भोपाल, मई 2014/  पुनर्वास विभाग की उपयोगिता नहीं रहने और इस विभाग के सभी कार्य केन्द्र सरकार के अधिनियम तथा राजस्व आयुक्त कार्यालय के अंतर्गत आने के कारण इसे बंद किया जायेगा। राजस्व एवं पुर्नवास विभाग की समीक्षा बैठक में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी।

भारत सरकार के भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकर और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम लागू होने और राजस्व आयुक्त कार्यालय स्थापित होने के कारण पुनर्वास विभाग की उपयोगिता नहीं रह गई है।

पुनर्वास विभाग की स्थापना पाकिस्तान और तिब्बत से आये विस्थापितों के पुनर्वास के लिये की गयी थी। पुनर्वास विभाग ने विकास परियोजनाओं के लिये अर्जित निजी भूमि के विस्थापितों के पुनर्वास की आदर्श पुनर्वास नीति 2002 बनायी थी। इसके बाद केन्द्र सरकार ने भी 2007 में पुनर्वास नीति बनायी। इस नीति के अनुक्रम में राज्य की पुनर्वास नीति को पुनरीक्षित करने का काम चलता रहा। केन्द्र सरकार का भूमि अर्जन अधिनियम 2013 आने से अब पुनर्वास पैकेज भी इसी अधिनियम के अंतर्गत दिया जायेगा। पुनर्वास पैकेज बनाने और लागू करने का काम कलेक्टर और पुनर्वास पुर्नव्यवस्थापन आयुक्त द्वारा किया जायेगा। इस प्रक्रिया में पुनर्वास विभाग के बने रहने का कोई औचित्य नहीं है। बैठक में निर्णय लिया गया कि राजस्व विभाग के अंतर्गत ही पुनर्वास शाखा काम करेगी। पुनर्वास विभाग के अंतर्गत पुनर्वास आयुक्त का विभागाध्यक्ष कार्यालय राजस्व आयुक्त कार्यालय में समाहित किया जायेगा।

मुख्यमंत्री ने निचले स्तर के राजस्व अधिकारियों के सभी खाली पद भरने के निर्देश दिये। कहा कि निचले स्तर से मिलने वाली भ्रष्टाचार की शिकायतों पर कठोर कार्रवाई की जायेगी। राजस्व से संबंधित सेवाओं के प्रदाय की प्रक्रिया को और ज्यादा प्रभावी बनाया जाए। राजस्व और भूमि संबंधी दस्तावेज के डिजिटाईजेशन का काम भी जल्दी पूरा हो।

शत-प्रतिशत राहत राशि का वितरण

बैठक में बताया गया कि ओला वृष्टि और असमय वर्षा से हुई फसल हानि के लिये राहत राशि प्रभावित किसानों को दी गयी है। प्रदेश के इतिहास में यह भीषणतम प्राकृतिक आपदा थी जिसमें किसानों को भारी मात्रा में फसल का नुकसान हुआ। पशु हानि और मकानों की क्षति हुई। किसानों के संकट को देखते हुए 2090 करोड़ की राहत राशि प्रभावित किसानों को वितरित की गई। राहत राशि वितरण का काम पूरा हो गया है।

शहरी क्षेत्रों के लिये खसरों का नया प्रारूप तैयार किया गया है। नागरिकों को उनकी भूमि के अभिलेख ऑनलाइन करवाने के लिये वेब आधारित जीआईएस एप्लीकेशन तैयार की गई है। गैर शासकीय संस्थाओं को भूमि आवंटन के लिये नीति का प्रारूप तैयार किया जा रहा है। प्रदेश में उपलब्ध शासकीय भूमि का ‘लेंड बैंक’ तैयार कर लिया गया है। निवेश को बढ़ावा देने के लिये शासकीय भूमि आवंटन की एकीकृत पारदर्शी नीति भी बनायी गई है। विभिन्न विभाग के पास उपलब्ध अतिरिक्त और अनुपयोगी भूमियों को वापिस लेने का अधिकार कलेक्टरों को दिये गये हैं ताकि निवेश के लिये इनका उपयोग हो सके। उद्योग विभाग को 16 हजार 638 एकड़ भूमि हस्तांतरित की गई है। मजरे-टोलों को राजस्व ग्राम बनाने की प्रक्रिया में अब तक 1100 राजस्व ग्राम बनाये गये हैं जो एक अक्टूबर 2014 से अस्तित्व में आ जायेंगे।

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