बुंदेलखंड के चार किसानों ने मौत को गले लगाया

रवींद्र व्यास

23 दिसंबर को किसान दिवस के सात दिन बाद बुंदेलखंड के छतरपुर के एक किसान ने आत्मह्त्या कर ली। दिसंबर का महीना बुंदेलखंड के किसानों पर भारी रहा। हालात से हारे चार किसानों ने सिर्फ इसी महीने मौत को गले लगा लिया। राष्ट्रीय क्राइम रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट कहती है कि 2019 में प्रति दिन 28 किसान और 89 दिहाड़ी मजदूरों ने आत्मह्त्या की। आत्मह्त्या के मामले में मध्य प्रदेश देश में चौथे नंबर पर और उत्तर प्रदेश पांचवें नंबर पर आता है। देश के विकसित राज्यों की श्रेणी में शुमार महाराष्ट्र और तमिलनाडु क्रमशः पहले और दूसरे नंबर पर आते हैं।

असल में सरकार चाहे कोई भी हो वह इस बात को आसानी से स्वीकार नहीं करती कि कर्ज के कारण किसान ने आत्महत्‍या की है। बचाव में अनेक ऐसे तर्क दिए जाते हैं जिन्हें आम आदमी भी आसानी से स्वीकार नहीं करता। जबकि हकीकत ये है कि बुंदेलखंड इलाके में कर्ज, मर्ज और फसल चौपट होने के चलते छोटे सीमांत किसान, मजदूर पलायन को मजबूर होते हैं और कई बार आत्मह्त्या जैसा घातक कदम भी उठा लेते हैं। छतरपुर जिले के मातगुवां के किसान मुनेंद्र राजपूत (35) को बिजली बिल के 88 हजार 508 रुपये चुकाने के लिए इतना प्रताड़ित किया गया कि उसने जान ही दे दी।

मुनेंद्र ने आत्मह्त्या से पहले प्रधान मंत्री के नाम पत्र लिखा और व्यवस्था पर सवाल भी उठाया। अपने आपको बीजेपी कार्यकर्ता और प्रधान मंत्री का अनुयायी बताते हुए उसने लिखा कि बड़े बड़े बिजनेसमेन बड़े बड़े घोटाले कर देते हैं पर आपके कर्मचारी उनका कुछ नहीं कर सकते। पर एक गरीब पर अगर थोड़ा सा भी कर्ज हो तो उसकी कुर्की कर ली जाती है। मेरी चक्की और मोटर साइकिल जप्त कर ली उसका मुझे दुःख नहीं है। जबकि हमने जब चक्की का कनेक्शन करवाया था तब सिक्योरिटी के लिए हमसे 35 हजार रुपये जमा करवा कर रसीद सिर्फ पांच हजार की दी गई थी। और आज जब बिजली बिल के 70-80 हजार रुपये हम नहीं दे सके तो गाँव वालों के सामने बेइज्जती की वह असहनीय है।

सुसाइड नोट में लिखा है कि मेरी परिवार से प्रार्थना है कि मरने के बाद मेरा शरीर शासन के सुपुर्द कर दे,  जिससे मेरे शरीर का एक एक अंग वो बेच सके, जिससे शासन का कर्जा चुक सके। यह उस किसान के शब्‍द हैं जिसने बिजली विभाग द्वारा की गई कुर्की और बेइज्जती से त्रस्त होकर खेत पर आत्म हत्या कर ली। पत्र में मृतक ने ना सिर्फ अंग बेचकर कर्जा चुकाने की बात लिखी है बल्कि मीडिया की कार्य प्रणाली पर भी प्रश्न चिन्ह लगाया है।

उसने लिखा है कि एक प्रार्थना मीडिया वालों से है कि आप शासन की अच्छाइयां तो बहुत टीवी और बाकी जगहों पर दिखाते हैं एक गरीब की चिट्ठी को भी दिखाने की कृपा करें, सभी मीडिया वालों को मेरा अंतिम नमस्कार – राम राम। कर्ज ना चुका सकने का कारण भी उसने लिखा है कि मेरी एक भैंस करेंट लगने से मर गई, तीन भैंस चोरी हो गई, आषाढ़ में (खरीफ फसल) खेती में कुछ नहीं मिला, लॉकडाउन में कोई काम नहीं, ना ही चक्की चली, इस कारण हम बिल नहीं दे सके |

