पेरिस से कोई 200 किलोमीटर दूर बेल्जियम बॉर्डर के पास जब बस एक रेस्त्रां पर रुकी तो जनरल मिशेल से मुलाकात हुई। वे फ्रांस के रिटायर्ड सेना कमांडर थे। उनसे मेरी बातचीत दो कारण से संभव हो पायी। एक, वे अंग्रेजी जानते थे और दो, उनको चाय पसंद थी।
जनरल ने बताया कि जयपुर के किले और राजपूतों की वीर गाथाएं वे अक्सर फ्रेंच में अनुवादित ब्रिटिश हिस्ट्री की किताबों से पढ़ते हैं। उन्हें महाराणा प्रताप के युद्ध कौशल की प्रेरक गाथाएं बेहद पसंद हैं। उनसे बातें आगे बढ़ी तो मैंने पूछ ही लिया कि फ्रेंच नागरिकों को सबसे ज्यादा गर्व अपनी संस्कृति पर है, साहित्य पर है, इतिहास पर है या भाषा पर?
जनरल मिशेल का जवाब चौंकाने वाला था। वे बोले,”संस्कृति और भाषा तो हमारी रगों में हैं। रही बात गर्व की, तो हर फ़्रांसीसी माँ-बाप के बाद अपनी सेना पर गर्व करता है। इस देश में सेना का सम्मान सर्वोपरि है।” अचानक बूढ़े जनरल के झुर्रियों वाले चेहरे पर मुझे नेपोलियन की चमक दिखने लगी।
वे बोलते गए और मैं फ़ोन की नोटबुक में लिखता गया। जनरल ने कहा,”हमारी फौज का दुनिया में मुकाबला नहीं है। हमने बीते 2000 वर्षों में 168 प्रमुख युद्ध लड़े हैं। इनमे हमने 109 जीते, 10 बराबरी पर छूटे और 49 में हम पराजित हुए। अमेरिका से लेकर रूस तक ये विजय का कीर्तिमान आपको कहीं और नहीं मिलेगा।”
फ्रांस के इस रिटायर्ड जनरल से मुलाकात का जिक्र आज सिर्फ इसलिए क्यूंकि कुछ देर पहले फेसबुक की एक पोस्ट से गुजर रहा था। आँखें वहीँ ठहर गयी। भारत के लिए सर्वाधिक युद्ध लड़ने वाले जनरल ज़ोरावर चंद बक्शी का 24 मई को देहांत हो गया लेकिन उनकी अंतिम विदाई में, देश तो दूर की बात है, गली के लोग भी शरीक नहीं हुए।
महावीर चक्र, वीर चक्र और परम विशिष्ट सेवा मैडल से सम्मानित जनरल ज़ोरावर बक्शी ने दित्तीय विश्व युद्ध से लेकर भारत पाकिस्तान की 1971 की लड़ाई तक बहादुरी के ऐसे कारनामे दर्ज़ किये जिसे आजतक कोई दूसरा जनरल दोहरा नहीं सका। जनरल बक्शी ने आज़ादी के ठीक बाद पाकिस्तान की सेना को कश्मीर से खदेड़ा था और 1965 के युद्ध में अपनी अगुवाई में एक बार फिर पाकिस्तान को उरी सेक्टर में ज़बरदस्त मात दी थी।
भारतीय सेना में वीरता और सेवा के सबसे ज्यादा सम्मान उनकी वर्दी पर कढ़े गए। पर दुर्भाग्य देखिये। 97 वर्ष की आयु में सेना के इस सबसे वरिष्ठतम और सबसे ज्यादा डेकोरेटेड जनरल ने दिल्ली के अपने घर से जब आखिरी सफर शुरू किया तो चंद फौजियों, रिश्तेदारों को छोड़कर उनके साथ और कोई नहीं था।
दिन भर ट्वीटर पर नाक रगड़ने वाले सेक्युलर गायब थे। बार बार राष्ट्र की दुहाई देने वाले राष्ट्रवादी इस यात्रा से नदारद थे। सोशल मीडिया के सुपारी सैनिक भी जनरल ज़ोरावर के लिए निशुल्क पोस्ट और ट्वीट करने के लिए तैयार न हुए।
सेना के सुप्रीम कमांडर और देश के प्रथम नागरिक राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने यूँ तो 24 मई को अपने ट्विटर हैंडल से 21 ट्वीट किये लेकिन शिमला की वादियों में विश्राम करते समय वे इस महानायक को लास्ट सैल्यूट देने के लिए 21 में से 1 भी ट्वीट न कर सके। यह तो गनीमत रही कि सेना कवर करने वाले कुछ पत्रकारों ने एकाध वेबसाइट और अख़बार में जनरल ज़ोरावर बक्शी को याद कर लिया।
मुझे एक बार फिर जनरल मिशेल की याद आयी। उन्होंने चाय पीते समय कहा था।”बच्चे को माँ और देश को सैनिक हर बड़ी मुसीबत से बचाते हैं। इसलिए इन दोनों के चरित्र पर हमेशा गर्व करना।”
…. जनरल ज़ोरावर, हमने आपको बेशर्मी से भुला दिया।
हम सब को माफ़ कर दीजिये। देश के चपरासी से लेकर राष्ट्रपति तक को।
एंकर से लेकर मीडिया मुग़ल तक को।
पप्पू, बबुआ, बुआ, काली-सफ़ेद दाढ़ी,
सभी को माफ़ कर दीजिये।
हमें फ्रांस बनने में अभी समय लगेगा।
अभी हमे फ्रांस की शैम्पेन पीने दीजिये। परफ्यूम छिड़कने दीजिये।
कुछ और समझदार होंगे
तो फ्रांस के ज़ज़्बे और ज़मीर से भी मुखातिब होंगे।
…. जनरल ज़ोरावर !
अगर आपकी महानता की गाथाएं ट्वीटर पर होतीं,
व्हाट्सअप पर होतीं, फेसबुक पर होतीं
आप पर बायोपिक बनी होती
आपकी कोई पीआर एजेंसी होती
पीटीआई, एएनआई से कोई पैड कांट्रैक्ट होता
आपका कोई सोशल मीडिया मैनेजर होता
कोई चावला, चौधरी, गोस्वामी, कुमार, दत्त, चौबे जैसा खास दलाल होता
तब हम बेखबर न होते
हम आपके फ्यूनरल को मिस न करते
तब हम ज़रूर आपकी मौत को अपने पेज पर शेयर करते
.. सच जनरल
करोड़ों करोड़
हिंदुस्तानी आपको याद करते
आपके नाम के आगे ज़रूर
RIP लिखते।
(राजेंद्र कोठारी की फेसबुक वॉल से साभार)