाफ खड़ी हो गई हैं और उनका कहना है कि ‘’हम पर नहीं, अश्‍लीलता पर रोक लगाने की जरूरत है।‘’

बात आगे बढ़े उससे पहले यह बताना जरूरी है कि विचार महाकुंभ में जो 51 सूत्री सार्वभौम अमतृ संदेश जारी किया गया है, उसमें नारी के संबंध में 10 बिंदु (29 से 38 तक) शामिल किए हैं। पहले जरा ये देख लीजिए कि इन बिंदुओं में कहा क्‍या गया है-

(1) नारी के द्वारा किए जा रहे गृह कार्य का मूल्य घर के बाहर किए जाने वाले व्यावसायिक कार्य के तुल्य है। उसके गृह कार्य को सकल घरेलू उत्पाद में शामिल करने की प्रविधियाँ विकसित की जाएं।

(2) स्त्री को विज्ञापनों में वस्तु की तरह प्रस्तुत करना कानूनन निषिद्ध किया जाए।

(3) प्रत्येक स्तर पर नारी-समकक्षता-सूचकांक विकसित कर उसके आधार पर समीक्षा के मानक तय किए जाएं।

(4) समान कार्य के लिए समान वेतन का सिद्धांत स्त्री रोजगार के सिलसिले में अपनाया जाए। इसके लिए नियोक्ता की जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए उनसे विमर्श का एक अभियान शुरू किया जाए।

(5) सभी परामर्शदात्री, नियामक,निगरानी तथा अन्य निकायों में स्त्रियों को समान रूप से प्रतिनिधित्व दिया जाए। समानता निष्पक्षता से प्राप्त नहीं की जा सकती, यह सकारात्मक हस्तक्षेप के बिना संभव नहीं है।

(6) नारी की मानवीय प्रतिष्ठा और गरिमा सार्वभौम रूप से स्वीकार्य होनी चाहिए तथा यह शासकीय नीतियों तथा योजनाओं में परिलक्षित होनी चाहिए।

(7) विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी को नारी के विरुद्ध इस्तेमाल करने के सभी संभावित तरीकों पर प्रभावी रोक होना चाहिए।

(8) महिलाओं की समस्याओं का समाधान करते समय उनके संपूर्ण जीवन-चक्र को दृष्टि में रखना आवश्यक है। संतान के सृजन और पालन के दायित्व को ध्यान में रखकर उनके पोषण, आहार, प्रजनन और स्वास्थ्य संबंधी आवश्यकताओं पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए।

(9) महिलाओं के प्रतिनिधित्व और आरक्षण संबंधी प्रावधानों का लाभ लोकतंत्र के सभी स्तरों पर संविधिक रूप से मिलना चाहिए।

(10) घरेलू महिलाओं के दैनंदिन जीवन क्रम को सुविधायुक्त बनाने के लिए सुसंगत अधोसंरचना में निवेश आवश्यक है, ताकि वह अन्य उत्पादक कार्यों में अधिक भागीदारी कर सके।

अगर कोई इन बिंदुओं को ठीक से पढ़ ही ले, तो मुझे लगता है इन बातों का विरोध नहीं कर सकता। जब तक कि आप बाल की खाल निकालते हुए विरोध के नाम पर विरोध करने को उतारू ही न बैठे हों। लेकिन चूंकि आपको अपना मुक्‍का ऊपर ही रखना है, इसलिए आप समर्थन भी विरोध की तरह ही करते हैं। ऐसा लगता है कि विज्ञापनों में महिलाओं को वस्‍तु के रूप में दिखाने संबंधी कानून को लेकर दी गई प्रतिक्रियाएं भी तथ्‍य को जाने बगैर दे दी गई हैं। इन दिनों यह दिक्‍कत सबसे ज्‍यादा है। मीडिया में प्रतिक्रिया या बयान देने की ऐसी होड़ मची है कि बिना तथ्‍यों को जाने या समझे लोग कुछ भी बोले जा रहे है। अखबारों में महिला नेत्रियों के जो बयान छपे हैं, उनका भी भाव मूलत: वही है जो सरकार का भाव है, लेकिन उन्‍हें कहा (या बताया) इस अंदाज में गया है मानो वे सब लोग सरकार के कदम का विरोध कर रह हों।

अब जरा दूसरे मुद्दे पर आ जाइए। मैं चाहूंगा कि महिला नेत्रियां इस मुद्दे पर ज्‍यादा बोलें। और वो मुद्दा यह है कि जिन विज्ञापनों को अश्‍लील या आपत्तिजनक बताकर ऐतराज किया जा रहा है, उनमें भी तो महिलाओं ने ही काम किया है। अब या तो ऐसे विज्ञापनों में काम करने वाली महिलाएं सार्वजनिक रूप से कहें कि उनसे बलात् ऐसे विज्ञापन तैयार करवाए जा रहे हैं। या फिर बयान देने वाली नेत्रियां ऐसे लोगों के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज करवाएं। जो नारियां ऐसे विज्ञापनों में दिखाई जा रही हैं, वह तो उनकी ‘आजीविका’ है। और अधिकांश मामलों में ‘रोजगार’ का यह साधन उन्‍हीं ने चुना होगा।

यदि आपको आपकी सहमति के साथ श्‍लील या अश्‍लील ढंग से शूट किया जा रहा है, तो आप केवल सरकार या अन्‍य एजेंसियों को ही दोषी कैसे ठहरा सकते हैं।यह फैसला तो खुद महिलाओं को ही करना होगा कि वे बाजार में वस्‍तु की तरह इस्‍तेमाल होना चाहती हैं या नारी गरिमा को अक्षुण्ण रखना चाहती हैं। आपको अपनी मर्जी से जीने की आजादी जरूर मिलना चाहिए। लेकिन मर्जी से जीने की आजादी के नारे में, किसी भी तरह के विज्ञापन में खुद को, किसी भी तरह शूट करवाने की आजादी भी तो शामिल है। क्‍या आप उसे ‘अश्‍लील’ कहकर उसका विरोध कर पाएंगे? आप जरा बोल कर तो देखिए। अश्‍लीलता की क्‍या बात करते हैं, एक वर्ग ऐसा तैयार खड़ा है, जो तंग कपड़ों की बात करने पर भी आपको फाड़कर खा जाएगा। और यदि है हिम्‍मत तो उतरिए सड़क पर, आज से ही चलाइए अभियान इन अश्‍लील विज्ञापनों के विरुद्ध। करिए विरोध उन नारियों का जो विज्ञापनों में खुद को अश्‍लील ढंग से दिखाने पर रजामंद हो रही हैं। सिर्फ बयानों की जुगाली से तो यह तसवीर बदलने वाली नहीं है। वैसे बाजार की दुनिया में क्‍या तो नर और क्‍या नारी, भावनाएं ही जब ‘कमोडिटी’ हो गई हैं तो सारी बहस ही बेमानी है।

गिरीश उपाध्‍याय

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