नई दिल्ली, मई 2016/ उत्तराखंड में दो माह तक चले राजनीतिक संकट का नतीजा आखिरकार न्यायपालिका के माध्यम से ही आया। 11 मई को सुप्रीम कोर्ट ने ही विधानसभा में हुए शक्ति परीक्षण का परिणाम देश को बताया। जिसमें कांग्रेस नेता हरीश रावत को बहुमत मिला। गौरतलब है कि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था के चरमराने का आरोप लगाते हुए केंद्र ने राष्ट्रपति शासन लगा दिया था।
इतिहास पर नजर डालें तो ऐसा तीसरी बार हुआ है जब कोर्ट के दखल के बाद राज्यों में शक्ति परीक्षण कराया गया है और जिसने जीत हासिल की उसे मुख्यमंत्री की कुर्सी मिली। कोर्ट ने सबसे पहले 1998 में ऐसा किया था जब उत्तर प्रदेश की कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया गया था और तत्कालीन राज्यपाल ने लोकतांत्रिक कांग्रेस पार्टी के नेता जगदंबिका पाल को राज्य का मुख्यमंत्री बना दिया था। तब कोर्ट की निगरानी में राज्य विधानसभा में शक्ति परीक्षण करवाया गया था और कल्याण सिंह ने अपना बहुमत कर फिर से मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल की थी। इसी तरह मार्च 2005 में झारखंड में राज्यपाल ने शीबू सोरेन को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था। ऐसे में देश की सर्वोच्च अदालत ने यह तय करने के लिए शक्ति परीक्षण करने का आदेश दिया था कि शीबू सोरेन और अर्जुन मुंडा में किसके पास बहुमत है। शीबू सोरेन बहुमत साबित करने में नाकाम रहे थे और उन्होंने इस्तीफा दिया। बाद में अर्जुन मुंडा को मुख्यमंत्री पद मिला था।