मध्यप्रदेश सरकार ने प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा निवेश आकर्षित करने के मकसद से नवीन औद्योगिक संवर्धन नीति-2014 लागू कर दी है। नीति में निवेशकों को सिंगल विंडो में निश्चित समय-सीमा में सुविधाएँ और अनुमति देने के लिये ऑनलाइन इन्वेस्टर्स मॉनीटरिंग एण्ड फेसिलिटेशन सिस्टम लागू किया जायेगा। इसके लिये एमपी ट्रायफेक नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करेगा।
वेट और केन्द्रीय विक्रय कर से संबंधित सहायता प्राप्त करने की प्रक्रिया को सरल बनाया गया है। वर्तमान में इकाइयों को वेट की प्रतिपूर्ति में हो रहे विलम्ब को देखते हुए प्रतिवर्ष कुल कर राशि जमा करने की पुष्टि के आधार पर पात्रता राशि के 75 प्रतिशत की सहायता तुरंत दी जायेगी। शेष 25 प्रतिशत राशि वाणिज्यिक कर विभाग द्वारा कर निर्धारण करने के बाद दी जायेगी।
नीति में कौशल उन्नयन को बढ़ावा देने के लिये शासकीय पॉलीटेक्निक और आईटीआई के संसाधनों का उपयोग किया जायेगा। साथ ही वृहद औद्योगिक क्षेत्रों में मेगा आईटीआई स्थापित किये जायेंगे।
नवीन नीति में एमएसएमई सेक्टर के लिये ब्याज अनुदान की अधिकतम सीमा को 20 लाख से बढ़ाकर 30 लाख किया गया है। निवेश परियोजनाओं को सहायता देने के लिये मुख्य सचिव की अध्यक्षता में राज्य-स्तरीय निवेश साधिकार समिति का गठन किया जायेगा। एमएसएमई इकाइयों के लिये जिला-स्तरीय समिति को और अधिक प्रभावी बनाया जायेगा। नवीन औद्योगिक क्षेत्र में न्यूनतम 20 प्रतिशत भूमि एमएसएमई सेक्टर के लिये रखी जायेगी।
ग्रीन इण्डस्ट्रियलाइजेशन को प्रोत्साहित करने के लिये वेस्ट मेनेजमेंट सिस्टम स्थापित करने अधिकतम 25 लाख की सहायता दी जायेगी। सहायक उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित करने के लिये वेण्डर डेव्हलपमेंट प्रोग्राम को ज्यादा प्रभावी बनाया जायेगा। नई नीति के अनुसार 500 करोड़ से अधिक पूँजी निवेश वाली वित्तीय समस्याग्रस्त निवेश परियोजनाओं को शासकीय देयताओं (कर छोड़कर) में डिफरमेंट देकर सहायता दी जायेगी। वृहद एवं मध्यम उद्योगों के परिप्रेक्ष्य में औद्योगिक क्षेत्रों के बाहर अविकसित भूमि के अधोसंरचना विकास पर हुए व्यय की प्रतिपूर्ति अधिकतम 3 करोड़ तक की जायेगी। गैर-प्रदूषणकारी सूक्ष्म एवं लघु उद्योगों को प्रदूषण निवारण मंडल से अनापत्ति प्राप्त करने से छूट दी जायेगी। निजी क्षेत्र में औद्योगिक पार्क स्थापना के लिये न्यूनतम क्षेत्र को कम कर 100 एकड़ के स्थान पर 50 एकड़ किया जायेगा।
नीति में 100 एकड़ या अधिक के नवीन/विस्तारित औद्योगिक क्षेत्रों में कुल भूमि की अधिकतम 20 प्रतिशत भूमि आवासीय/वाणिज्यिक गतिविधियों के लिये आरक्षित की जायेगी। प्रचलित अपात्र उद्योगों की सूची का युक्तियुक्तकरण कर उनकी संख्या को 52 से घटाकर 19 किया जाएगा, ताकि ज्यादा से ज्यादा उद्योगों को सहायता मिल सके। सभी प्रकार के उद्योगों के लिये प्रदेश में जिलों का वर्गीकरण समाप्त कर पूरे प्रदेश के लिये एक समान सुविधा/सहायता दी जायेगी।
राज्य पर्यटन नीति में संशोधन
प्रदेश में पर्यटन का समग्र विकास करने और पर्यटन के क्षेत्र में और अधिक निजी निवेश लाने के लिये मध्यप्रदेश राज्य पर्यटन नीति में संशोधन किये गये हैं।
