यूं ही नहीं हटेंगे कमांडो प्रवक्‍ता संबित पात्रा!

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अजय बोकिल 
राजनीतिक पार्टियों के प्रवक्ताओं की नियुक्तियां और उन्हें हटाया जाना बहुत बड़ी खबर नहीं होती, अगर मामला भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता डॉ. संबित पात्रा का न हो। हाल में एक ‘खबर’ फेसबुक पेज पर तेजी से वायरल हुई कि संबित पात्रा को भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता पद से हटा दिया गया है। इसके पीछे अटकल यह थी ‍कि भाजपा की दृष्टि से पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव नतीजों के निराशाजनक परिणामों के बाद ऐसा हुआ है। दूसरी अटकल यह थी कि राजीव प्रताप रूड़ी की राष्ट्रीय प्रवक्ता पर तैनाती का अपुष्ट संदेश यह चला गया कि संबित तो गए।

हालांकि यह खबर पूरी तरह फर्जी थी। लेकिन इससे यह तो साबित हुआ ही कि संबित प्रवक्ता के रूप में कितने लोकप्रिय (या अलोकप्रिय?) हैं। उनका कथित रूप से ‘जाना’ भी कुछ लोगों को खुश करने वाला था तो कई के लिए व्यथित करने वाला भी था। ऐसे में यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि संबित में ऐसा क्या है, जो दूसरों के लिए ईर्ष्या अथवा आकर्षण का कारण है? क्या संबित की अनावश्यक उग्रता, तड़क हाजिर जवाबी और दूसरों पर हावी होने की एरोगेंट स्टाइल उन्हें दूसरे प्रवक्ताअों से अलग करती है? या फिर संबित ने राजनीतिक प्रवक्तागिरी को भी कमांडो का रूप दे दिया है?

यकीनन जो खबर मीडिया में वायरल हुई, वह फेक थी। लेकिन इससे जो कंटेंट और प्रतिक्रियाएं सामने आईं वह दिलचस्प थीं। मसलन एक ने ‘दुखी’ मन से कहा कि सरकार मनोरंजन टैक्स भी लेती है और संबित को भी पद से हटा देती है। ऐसा नहीं चलेगा। दूसरे ने लिखा ‘संबित पात्रा (पद पर) नहीं रहे। एक ने व्याकुलता से कहा कि सरकार मनोरंजन टैक्स भले बढ़ा दे, लेकिन संबित को पद से न हटाए।

जो फेसबुक पोस्ट वायरल हुई थी, उसमें कहा गया था- संबित पात्रा को प्रवक्ता पद से हटाया गया। अब मंदिर कौन बनाएगा? इस पोस्ट को हजारों लाइक्स मिले। जब खुद संबित का ध्यान इस फेक न्यूज पर गया तो उन्होंने एक घुटे हुए राजनीतिक प्रवक्ता की तरह अपने ट्विटर हैंडल से इसके लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा दिया।

वैसे भी किसी राजनीतिक पार्टी के प्रवक्ता का काम पार्टी लाइन को हर हाल में डिफेंड करना होता है। इस अर्थ में प्रवक्ता केवल नि‍मित्त होता है। लेकिन संबित जैसे प्रवक्ता बिरले ही होते हैं, जो खुद खबर बन जाते हैं। संबित की चर्चा इसलिए भी कि भाजपा लगभग हर उस मंच पर पार्टी का पक्ष रखने संबित को भेजती है, जहां उसके मुश्किल में फंसने का अंदेशा होता है। पेशे से सर्जन रहे संबित अपने धारदार और तिकड़मी तर्कों से पार्टी को किसी भी असहज‍ स्थिति से निकालने की जी तोड़ कोशिश करते हैं।

हालांकि कई बार वे अपने बयानों के कारण विवादों में भी घिरे हैं। मसलन भोपाल में ही नेशनल हेराल्ड की जमीन पर प्रेस कांफ्रेंस का उनका स्टंट उलटा पड़ गया था। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि संबित की फ्लॉप प्रेस कांफ्रेंस ने ही संकेत दे दिया था कि इस बार भाजपा की गाड़ी सत्ता की पटरी से उतरने वाली है। एक बार एक टीवी शो में संबित ने कांग्रेस के लोगों से ‘भारत माता की जय’ के नारे लगवा दिए थे तो एक अन्य मामले में जब संबित से (यौन प्रताड़ना के आरोप में फंसे) पूर्व मंत्री एमजे अकबर पर सवाल पूछा गया तो संबित हाथ जोड़कर पतली गली से निकल लिए। एक दफा संबित ने सपा नेता आजम खान को भारतीय सेना का विरोधी कहकर खूब लताड़ा था तो एक बार संबित का ‘अल्लाह भक्त’ जुमला भी खूब चर्चित हुआ था।

