भोपाल, जनवरी 2013/ मध्यप्रदेश के माध्यमिक एवं प्राथमिक शिक्षा पाठ्यक्रम की राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान एवं प्रशिक्षण परिषद सहित अन्य राज्यों ने सराहना की है। विशेषकर नैतिक शिक्षा, कृषि का व्यवहारिक ज्ञान, योग शिक्षा एवं वैदिक गणित जैसे नये विषय को शामिल करने के नवाचारी प्रयासों की कई राज्यों ने प्रशंसा की है। यह जानकारी यहाँ मंत्रालय में मध्यप्रदेश पाठ्य-पुस्तक स्थायी समिति की बैठक में दी गई।
मुख्यमंत्री ने बैठक में कहा कि बच्चों को प्राथमिक कक्षाओं से ही नैतिक शिक्षा दी जाना चाहिये। मुख्यमंत्री ने कहा कि समाज में विकृतियों को दूर करने के लिये नैतिक शिक्षा जरूरी है। नैतिक शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम से जोड़ना ही शिक्षा देने का सही तरीका है। मध्यप्रदेश के महापुरुषों एवं विशिष्ट व्यक्तित्वों की जानकारी भी प्राथमिक कक्षाओं में पढ़ाई के दौरान ही मिल जाना चाहिये।
उल्लेखनीय है कि कुछ राज्य ने अपने पाठ्यक्रमो में सुधार के लिये मध्यप्रदेश के पाठ्यक्रम का उदाहरण अपना रहे हैं। दिल्ली सरकार ने मध्यप्रदेश से उर्दू की किताब की एक कविता दुआ‘ को अपने यहाँ कक्षा पहली में पढ़ाने के लिये चुना है। झारखंड सरकार ने कक्षा एक से 12वीं तक की किताबों को अध्ययन के लिये बुलाया है। इसके अलावा महाराष्ट्र, गुजरात और कर्नाटक राज्यों ने भी पाठ्यक्रम सुधार के क्षेत्र में मध्यप्रदेश के नवाचारी प्रयासों में रूचि दिखाई है।
उल्लेखनीय है कि गीता के सार और बेटियों की गरिमा एवं महत्व पर भी पाठ शामिल किये गये हैं। केन्द्रीय माध्यमिक शिक्षा मंडल ने कृषि आधारित पाठों को शामिल करने की सराहना की है। कक्षा छठवीं, सातवीं और आठवीं में योग शिक्षा, नैतिक शिक्षा और मध्यप्रदेश पर आधारित पाठ पढ़ाये जाने की पहल को आदर्श माना गया है। अन्य राज्य भी इसे अपनाने की पहल कर रहे हैं।
बैठक में स्कूल शिक्षा मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनीस, प्रभारी प्रमुख सचिव स्कूल शिक्षा रजनीश वैश, आयुक्त लोक शिक्षण अरुण कोचर, संचालक राज्य शिक्षा केन्द्र श्रीमती अरुण रश्मि शमी, पाठ्यक्रम समिति के अध्यक्ष गोविन्द शर्मा एवं सदस्य उपस्थित थे।