मृतक के पास कोई कृषि भूमि नहीं
कलेक्टर छतरपुर शीलेन्द्र सिंह ने एक प्रेस नोट के माध्यम से बताया कि ग्राम मातगुवां के मृतक मुनेन्द्र राजपूत के परिजनों को 25 हजार रूपए की आर्थिक सहायता दी गई है। मृतक की मां श्रीमती हरबाई के नाम 5 एचपी विद्युत कनेक्शन स्वीकृत है जिस पर 88 हजार 508 रूपये का भुगतान 3 वर्षों से लंबित है। बकाया राशि वसूली के लिए अक्टूबर एवं नवम्बर माह में नोटिस जारी किए गए तथा दिसम्बर में आर.आर.सी. जारी की गई।

मृतक मुनेन्द्र राजपूत के नाम से कोई जमीन नहीं है। इनके पिता धनश्याम के नाम 2 हेक्टेयर जमीन है। मृतक मुनेन्द्र और उनके भाई लोकेन्द्र राजपूत की पत्नियों के नाम संयुक्त रूप से 0.027 हेक्टेयर भूमि है, किन्तु इन्हें पीएम किसान योजना का लाभ नहीं मिल रहा है। मृतक मुनेन्द्र का नाम पीएम आवास सूची में था परंतु इनका पक्का आवास होने के कारण, अपात्र होने से वह लाभ नहीं मिला। मृतक के पिता धनश्याम द्वारा अक्टूबर 2020 में सेवा सहकारी समिति मातगुवां से खाद के लिए 14 हजार 200 रुपये का ऋण लिया गया।

मृतक मुनेन्द्र राजपूत की मां गांव में ही आटा चक्‍की चलाती थी। विद्युत खपत की राशि का भुगतान नहीं किया गया था। मृतक के पिता घनश्याम लोधी को पीएम-सीएम किसान योजना का लाभ प्राप्त होता है। उन्हें अभी तक 5 किश्तों के रूप में 10 हजार रुपये की किसान सम्मान निधि दी जा चुकी है। वे विद्युत वितरण कम्पनी से सेवानिवृत्त हुए हैं, उनकी मासिक पेंशन 25 हजार 90 रूपए है और उनका भाई लोकेन्द्र, वितरण केन्द्र छतरपुर ग्रामीण 1 में मीटर रीडर के पद पर बिजली विभाग में कार्यरत है।

बिजली कंपनी का जानलेवा दबाव
बिजावर क्षेत्र के विधायक राजेश बबलू शुक्ला ने मातगुवां पहुंच कर मृतक किसान परिवार को सांत्वना देते हुए परिवार की व्यथा सुनी। उन्होंने कहा कि किसानों के हर कष्ट में मैं उनके साथ हूँ। विधायक ने अपनी ओर से 25 हजार रुपये की राशि पीड़ित परिवार को दी और भरोसा दिलाया कि मुनेंदु की बेटियों को शिक्षित करने में पूर्ण सहयोग करेंगे।

पीडि़त परिवार के सदस्‍यों ने विधायक को बताया कि यदि बिजली कंपनी कुछ समय की मोहलत देती और कुर्की की कार्यवाही न करती तो शायद मुनेन्द्र यह आत्मघाती कदम न उठाता। मुनेन्द्र के रिटायर पिता घंसू राजपूत ने कर्ज चुकाने के लिए अपनी पेंशन से राशि काटने का प्रस्ताव बिजली कंपनी को दिया था। पर बिजली विभाग वालों ने एक नहीं सुनी। विधायक बबलू शुक्ला ने बिजली कम्पनी के कार्यपालन अभियंता आरके पाठक और कंपनी के कर्मचारियों पर किसानों एवं आम नागरिकों को प्रताडि़त करने के आरोप लगाए।

उन्होंने कहा कि वसूली के लिए लोगों पर जानलेवा दबाव बनाया जाता है। एक तरफ मुख्यमंत्री किसानों को संबल देने का प्रयास करते हैं तो वहीं दूसरी तरफ बिजली कर्मचारी उनके साथ बुरा व्यवहार करते हैं। श्री शुक्ला ने कहा कि वे मुख्यमंत्री से मिलकर कार्यपालन यंत्री आरके पाठक सहित अन्य जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्यवाही की मांग करेंगे एवं मृतक के परिवार को सहायता दिलाने का प्रयास करेंगे।

