भोपाल। राज्यपाल राम नरेश यादव ने कहा है कि शिक्षा के स्तर में निरंतर गिरावट की स्थिति में तभी सुधार सम्भव है जब शिक्षा के उद्देश्यों में समाज के पारम्परिक और समय सिद्ध मूल्यों का संचरण भी हो। श्री यादव आज यहाँ भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान के 5 वें स्थापना दिवस समारोह में बोल रहे थे। राज्यपाल ने कहा कि सही मायनों में शैक्षणिक दृष्टि का विकास पर्यावरण संवेदी, सामाजिक मूल्यों के प्रति सरोकारी, व्यवसायिक और वैयक्तिक मूल्यों पर आधारित होना चाहिए। समारोह में विशिष्ट अतिथि के रूप में बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा. पंजाब सिंह भी उपस्थित थे। समारोह में राज्यपाल ने संस्थान के छात्र अर्घ्यदीप दास को ग्राफिक्स डिजाइनिंग के लिए डिजाइन एक्सीलेंस अवार्ड से सम्मानित भी किया।
राज्यपाल ने कहा कि विज्ञान की सच्ची प्रयोग शाला तो समाज ही है, जहां नवाचार और प्रयोगों की आवश्यकता भी है और संभावनाएँ भी हैं। उन्होंने कहा कि समाज की सभी छोटी-बड़ी समस्याओं के निदान में शिक्षा की, खासकर विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी शिक्षा की, निर्णायक भूमिका हो सकती है। राज्यपाल ने कहा कि समाज के आमूलचूल विकास के लिए एक ऐसी शैक्षिक- प्रविधि का पुनः आविष्कार करना है जिसमें पारम्परिक और समाजिक मूल्यों का समावेश हो। सामाजिक सोच से लैस विज्ञान ने सदा समाज की भलाई करने और ज्ञान के अंधकार को दूर करने का कार्य किया है।
विशिष्ट अतिथि डा. पंजाब सिंह ने कहा कि भारत युवाओं का देश है। युवाओं पर ही यह दायित्व है कि वे इस तथ्य का परीक्षण करें कि शिक्षा के सुधारों के आशानुरूप परिणाम हासिल क्यों नहीं हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि मानव विकास का मूलतत्व ही शिक्षा है। शिक्षा मुहैया कराने के साथ-साथ प्रशिक्षण और कौशल विकास के अवसर मुहैया कराये जाने चाहिए। श्री सिंह ने देश के शैक्षणिक हालातों की जमीनी हकीकत का विस्तार से उल्लेख करते हुए कहा कि शिक्षा में निवेश समाज के विकास के लिए अत्यंत आवश्यक है।
संस्थान के निदेशक विनोद कुमार सिंह ने स्वागत भाषण में कहा कि संस्थान का उद्देश्य गुणवत्तायुक्त शिक्षा मुहैया करवाना है। उन्होंने कहा कि गरीबी और ऐसी तमाम समस्याओं का हल सिर्फ शिक्षा के माध्यम से किया जा सकता है। श्री सिंह ने कहा कि जहाँ देश की प्रगति के लिए शिक्षा कुंजी का काम करती है वहीं विज्ञान शिक्षा के बिना स्कूली शिक्षा भी अधूरी है। श्री सिंह ने अतिथियों को शाल-श्रीफल भेंट किये। संचालन प्रो. सप्तऋषि मुखर्जी ने किया। आभार रजिस्ट्रार श्री के.वी. सत्यमूर्ति ने माना।