इंदौर। इंदौर हाईकोर्ट ने उच्च शिक्षा विभाग को तगड़ा झटका दिया है। कोर्ट ने 2012-13 से कॉलेजों में लागू की जा रही ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया को खारिज कर दिया है। उसने कहा कि उच्च शिक्षा विभाग कॉलेजों को ऑनलाइन प्रक्रिया से प्रवेश देने के लिए किसी को बाध्य नहीं कर सकता। यह फैसला मप्र विश्वविद्यालय अधिनियम 1973 के आधार पर दिया गया है।
उच्चशिक्षा विभाग ने नए शिक्षा सत्र के लिए कॉलेजों में ऑन लाइन प्रवेश का नियम लागू किया था। इस बारे में प्रदेश भर के सरकारी व निजी कॉलेजों को दिशा निर्देश भी जारी किए गए थे। ऑटोनॉमस कॉलेजों को भी अपने स्तर पर प्रवेश की छूट नहीं दी गई। इस आदेश के खिलाफ इंदौर के ऑल्टियस कॉलेज व रेनेसां कॉलेज ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी। न्यायमूर्ति शांतनु केमकर व एससी शर्मा की बैंच के निर्णय से याचिकाकर्ता दोनों कॉलेजों को अपने स्तर प्रवेश प्रक्रिया तय करने की अनुमति मिल गई है। इसके साथ ही इसका फायदा दूसरे कॉलेजों को भी मिलने की संभावना बन गई है।
अधिनियम सर्वोपरि
कोर्ट ने कहा कि अधिनियम का अध्यादेश 7 कॉलेज के प्राचार्य या प्रमुख को यह अधिकार देता है कि वह प्रवेश प्रक्रिया निर्धारित करे। उच्च शिक्षा विभाग कॉलेजों को अपनी प्रवेश प्रक्रिया तय करने से रोक नहीं सकता। यदि विभाग को नई प्रक्रिया लागू करना है तो उसके लिए पहले अधिनियम में उक्त संशोधन जरुरी है। विभाग सिर्फ आदेश या गाइडलाइन जारी कर अध्यादेश को नकार नहीं सकता।
निजी कॉलेजों के रास्ते खुले
कोर्ट का आदेश फिलहाल भले ही दो कॉलेजों को ऑनलाइन प्रक्रिया से मुक्त कर रहा है, लेकिन प्रदेश भर के कॉलेज को ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया से बाहर होने का रास्ता मिल गया है। उम्मीद की जा रही है कि बाकी कॉलेज भी ऑनलाइन प्रक्रिया के खिलाफ कोर्ट की शरण लेंगे।
कोर्ट के आदेश को उच्च शिक्षा विभाग के लिए सेमेस्टर प्रणाली के बाद सबसे बड़ी असफलता माना जा रहा है। प्रदेश में कुल 1055 कॉलेज हैं। सरकारी कॉलेजों की संख्या 636 है। इन सभी को ऑनलाइन प्रवेश प्रक्रिया के दायरे में लाया गया है। प्रवेश प्रक्रिया 20 मई से शुरू हो रही है। वैसे तो कोर्ट का आदेश केवल इंदौर के दो कॉलेजों के लिए है लेकिन अब सरकारी कॉलेजों को छोड़ सभी कॉलेजों के कोर्ट जाने की संभावना है। इससे बड़े पैमाने पर की गई व्यवस्थाएँ बेमानी हो जाएँगी।