क्‍या सरकार कार्रवाई करेगी?
आत्महत्‍या करने वाले किसान ने अपने पत्र में कुछ ऐसे सवाल भी खड़े किये हैं जिनकी जांच वैधानिक तौर पर होनी चाहिए, पर सरकार अगर पर्दा डालने की योजना के तहत कार्य करेगी तो कोई कार्यवाही नहीं होगी। प्रशासन की मानें तो किसान पर तीन साल का बिजली बिल बकाया था। एक माह का बिल जमा ना करने वालों का कनेक्शन काटने वाली बिजली कम्पनी किसकी सहमति से तीन साल तक सोती रही? जब मुनेंद्र ने बिजली कनेक्शन के नाम पर 35 हजार रुपये जमा किये तो रसीद सिर्फ 5 हजार की ही क्यों दी गई और 30 हजार का क्या हुआ? मुनेंद्र के पिता जो बिजली विभाग में कार्यरत रहे उन्होंने अपनी पेंशन से बिल राशि कटवाने की बात कही तो उस पर विचार क्यों नहीं किया गया? जबकि बिजली कम्पनियां इस तरह की सुविधा उद्योगों को देती हैं। प्रशासन ने इस मामले में जिस तरह से मामले में लीपापोती की वह भी अपने आप में कई तरह के सवाल खड़े करता है।

चार किसानों ने जान दी
मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के 13 जिलों से बने बुंदेलखंड में इन दिनों किसानों का बुरा हाल है। रोजगार के अभाव में यहां के किसान और उनके परिवार आत्महत्या को मजबूर हैं। साथ ही जो बचे हैं वह पलायन कर रहे हैं। दिसंबर महीने में ही दमोह जिले के तेंदूखेड़ा विकास खंड के बेलवाड़ा गाँव में तीन दिन के अंदर दो किसानों ने आत्मह्त्या कर ली। एक लाख के कर्जदार किसान खिलावन आदिवासी (55) ने सूखती फसल देख कर आत्मह्त्या कर ली। वजह थी उसको पर्याप्‍त बिजली की आपूर्ति नहीं हो पाती थी, इसी कारण वह सिंचाई नहीं कर पा रहा था और फसल सूखती जा रही थी। इस घटना के दो दिन पहले भी गाँव के रूपलाल अहीरवाल ने बिजली व्यवस्था से त्रस्त हो कर आत्म ह्त्या की थी।

जबकि सितम्बर माह में जिले के मगरोन थाना इलाके के कर्जदार किसान भगवान दास रजक ने सोयाबीन की फसल खराब होने पर आत्म ह्त्या की थी। पन्ना जिले की अजयगढ़ तहसील के बरकोला माजरा मुहारी में कर्जदार किसान राम सिंह लोधी (45) ने सल्फास खाकर आत्म ह्त्या कर ली। उस पर बैंक और साहूकारों का कर्ज था। सागर जिले के गढ़ाकोटा थाना इलाके के ग्राम बाबूपुर के कर्जदार किसान मानसिंघ लोधी (61) ने अक्टूबर माह में फांसी लगाकर आत्म ह्त्या कर ली थी। मान सिंह ने अपने छोटे बेटे की शादी के लिए दो लाख का कर्ज दो एकड़ जमीन गिरवी रख कर उठाया था। सोयाबीन की फसल की उपज से कर्ज चुकाने की योजना थी पर फसल खराब हो गई।

दरअसल देखा जाए तो सरकार योजनाएं तो बहुत बनाती है, पर वे कागजों में ही सिमट कर रह जाती हैं। खेती से आय दुगनी करने का सपना सरकार दिखा रही है पर जमीनी यथार्थ ये है कि बढ़ते परिवार के चलते खेत छोटे होते जा रहे हैं, खेती की लागत भी बढ़ रही है, घट रहा है तो सिर्फ किसान की उपज का मूल्य। उस पर प्रकृति का प्रकोप, सूखा, अतिवृष्टि,ओला और पाला जैसी समस्याएं लगभग हर वर्ष देखने को मिल जाती हैं। देश में यह पहला मौका है जब किसान इतनी भीषण ठण्ड में सड़कों पर उतरा है। दिल्ली की हवा देश के हर कोने में महसूस की जा रही है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here