भोपाल, अप्रैल 2016/ इंदौर में 8 से 10 अप्रैल को हुए देश के पहले वैश्विक बाँस सम्मेलन में मंथन के बाद केन्द्र एवं राज्य शासन को बाँस क्षेत्र विकास के लिये महत्वपूर्ण अनुशंसाएँ भेजी गयी हैं। सम्मेलन में पहले दिन देश में बाँस उत्पादन बढ़ाने, उपचारण, भण्डारण, दूसरे दिन बाँस के विभिन्न उपयोग और तीसरे दिन बाँस से संबंधित तकनीकी मशीनरी तथा इंजीनियरिंग विषय पर चर्चा की गयी। चर्चा में 15 बाँस उत्पादक देश, 25 से अधिक प्रदेशों के बाँस से जुड़े शिल्पकार, उत्पादक, वैज्ञानिक, डिजाइनर, आर्किटेक्ट, इंजीनियर, व्यापारी, व्यवसायी, औद्योगिक घरानों, विश्वविद्यालयों के शोधार्थियों ने भाग लिया। मुख्यमंत्री के अलावा केन्द्र और राज्य सरकारों के मंत्री ने भी भाग लिया। शासन को प्रेषित अनुशंसाएँ इस प्रकार हैं-

नीति समर्थन एवं नियामक ढाँचा

भारतीय बाँस विजन-2025, व्यापक राष्ट्रीय बाँस नीति के लिये रणनीति एवं कार्य आयोजना का समय-सीमा के साथ निर्धारण करना।

भारत शासन स्तर पर बाँस क्षेत्र के लिये कार्य कर रही बहु-संस्थाओं को समाप्त कर एकीकृत रूप से सम्पादन करने के लिये ‘राष्ट्रीय बाँस विकास प्राधिकरण’ का निर्माण करना।

प्रारंभिक स्तर पर ‘परिणाम आधारित वित्त पोषण’ द्वारा बाँस उत्पादकों एवं उद्यमियों को प्रोत्साहित करना।

अनुसंधान, तकनीकी, उत्पादन निर्माण, मशीनरी, व्यापार, सूचनाएँ और ज्ञान को साझा करने के लिये विश्व में दक्षिण-दक्षिण क्षेत्रीय सहयोग को बढ़ावा देना।

जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम करने के लिये देश को अधिक बड़ी भूमिका का निर्वहन करना।

कृषि क्षेत्र के लिये अधिक उपज वाली प्रजातियाँ

अधिक उपज एवं उत्पादन क्षमता वाली नई बाँस प्रजातियों की पहचान एवं विकास।

कृषकों के लिये बाँस खेती को लाभकारी बनाने के लिये आधुनिक प्रसारण की विधियों एवं एकीकृत विधियों का विकास करना।

 

बाँस के विदोहन के लिये उपयुक्त विधियों एवं उपकरणों का अनुसंधान एवं विकास।

कटाई सह क्रियाओं जैसे बड़े तथा छोटे भूमिधारकों के लिये बाँस के साथ वर्मी कम्पोस्ट के साथ बेहतर अनुकूलनशीलता।

भवन निर्माण, ऊर्जा तथा अन्य क्षेत्रों में बाँस का प्रयोग

विद्यमान संस्थाओं में बाँस के संरचनात्मक तथा पर्यावरण के अनुकूल गुण तथा नये उत्पादों के विकास द्वारा बाँस के उपयोग का विस्तार करने के लिये नये तकनीकी केन्द्रों की स्थापना।

जन-भागीदारी के साथ-साथ प्रमुख संस्थानों जैसे राष्ट्रीय डिजाइन संस्थान द्वारा परम्परागत बाँस शिल्पकारों को आधुनिक उपकरण सेट, प्रशिक्षण तथा एक्सपोजर देना।

संरचनात्मक बाँस उत्पादन के लिये एस.ओ.पी.आई.एस. कोड तथा निर्माण कोड का विकास करना।

बाँस से संबंधित उत्पादों को शहरी एवं ग्रामीण क्षेत्रों के गृह निर्माण कार्यों में सम्मिलित करने के लिये भारत शासन एवं राज्य शासन से निर्देश प्रसारित करना।

उद्यमों का विकास : व्यापार मॉडल

बाँस के प्रसरण, वृक्षारोपण तथा उद्यमों के लिये विश्वसनीय वित्तीय मॉडलों का विकास करना। बाँस उत्पादों के लिये प्रारंभ से अंत तक मूल्य श्रंखला का निर्माण।

बाँस विकास निधि की स्थापना, वृहद स्तर पर औद्योगिक विकास को सुगम बनाने के लिये लाभकारी कर नीति का निर्माण।

ई-कॉमर्स द्वारा बाँस उत्पादों के विक्रय करना।

दुर्गम एवं अविकसित क्षेत्रों में गरीबी उन्मूलन के लिये बाँस को कृषि एवं वानिकी से जोड़ने वाला लाभकारी व्यापारिक मॉडल का निर्माण करना।

वन एवं सार्वजनिक भूमियों पर बाँस

वन क्षेत्रों में बाँस प्रबंधन के लिये संयुक्त वन प्रबंध समितियों को सशक्त बनाना।

सामूहिक पुष्पित बाँस क्षेत्र को पुर्नस्थापित करना।

बाँस वृक्षारोपण के लिये वन भूमि को लीज पर देना।

बाँस क्षेत्र के विकास के लिये कार्य कर रही अंतर्राष्ट्रीय संस्था ‘इनबार’ द्वारा विश्व-स्तर पर बाँसों एवं बेंत संसाधनों का सर्वेक्षण एवं उपयोगिता का डाटा-बेस तैयार करना।

अवसरों का सृजन करने के लिये भारत में तकनीकी, मानवीय तथा संस्थागत क्षमता का विकास करने के लिये शासकीय, सिविल सोसाइटी तथा निजी क्षेत्र को जोड़ने के लिये जीएबीएआर (GABAR-Global Assessment of Bamboo and Rattan) का शुभारंभ किया गया।

उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में बाँस

APEDA की तरह बाँस बोर्ड की स्थापना करना।

समस्त क्षेत्र के लिये एक समान परिवहन नियम।

जागरूकता निर्मित करने के लिये देश के भिन्न-भिन्न हिस्सों में प्रत्येक दो वर्ष में एक बार विश्व बाँस सम्मेलन का आयोजन करना।

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