तो भारतीय जनता पार्टी ने तय कर लिया है कि दिल्ली के चुनाव में वह शाहीन बाग के नाम पर आर-पार की लड़ाई लड़ेगी। अब तक भाजपा के तमाम छोटे-बड़े नेताओं से लेकर गृह मंत्री अमित शाह तक दिल्ली विधानसभा चुनाव प्रचार के अभियान में शाहीन बाग का मुद्दा किसी न किसी रूप में उठा चुके हैं। लेकिन 3 फरवरी से दिल्ली के चुनावी घमासान में उतरे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली ही रैली में शाहीन बाग का प्रमुखता से जिक्र कर भाजपा के इरादों पर मुहर लगा दी है।
प्रधानमंत्री ने शाहदरा की रैली में कहा कि सीलमपुर, जामिया या फिर शाहीन बाग में बीते कई दिनों से नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ हो रहे प्रदर्शन ‘सिर्फ संयोग नहीं प्रयोग’ हैं। वे बोले- “इसके पीछे राजनीति का एक ऐसा डिजाइन है जो राष्ट्र के सौहार्द को खंडित करने का इरादा रखता है। यह सिर्फ अगर कानून का विरोध होता तो सरकार के आश्वसान के बाद खत्म हो जाना चाहिए था। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस राजनीति का खेल खेल रहे हैं। संविधान और तिरंगे को सामने रखकर ज्ञान बांटा जा रहा है और असली साजिश से ध्यान हटाया जा रहा है।”
मोदी ने कहा- “प्रदर्शनों के दौरान हुई हिंसा पर न्यायपालिका ने अपनी नाराजगी जताई है लेकिन ये लोग अदालतों की परवाह नहीं करते और बातें करते हैं संविधान की। इस वजह से दिल्ली से नोएडा आने जाने वालों को कितनी दिक्कत हो रही है। दिल्ली वाले चुप हैं लेकिन गुस्से में भी हैं। इस मानसिकता को यहीं रोकना जरूरी है साजिश रचने वालों की ताकत बढ़ी तो कल किसी और सड़क और गली को रोका जाएगा। भाजपा को दिया हर वोट इसे रोकने की ताकत रखता है।… दिल्ली के लोगों का मन क्या है यह बताने की जरूरत नहीं है, साफ-साफ दिखाई दे रहा है।”
दिल्ली के शाहीन बाग में मुस्लिम महिलाओं के धरने को 51 दिन हो चुके हैं। नागरिकता संशोधन कानून(सीएए), नैशनल सिटिजंस रजिस्टर (एनसीआ) और नैशनल पापुलेशन रजिस्टर (एनपीआर) जैसे मुद्दों के विरोध में यह धरना 15 दिसंबर 2019 से शुरू हुआ था और तभी से इलाके की मुसलिम महिलाएं सड़क पर तंबू लगाकर बैठी हैं। उनकी मांग है कि सरकार सीएए सहित अपने तमाम फैसले वापस ले। बीच में इस धरने को खत्म करवाने की कुछ कोशिशें हुईं लेकिन वे सिरे नहीं चढ़ सकीं।
शाहीन बाग का धरना कहने को तो सीएए और अन्य कानूनों के विरोध में है लेकिन दिल्ली चुनाव के संदर्भ में यह सीधे सीधे हिन्दू-मुस्लिम ध्रुवीकरण का सबब बन गया है। आरोप यह भी लगे हैं कि इसी वजह के चलते दिल्ली पुलिस वहां बैठे लोगों को उठाने के लिए कोई सख्ती नहीं बरत रही है। भाजपा को उम्मीद है कि शाहीन बाग का मसला जितना लंबा खिंचेगा, उसके कारण लोगों को जितनी परेशानी होगी, उसकी वजह से जितनी उत्तेजना फैलेगी उसे उतना ही राजनीतिक फायदा होगा।
शाहीन बाग मुद्दे ने जिस तरह का मोड़ ले लिया है उसने भारतीय राजनीतिक का इस मायने में सबसे बड़ा नुकसान किया है कि जो चुनाव इस बार सरकार के कामकाज पर केंद्रित हो रहा था वह एक बार फिर भारतीय राजनीति के परंपरागत चुनावी दलदल में फंस गया है जहां धर्म, जाति, धनलबल, बाहुबल का बोलबाला रहता आया है। दिल्ली में वर्तमान में काबित आम आदमी पार्टी की सरकार और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की कोशिश थी कि वे अपने प्रतिद्वंद्वियों से विकास और कामकाज के मुद्दे पर दो-दो हाथ करें लेकिन शाहीन बाग और भाजपा की रणनीति ने उनका यह मंसूबा पूरा नहीं होने दिया है।
