भोपाल। सागर की महापौर कमला बाई को पद से हटाए जाने के मामले ने कई राजनीतिक और प्रशासनिक सवाल खड़े कर दिए हैं। सागर महापौर का पद अनुसूचित जाति वर्ग की महिला प्रत्याशी के लिए आरक्षित किया गया था। इस दौरान कमला बाई ने अपना नामांकन भरा। नामांकन के कॉलम में कमलाबाई ने जाति विहीन किन्नर लिखा था। इसके बाद जब छानबीन हुई तो रिटर्निंग ऑफिसर के समक्ष जाति विहीन किन्नर की जगह फॉर्म सुधारकर उन्होंने उसमें कोरी लिख दिया था। इसके बाद कमलाबाई करीब 44 हजार मतों से चुनाव जीत गई। जीत के बाद एक जनवरी 2010 को कमलाबाई के लिंग एवं जाति को चुनौती देते हुए पूर्व नगर निगम कमिश्नर महेन्द्र राय ने जिला एवं सत्र न्यायालय में एक याचिका दायर की। दूसरी याचिका भाजपा की महापौर प्रत्याशी सुमन अहिरवार ने जाति और लिंग को चुनौती देते हुए दायर की।
करीब दो वर्ष के विचार के बाद जिला न्यायाधीश सुश्री प्रतिभा रत्नपारखी ने 9 दिसंबर 2011 को महापौर कमलाबाई का निर्वाचन शून्य घोषित कर दिया था और महापौर चुनाव में दूसरे स्थान पर रही प्रत्याशी सुमन अहिरवार को सागर के महापौर का चार्ज दिलाने के लिए कलेक्टर को निर्देशित किया। इस आदेश के विरोध में कमलाबाई ने जबलपुर हाईकोर्ट में रिट पिटीशन दायर की। इस पर सुनबाई करते हुए 15 दिसंबर 2011 को न्यायाधीश केके त्रिवेदी ने महापौर पद पर निगम एक्ट की धारा 21 के तहत अंतरिम व्यवस्था करने हेतु राज्य सरकार को आदेशित किया था। इसके बाद राज्य शासन ने अनुसूचित जाति की पार्षद अनीता अहिरवार को महापौर पद पर मनोनीत कर दिया।
अलग व्याख्या कर अधिसूचना जारी कर दी
राज्य शासन ने 15 दिसंबर 2011 के निर्णय की अपने हिसाब से व्याख्या करते हुए महापौर के पद को खाली मानकर चुनाव अधिसूचना जारी कर दी। इस अधिसूचना को कमलाबाई एवं सुमन अहिरवार की तरफ से पुन: हाईकोर्ट में चुनौती दी गई और यहां सुनवाई के दौरान 22 जून 2012 को कोर्ट ने चुनाव आयोग से दो दिन में जवाब मांगा। 25 जून को हुई सुनवाई के दौरान मामला न्यायाधीश केके त्रिवेदी की एकलपीठ में रखा गया और न्यायाधीश श्री त्रिवेदी ने अपने 15 दिसंबर 2011 के आदेश की व्याख्या करते हुए निर्देशित किया कि कोर्ट ने अंतरिम महापौर की व्यवस्था के निर्देश अपने आदेश में दिए थे, न कि चुनाव कराने के। मगर राज्य शासन ने न्यायालय के आदेश की गलत व्याख्या करते हुए चुनाव अधिसूचना जारी कर दी जो कि शून्य है। क्योंकि सिविल रिवीजन अभी हाईकोर्ट में विचाराधीन है। जब तक इनकी सुनवाई पूर्ण नहीं हो जाती तब तक के लिए चुनाव अधिसूचना जारी करना सारहीन है। इसलिए चुनाव अधिसूचना निरस्त की जाती है।
हालांकि सिविल रिविजन की सुनवाई के लिए हाईकोर्ट में 2 जुलाई की तिथि निर्धारित की गई है। लेकिन इस घटना ने एक बार फिर बता दिया है कि प्रशासनिक मशीनरी किस लापरवाही से काम करती है। अव्वल तो कमलाबाई के नामांकन को ही बहुत बारीकी और गंभीरता से देखा जाना चाहिए था और नामांकन बहुत कड़ी छानबीन के बाद मंजूर किया जाना चाहिए था। लेकिन ऐसा नहीं किया गया। दूसरी गलती न्यायालय के आदेश की गलत व्याख्या के जरिए से हुई। यह पूरा प्रकरण दर्शाता है कि प्रशासन में बैठे अधिकारी किस तरह अपनी जिम्मेदारियों से बचते हैं और बिना सोचे समझे ऐसे फैसले कर बैठते हैं जिससे सरकार और राजनीतिक नेतृत्व को बाद में शर्मिंदा होना पड़ता है।