संशोधनों के अनुसार पर्यटन के क्षेत्र में निवेश के सभी आवेदनों का सिंगल विंडो सिस्टम के माध्यम से निराकरण किया जायेगा। नीति में पर्यटन परियोजनाओं को सूचीबद्ध किया गया है। होटल में उपलब्ध कमरों पर विलासिता कर देयता से छूट को 2000 से 3000 रुपये किया गया है। हेरिटेज होटल में पूँजीगत व्यय पर अनुदान व्यय को 25 प्रतिशत अथवा डेढ़ करोड़ रुपये से बढ़ाकर व्यय का 35 प्रतिशत अथवा डेढ़ करोड़ कर दिया गया है।
बजट होटल निर्माण अनुदान प्राप्त करने के लिये 50 के स्थान पर 25 कमरे केनिर्माण की अनिवार्यता कर दी गई है। अधिकतम किराया 2000 रुपये रखे जाने की शर्त को हटा दिया गया है। पर्यटन विभाग के लेंड बेंक पर कन्वेंशन सेंटर बनाये जाने पर छूट संबंधी प्रावधान के साथ-साथ अब निजी भूमि पर भी कन्वेंशन सेंटर बनाये जाने को प्रोत्साहित किया जायेगा।
भूमि निवर्तन नीति
मंत्रि-परिषद् ने पर्यटन विभाग को आवंटित शासकीय भूमियों की नीलामी द्वारा निवर्तन नीति 2008 में संशोधन को भी अनुमोदित किया। इसके अनुसार पर्यटन विभाग को आवंटित शासकीय भूमियों का नीलामी द्वारा निवर्तन नीति के अंतर्गत भूमि निर्वतन को, राजस्व विभाग द्वारा जारी ‘निजी पूँजी निवेश के मामलों में सरकारी दखल रहित आवंटन नीति’ से मुक्त कर दिया गया है।
पर्यटन परियोजनाओं के लिये निवेशकों द्वारा माँग किये जाने पर ऐसी भूमियों के मामले, जो राजस्व विभाग की 2013 की नीति में वर्णित लेंड बेंक का हिस्सा है तथा पर्यटन विभाग को हस्तांरित नहीं की गई है, का निवर्तन राजस्व विभाग की 2013 की नीति द्वारा ही किया जायेगा।
वायु सेवा का विस्तार
प्रदेश के शहरों को आपस में वायु सेवा से जोड़ने के साथ ही पड़ोसी राज्यों के प्रमुख शहरों एवं पर्यटन-स्थलों को प्रदेश से जोड़ने के लिये नीति में परिवर्तन किया गया है।
संशोधित नीति के अनुसार प्रदेश को वायु सेवा से जोड़ने वाले निजी क्षेत्र के ऑपरेटरों को खुली निविदा जारी कर चिन्हित किया जायेगा। निजी ऑपरेटर द्वारा कम से कम 9 सीटर विमान चलाया जायेगा। निजी ऑपरेटर प्रत्येक सेक्टर में किराया निर्धारित करने के लिये स्वतंत्र होगा। निजी ऑपरेटर को प्रदेश के एक शहर से दूसरे शहर की उड़ान सेवा तथा प्रदेश के एक शहर से दूसरे प्रदेश के एक शहर की उड़ान के लिये प्रतिमाह अनुदान दिया जायेगा। उड़ानों के उपयोग में आने वाले ईंधन पर वेट की प्रतिपूर्ति राज्य शासन द्वारा ऑपरेटर के साथ किये गये एमओयू की अवधि तक इस शर्त पर की जायेगी कि ऑपरेटर द्वारा ईंधन का क्रय प्रदेश से किया जाये।
निजी ऑपरेटर से अनुबंध की सीमा संचालन शुरू करने की तिथि से 3 वर्ष की होगी। सेवाएँ संतोषप्रद होने की स्थिति पर वित्त विभाग की अनुमति से अनुबंध दो वर्ष तक बढ़ाया जा सकता है। राज्य शासन को अधिकार होगा कि वह किसी भी सेक्टर में किसी अन्य ऑपरेटर को वायु सेवा संचालित करने की अनुमति ऐसी शर्त पर दे सकेगा, जो उपरोक्तानुसार चयनित ऑपरेटर के साथ अनुबंधित शर्तों से अधिक अनुकूल न हो।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश के प्रमुख शहरों को वायु सेवा से जोड़ने के संबंध में 2010 में नीति निर्धारित की गई थी। एयर टेक्सी ऑपरेशन के लिये खुली निविदा आमंत्रित कर सितम्बर 2011 से आगामी 3 वर्ष के लिये मेसर्स वेन्चुरा एयरकनेक्ट को अनुमति दी गई थी, तब से अगस्त 2014 तक भोपाल, इंदौर, जबलपुर, रीवा, सतना, ग्वालियर तथा खजुराहो में इसने अपनी हवाई सेवाएँ उपलब्ध करवायीं। इस अवधि में कुल 7000 से अधिक उड़ान के माध्यम से लगभग 20 हजार यात्री को वायु सेवा उपलब्ध करवायी गई।