संबित मूलत: ओडिया भाषी हैं, लेकिन उनकी हिंदी और अंगरेजी पर भी खासी पकड़ है। वे असहज करने वाले सवालों से परेशान होने के बजाए सामने वाले पर उसका ही सवाल उलटाने में ज्यादा यकीन रखते हैं। इसके लिए वो उद्दंडता की सीमा पार करने में संकोच नहीं करते। इतिहास को तोड़-मरोड़ना भी उनके बाएं हाथ का खेल है। उनकी तर्क और प्रतितर्क क्षमता गजब की है। झूठ और सच के बीच वो इतनी सफाई से सर्फिंग करते हैं कि सामने वाला समझ ही नहीं पाता कि क्या हकीकत है और क्या फसाना है?

अमूमन प्रवक्ताओं की बहस में लगातार बाउंसर फेंके जाते हैं, बिना यह चिंता किए कि गेंद जा कहां रही है। संबित की प्रवक्ता शैली को लेकर दो तरह की राय है। कुछ लोग उन्हें एक लड़ाकू प्रवक्ता मानते हैं तो कुछ की नजर में वो वाचाल और सिर दुखने तक अपनी दलीलें पटकते रहने वाले राजनीतिबाज हैं। उनके हर मंच पर नमूदार होने को लेकर भी कई टीवी दर्शकों को ऐतराज है। कुछ संबित को देखकर टीवी बंद कर देते हैं या फिर चैनल चेंज कर देते हैं।

तमाम आलोचनाओं के बाद भी संबित में कुछ ऐसी बात है कि उनके हटाए जाने की फर्जी खबर भी इस कदर वायरल हुई। वरना प्रवक्ता को पद से हटाने की खबर सूरज चढ़ने और ढलने जितनी ही अहमियत रखती है। यह तो मानना होगा कि संबित ने राजनीतिक जुमलेबाजी के इस स्वर्णकाल में प्रवक्ताई को भी नए आयाम दिए हैं। इसमें शक नहीं।

राजनीतिक मंचों पर वे भाजपा की ओर से सर्वव्यापी ईश्वर की तरह नमूदार होते रहे हैं तथा राष्ट्रवाद, देशभक्ति, गोसेवा, स्युडो सेकुलरिज्म, नोटबंदी आदि मुद्दों की गर्म काढ़े की तरह व्याख्या करते रहे हैं। कुछ छिद्रान्वेषियों ने तो ‘संबित डिक्शनरी’ भी तैयार की है, जिसमें आतंकवादी, मौलाना, गद्दार,कठमुल्ला, जयचंद, शिशुपाल जैसे शब्द प्रचुरता से पाए गए हैं।

संबित एक श्रेष्ठ और धांसू राजनीतिक प्रवक्ता की अपेक्षित योग्यताओं को काफी हद तक पूरा करते हैं। मसलन एक सही व्यक्ति का सही (भाजपा) पार्टी में होना, उत्तर देते समय सवाल करने वाले को ही घेरने की उस्तादी, विषयांतर करने की बाजीगरी, अपनी हर बात को पूरे आत्मविश्वास के साथ पटकना, पार्टी की हर गलती को सही ठहराने की महारत, हर मंच पर ‘हम किसी से कम नहीं’ वाले अंदाज में नजर आना, तथ्यों और तर्क से (सही या गलत जो भी हो) सदा लैस रहना, हर बहस में मुठभेड़ के लिए रेडी रहना, अपनी हार को भी जीत की माफिक पेश करना आदि।

यूं प्रवक्ता तो कई संगठनों के होते हैं। लेकिन सियासी पार्टी का प्रवक्ता होना तलवार की धार पर चलने जैसा होता है। क्योंकि उसे उस हर बात, चाल या दांव का बचाव करना होता है, जिससे वह खुद भी सहमत हो यह जरूरी नहीं होता। कई दफा तो उसे उन मुद्दों पर भी इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया पर बाइट्स देनी होती है, जिसके बारे में उसे ठीक से पता भी नहीं होता। लेकिन संबित जैसों की खासियत यही है कि उन्होंने प्रवक्ता कर्म को भी एक जेहादी शक्ल दे दी है। संबित पद से भले हट जाएं, लोगों के दिमाग से इतनी आसानी से नहीं हटने वाले, यह तय है।

(सुबह सवेरे से साभार)

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