भोपाल, जून 2014/ राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने कहा है कि वैज्ञानिक ज्ञान अनुसंधान और प्रौद्योगिकी नवाचार के रचनात्मक उपयोग से देश की बड़ी समस्याओं का समाधान संभव है। वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी के ज्ञान से सम्पन्न देश को कोई पीछे नहीं कर सकता है। वैज्ञानिक शिक्षा, तकनीकी अनुसंधान, नवाचार और गुणात्मक अनुसंधान नये युग में राष्ट्र की प्रगति के संकेतक हैं। यहाँ भारतीय विज्ञान शिक्षा एवं अनुसंधान संस्थान के दूसरे दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति ने विद्यार्थियों का आव्हान किया कि वे अपने ज्ञान और कौशल के सहारे आत्म-विश्वास पैदा करें और नये भारत का निर्माण करने में आगे बढ़ें। यह दुनिया युवा शक्ति की है।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारत की युवा शक्ति और प्रतिभा के बेहतर उपयोग के लिये नये रास्ते बनाने की जरूरत है। उन्होंने देश में उच्च शिक्षा की उत्कृष्टता और उच्च मापदण्डों के संबंध में चिंता करते हुए कहा कि देश के विश्वविद्यालय दुनिया के 200 सर्वोच्च विश्वविद्यालय में नहीं जबकि करीब 1500 साल पहले हमारे यहाँ नालंदा और तक्षशिला जैसे विश्वविद्यालय थे, जिनमें विश्व से विद्यार्थी पढ़ने आते थे। श्री मुखर्जी ने कहा कि भारत में प्रतिभा की कोई कमी नहीं है और भारत उच्च शिक्षा में उत्कृष्टता के मापदण्ड स्थापित कर सकता है। उन्होंने वैज्ञानिक हरगोविंद खुराना, डॉ. चन्द्रशेखर, सर सी वी रमन और डॉ. अमृत्य सेन का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीय प्रतिभाओं को और भी नोबल पुरस्कर मिल सकते हैं। ये प्रतिभाएँ भारत में पोषित हुई लेकिन विदेशी विश्वविद्यालयों में उच्च स्तरीय अध्ययन के बाद पहचानी गईं। श्री मुखर्जी ने कहा कि यह संतोषप्रद है कि भारतीय उच्च शिक्षा संस्थानों में सुधार हो रहा है। हाल ही में आई आई टी मद्रास, मुम्बई और गुवाहटी दुनिया के शीर्षस्थ संस्थान की सूची में शामिल हुए। राष्ट्रपति ने कहा कि उच्च शिक्षा संस्थानों में शिक्षण, प्रशिक्षण के तंत्र का विकास, बौद्धिक समागम और अकादमिक संकाय का आदान-प्रदान होना चाहिये। इसके लिये संस्थागत आंतरिक व्यवस्थाएँ स्थापित की जाना चाहिये।
राष्ट्रपति ने कहा कि लोगों मे वैज्ञानिक अभिरूचि जागृत कर ही देश के मानव और प्राकृतिक संसाधन का बेहतर उपयोग किया जा सकता है। उन्होंने भारतीय विज्ञान एवं अनुसंधान संस्थान द्वारा इस दिशा में की जा रही पहल की सराहना की।
राज्यपाल रामनरेश यादव, केन्द्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री श्रीमती स्मृति जुबिन ईरानी, मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने भी समारोह को संबोधित किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि उच्च शिक्षा में अनुसंधान में थोड़ी कमी रह गई है जबकि भारतीय प्रतिभाएँ स्वभाविक रूप से खोजी प्रवृत्ति की हैं। बच्चों पर बस्तों के बढ़ते बोझ से उनकी स्वभाविक प्रतिभा और खोजी प्रवृत्ति प्रभावित हो रही है। उनकी प्रतिभा कुंठित हो रही है। वे हर चीज रटने लगे हैं। यदि बच्चों को स्वभाविक वातावरण में शिक्षा-दीक्षा दी जाये तो ज्ञान का सृजनात्मक प्रकटीकरण होगा। यदि बस्ते का बोझ घट जाये तो वे रचनात्मक रूप से आगे बढ़ेंगे।
राष्ट्रपति ने श्री सांई पुनीत देसाई को राष्ट्रपति पदक से सम्मानित किया। श्री आकाश जैन को निदेशक पदक से एवं श्री असीम श्रीवास्तव (जीव रसायन विज्ञान), श्री सांई पुनीत देसाई (रसायन विज्ञान), श्री गोसाबी सौरभ मदन (गणित), श्री आकाश जैन (भौतिक विज्ञान) को प्रवीणता पदकों से सम्मानित किया।
समारोह में 44 विद्यार्थियों को बीएसएमएस की उपाधि और अन्य 4 विद्यार्थी को पीएचडी की उपाधि प्रदान की गई। राष्ट्रपति ने प्रोफेसर गोवर्धन मेहता को संस्थान की डीएससी मानार्थ उपाधि प्रदान की।