राकेश दुबे

ये सरकार सबसे अलग है, जैसे जुमले प्रमाणित होने लगे हैं। हाल ही में आया एक आंकड़ा देश की जो तस्वीर बता रहा है वो यह साबित करता है कि वर्तमान सरकार से पहले देश में भ्रष्टाचार चरम पर था या भ्रष्टाचार की रोकथाम करने वाले संगठन निष्क्रिय थे। आज स्थिति यह है देश के 95 प्रतिशत प्रतिपक्षी राजनेता सीबीआई या अन्य किसी केन्द्रीय संगठन की जांच के रडार पर हैं।

सवाल है क्यों? क्या प्रतिपक्ष में इस तादाद में भ्रष्ट लोग है? सत्ता में बैठे या सत्ताधारी दल की ओर दौड़ लगा रहे लोग परम पवित्र हैं? ऐसे में जाँच करने वाले संगठन के विवेक और कर्तव्य पर सवाल उठना लाजिमी है। कुछ वर्ष पहले ही देश की शीर्ष अदालत ने केंद्रीय जांच ब्यूरो की कारगुजारियों पर सख्त लहजे में टिप्पणी करते हुए उसे आड़े हाथ लिया था। यहां तक कि उसे अपने मालिक की आवाज दोहराने वाले ‘पिंजरे के तोते’ की संज्ञा दी थी।

मौजूदा दौर में सुप्रीम कोर्ट की यह गंभीर टिप्पणी हकीकत बनती नजर आ रही है। एक आकलन के अनुसार, केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो द्वारा विपक्षी राजनीतिक दलों के खिलाफ की जा रही जांच का आंकड़ा संप्रग सरकार के दौर के मुकाबले राजग सरकार के में कहीं आगे निकल गया है। यद्यपि कांग्रेस का कार्यकाल कई दशक लंबा रहा है, लेकिन राजग के महज आठ वर्षों के कार्यकाल में ही यह वृद्धि देखी गई है। जिस दौर में कांग्रेस व उसके गठबंधन की सरकारें रहीं तब कुल 72 राजनीतिक नेताओं को सीबीआई जांच का सामना करना पड़ा था। जिसमें साठ फीसदी राजनेता विपक्ष से जुड़े हुए थे।

इसके विपरीत वर्ष 2014 में सत्ता में आए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के महज आठ साल के कार्यकाल के दौरान अब तक कम से कम 124 प्रमुख राजनेता सीबीआई की जांच के दायरे में हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि इन राजनेताओं में कुल 118 प्रतिपक्षी दलों से हैं। ऐसे में सवाल उठता है कि करीब 95 प्रतिशत विपक्षी राजनेता ही सीबीआई की जांच के रडार पर क्यों हैं?

केंद्रीय सत्ता द्वारा सीबीआई के दुरुपयोग का मुद्दा लगातार सार्वजनिक बहस में गाहे-बगाहे उठता रहता है। इसके बावजूद न तो सरकार पीछे हटती नजर आती है और न ही केंद्रीय जांच एजेंसी अपनी प्रतिष्ठा फिर हासिल करने के लिये प्रतिबद्ध नजर आती है। एक समय था कि जब किसी बड़े मामले की पुलिस और राज्यों की जांच एजेंसियों से जांच करवायी जाती थी तो एक सुर में मामले की तह तक जाने के लिये सीबीआई जांच की मांग पहले उठती थी। खासकर पेचीदा मामलों की तह तक जाने के लिये यह विश्वास था कि सीबीआई दूध का दूध और पानी का पानी कर देगी। अब ऐसा विश्वास नहीं होता क्यों?

जो तथ्य सामने आये वे इतने वास्तविक व तार्किक हैं कि सिर्फ प्रतिपक्षी दलों के खिलाफ मामले दर्ज होने को महज संयोग मानकर खारिज नहीं किया जा सकता। इस मामले में जांच एजेंसी के एक अधिकारी का वह दावा असंगत लगता है कि सिर्फ प्रतिपक्षी दलों के बड़े राजनेताओं को ही निशाना नहीं बनाया जा रहा है। अध्ययन में हासिल आंकड़े तो कम से कम यही बताते हैं कि प्रतिपक्षी दलों के राजनेताओं को सत्तारूढ़ दल के राजनैतिक लक्ष्यों को साधने के लिये निशाने पर लिया जा रहा है। केंद्रीय एजेंसी की कारगुजारियों के चलते वह ही खुद सार्वजनिक जांच के दायरे में आ रही है।

याद कीजिये,पश्चिम बंगाल विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस ने राज्य में केंद्रीय जांच एजेंसी की अति सक्रिय कारगुजारियों के खिलाफ यह प्रस्ताव पारित किया था। सदन में राज्य की मुख्यमंत्री ममता बैनर्जी ने राज्य के भाजपा नेताओं पर सीबीआई व ईडी के साथ मिलकर अपनी योजनाओं को क्रियान्वित करने का आरोप लगाया था।प्रश्न यह नहीं है कि प्रतिपक्ष शासित किसी राज्य में केंद्रीय जांच एजेंसी की अति सक्रियता राज्य के भाजपा नेताओं के इशारे पर हो रही है या केंद्र सरकार के दबाव में, महत्वपूर्ण यह है कि देश की बड़ी जांच एजेंसी का दुरुपयोग अस्वीकार्य है। जो इन राष्ट्रीय संस्थाओं की बुनियाद को कमजोर करता है। इससे देश का संवैधानिक व लोकतांत्रिक ढांचा भी कमजोर होता है।

इन दिनों में कई राज्यों में प्रतिपक्षी दलों के राजनेता अपनी पार्टियां छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं। कहा जा रहा है कि वे विभिन्न मामलों में जांच के भय से पाला बदल रहे हैं, यहाँ यह भी सवाल उठता है, प्रतिपक्ष में रहते हुए दागदार, भाजपा में आते ही परम पवित्र क्यों कहलाने लगते हैं और शुचिता का भाषण देनेवाली भाजपा उन्हें स्वीकार क्यों कर रही है? देश का जनमत भी सदैव भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्त कार्रवाई के पक्ष में रहता है, लेकिन राजनीतिक लाभों के लिये सिर्फ ऐसे निशाने तार्किक नहीं हो सकते।
(मध्यमत)
डिस्‍क्‍लेमर–
 ये लेखक के निजी विचार हैं। लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता, सटीकता व तथ्यात्मकता के लिए लेखक स्वयं जवाबदेह है। इसके लिए मध्यमत किसी भी तरह से उत्तरदायी नहीं है। यदि लेख पर आपके कोई विचार हों या आपको आपत्ति हो तो हमें जरूर लिखें।
—————-
नोट– मध्यमत में प्रकाशित आलेखों का आप उपयोग कर सकते हैं। आग्रह यही है कि प्रकाशन के दौरान लेखक का नाम और अंत में मध्यमत की क्रेडिट लाइन अवश्य दें और प्रकाशित सामग्री की एक प्रति/लिंक हमें [email protected]  पर प्रेषित कर दें। – संपादक

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here