भोपाल। मध्यप्रदेश में वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत वनवासियों के अब तक एक लाख 76 हजार 408 वन-भूमि के दावे मान्य किये गये हैं। इनमें से एक लाख 68 हजार 849 दावों में अधिकार प्रमाण-पत्र भी वितरित किये जा चुके हैं। प्रदेश में वन-भूमि में सामुदायिक दावों को प्राथमिकता के साथ निराकृत किये जाने के निर्देश आदिम-जाति कल्याण विभाग द्वारा राजस्व एवं वन विभाग के अधिकारियों को दिये गये हैं।
प्रदेश में वन-भूमि के 5 किलोमीटर की परिधि में आने वाले करीब 25 हजार गाँव में वन-भूमि के दावों के निपटारे का कार्य विशेष रूप से किया जा रहा है। वन अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अनुसूचित-जनजातियों के साथ-साथ अन्य परम्परागत वनवासियों को उनकी काबिज वन-भूमि पर वन अधिकार दिये जाने हैं। अधिनियम के प्रावधान के अनुसार जन-जातीय वर्ग के ऐसे वनवासियों को पट्टे दिये जाना है, जो 13 दिसम्बर, 2005 से पूर्व वन-भूमि पर काबिज हों। अन्य परम्परागत वनवासियों को वन-भूमि पर अधिकार दिये जाने के लिये अधिनियम में यह प्रावधान है कि वे 13 दिसम्बर, 2005 के पूर्व तीन पीढ़ियों से वन-भूमि पर काबिज हों। अधिनियम में एक पीढ़ी से आशय 25 वर्ष है। इस प्रकार अन्य परम्परागत वनवासियों का वन-भूमि पर 75 वर्ष से अधिक का हक होना चाहिये।
वन अधिकार अधिनियम में प्राप्त दावों के निराकरण के लिये ग्राम-पंचायत, खण्ड एवं जिला-स्तर पर समितियों का गठन किया गया हैं। प्रदेश में वन-भूमि पर 10 हजार 517 सामुदायिक दावे प्राप्त हुए थे। इनमें से 7,333 दावे मान्य किये गये हैं। यह दावे वन-भूमि पर वनवासियों के रास्ते, चारागाह, लघु वनोपज संग्रह एवं तालाब आदि से संबंधित हैं।