नरेंद्र मोदी से पहले गृह मंत्री अमित शाह भी दिल्ली चुनाव में शाहीन बाग को मुद्दा बना चुके हैं। उन्होंने दिल्ली के बाबरपुर की चुनावी रैली में कहा था- ‘’नरेन्द्र मोदी जी ने पूरा देश बदला है, अब वो दिल्ली बदलना चाहते हैं। इस बार वोटिंग मशीन पर कमल के निशान पर बटन दबाओ, तो इतने गुस्से में दबाना कि बटन आपके क्षेत्र में दबे और करंट शाहीन बाग में लगे… 8 फरवरी को दिया आपका एक वोट बीजेपी प्रत्याशी को तो जिताएगा ही, साथ ही देश और दिल्ली को सुरक्षित करेगा और शाहीन बाग की घटनाओं को रोकने का भी काम करेगा।‘’
और अब इसी शाहीन बाग को प्रधानमंत्री ने संयोग नहीं प्रयोग बताते हुए कहा है कि इसके पीछे राष्ट्र के सौहार्द को खंडित करने की साजिश है। निश्चित रूप से दिल्ली का चुनाव न सिर्फ देश की राजधानी का भविष्य तय करेगा बल्कि वह देश में जन आंदोलनों का भविष्य भी तय करेगा। आजादी के आंदोलन से लेकर आजाद भारत तक में दिल्ली ने अनेक जनआंदोलन देखे हैं लेकिन शाहीन बाग उनमें अपने तरीके का अलग आंदोलन है।
शाहीन बाग के आंदोलन या विरोध के पीछे मंशा या रणनीति कुछ भी हो लेकिन इस बार इसके ‘प्रयोगकर्ताओं’ ने बहुत चतुराई से गांधीवादी हथियार का इस्तेमाल किया है। गांधी ने आंदोलनों में साधन और साध्य दोनों की पवित्रता की बात की थी। शाहीन बाग के आंदोलन का साध्य पवित्र है या नहीं इस पर दो राय हो सकती है लेकिन हां, वहां बैठे लोगों ने साधन तो गांधीवादी ही चुना है और यही वजह है कि उस धरने को लेकर कसमसाती हुई सरकारें और पुलिस लाख जतन करने के बावजूद लोगों को वहां से उठाने में कामयाब नहीं हो सके हैं।
कहा जा रहा है कि दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार शाहीन बाग पर सिर्फ दिल्ली विधानसभा का चुनाव हो जाने तक ही चुप बैठी है। जैसे ही चुनाव खत्म हुआ वहां बैठी महिलाओं को खदेड़ दिया जाएगा। अभी यह काम इसलिए नहीं किया जा रहा क्योंकि उस धरने के बने रहने में राजनीतिक लाभ दिखाई दे रहा है।
लेकिन शाहीन बाग अब सिर्फ एक धरना भर नहीं रहा है। प्रधानमंत्री ने उसे जाने या अनजाने में ही सही लेकिन ‘प्रयोग’ बताकर एक मायने में उसकी सही व्याख्या कर डाली है। हां, शाहीन बाग एक प्रयोग ही है, प्रयोग इस बात का कि आज की बदली हुई परिस्थितियों में भी क्या आंदोलनों का गांधीवादी तरीका सफल हो सकता है? एक मायने में गांधी के 150 वर्ष पूरे हो जाने पर देश गांधी के प्रयोग को एक बार फिर बदली हुई परिस्थितियों में कसौटी पर कस रहा है।
और यह जो कहा जा रहा है कि दिल्ली चुनाव हो जाने के बाद शाहीन बाग का किस्सा भी खत्म हो जाएगा, उस पर भी नजर रखने की जरूरत है। हो सकता है चुनाव के बाद केंद्र सरकार और दिल्ली पुलिस लोगों को होने वाली असुविधा और सुरक्षा का आधार बनाकर वहां बैठी महिलाओं को सख्ती से उठा कर सड़क खाली करवा ले। पर असली लड़ाई उसके बाद शुरू होगी। असली सवाल तब सामने होगा कि क्या शाहीन बाग खाली हो जाने से यह प्रयोग भी खत्म हो जाएगा या फिर इस प्रयोग के रक्तबीज देश में जगह जगह सिर उठाकर खड़े हो जाएंगे। यदि ऐसा होता है तो हर सड़क को शाहीन बाग बनने से रोकना और ऐसे हर शाहीन बाग को खाली करा लेना सरकारों और सत्ता के लिए आसान नहीं होगा।