सिंहस्‍थ में किसने रची मोदी के खिलाफ साजिश?

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क्‍या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, राजनीतिक दलों के साथ-साथ मीडिया के स्‍तर पर भी किसी साजिश का शिकार हो रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठा है क्‍योंकि 14 मई को उज्‍जैन सिंहस्‍थ के तहत आयोजित अंतर्राष्‍ट्रीय विचार महाकुंभ में उनके हवाले से कही गई एक बात को सोशल मीडिया में इस तरह तोड़ मरोड़कर प्रस्‍तुत किया गया कि बात का बतंगड़ बन गया। ऐसा बताया गया कि मोदी ने विचार महाकुंभ में नागा साधुओं को लेकर आपत्तिजनक टिप्‍पणी कर दी है। उनके हवाले से यह खबरें फैलाई गईं मानो वे कह रहे हों कि सिंहस्‍थ सिर्फ नागा साधुओं के लिए नहीं है।

प्रचार मंचों पर बात फैलते ही उसका असर हुआ और अखाड़ा परिषद के अध्‍यक्ष नरेंद्र गिरी से लेकर शंकराचार्य स्‍वरूपानंद सरस्‍वती तक ने मोदी के उस कथित बयान की आलोचना कर डाली। राजनीतिक दलों को भी मौका मिला और मध्‍यप्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष अरुण यादव ने आनन फानन में प्रेस कान्‍फ्रेंस बुलाकर आरोप जड़ दिया कि मोदी ने नागा साधुओं के बारे में बयान देकर सिंहस्‍थ की परंपरा का ही अपमान किया है।

जबकि असलियत कुछ और ही है। पहले जरा ये पढ़ लीजिए कि मोदी ने अपने भाषण में कहा क्‍या था-

‘’कभी– कभी मुझे लगता है, दुनिया हमे कहती है कि हम बहुत ही unorganised लोग हैं। बड़े ही विचित्र प्रकार का जीवन जीने वाले बाहर वालों के नजर में हमें देखते हैं। लेकिन हमें अपनी बात दुनिया के सामने सही तरीके से रखनी आती नहीं है। और जिनको रखने की जिम्मेवारी है और जिन्होंने इस प्रकार के काम को अपना प्रोफेशन स्वीकार किया है। वे भी समाज का जैसा स्वभाव बना है, शॉर्टकट पर चले जाते हैं। हमने देखा है कुम्भ मेला यानी एक ही पहचान बना दी गई है नागा साधु। उनकी फोटो निकालना, उनका प्रचार करना, उनका प्रदर्शन के लिए जाना इसी के आसपास उसको सीमित कर दिया गया है। क्या दुनिया को हम गर्व के साथ कह सकते हैं कि हमारे देश के लोगों की कितनी बड़ी organizing capacity है। क्या ये कुम्भ मेले का कोई सर्कुलर निकला था क्या। निमंत्रण कार्ड गया था क्या।

‘’….जब प्रयागराज में कुंभ का मेला हो तब गंगा मैया के किनारे पर यूरोप का एकाध देश daily इकट्ठा होता हो, रोज नए लोग आते हों और कोई भी संकट न आता हो, ये management की दुनिया की सबसे बड़ी घटना है लेकिन हम भारत का branding करने के लिए इस ताकत का परिचय नहीं करवा रहे हैं।‘’

‘’….मैं तो दुनिया की बड़ी-बड़ी Universities को कहता हूं कि हमारे इस कुंभ मेले की management को भी एक case study के रूप में दुनिया की Universities को study करना चाहिए।‘’

‘’… मैं सभी अखाड़े के अधिष्ठाओं को, सभी परंपराओं से संत-महात्माओं को मैं आज एक निवेदन करना चाहता हूं, प्रार्थना करना चाहता हूं। क्या यहां से जाने के बाद हम सभी अपनी परंपराओं के अंदर एक सप्ताह का विचार कुंभ हर वर्ष अपने भक्तों के बीच कर सकते हैं क्या। मोक्ष की बातें करें, जरूर करें लेकिन एक सप्ताह ऐसा हो कि जहां धरती की सच्चाइयों के साथ, पेड़ क्यों उगाना चाहिए, नदी को स्वच्छ क्यों रखना चाहिए, बेटी को क्यों पढ़ाना चाहिए, नारी का गौरव क्यों करना चाहिए….’’

यानी मोदी ने अपने भाषण में नागा साधुओं का जिक्र इस संदर्भ में किया कि हम केवल शाही स्‍नान के दौरान नागा साधुओं के चित्र दिखाकर ही सिंहस्‍थ को संपन्‍न मान लेते हैं, लेकिन सिंहस्‍थ केवल नागा साधुओं तक ही सीमित नहीं है। वह आस्‍था और विश्‍वास की एक परंपरा है। उसमें और भी कई गतिविधियां होती हैं, जिनकी ओर संचार माध्‍यमों का और विचारवान लोगों का ध्‍यान जाना चाहिए। इस अवसर को भारत की अंतर्राष्‍ट्रीय छवि मजबूत करने के मंच के रूप में लिया जाना चाहिए। भारत को जानने और समझने का कुंभ से अच्‍छा अवसर कोई नहीं हो सकता।

दरअसल प्रधानमंत्री ने न तो वो बात कही जो उनके मुंह में डाल दी गई और न ही नागा साधुओं का जिक्र उन्‍होंने किसी अपमान के लिहाज से किया। लेकिन कथित सोशल मीडिया और उसमें चलने वाली लॉबियों ने प्रधानमंत्री के बयान की ऐसी टांग तोड़ी कि अच्‍छी भली बात रात होते होते तक लंगड़ाने लगी। उज्‍जैन के अखाड़ों में इसको आधार बनाकर मोदी के खिलाफ माहौल बनाने की कोशिश हुई। इस पूरे प्रसंग में बड़ा सवाल यही है कि जब प्रधानमंत्री का बयान भी इस देश में सुरक्षित नहीं है तो बाकी खबरें कितनी तोड़ मरोड़ के साथ लोगों तक पहुंचाई जाती होंगी।

गिरीश उपाध्‍याय

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