प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष अमित शाह की आप कितनी ही आलोचना कर लें, लेकिन एक मामले में उनका कोई सानी नहीं है। यह मामला है ‘कुछ भी’ कर सकने के भरोसे का। आप इन दोनों नेताओं से सहमत हों या न हों लेकिन ये अपनी योजनाओं और रणनीति को लेकर इतने आश्वस्त रहते हैं कि देख-सुनकर ताज्जुब होता है।
ताजा मामले को ही ले लीजिये। देश में महंगाई लगातार बढ़ रही है, डीजल और पेट्रोल के भाव चढ़ते ही जा रहे हैं, डॉलर के मुकाबले हमारा रुपया गड्ढे में जा रहा है, खेती किसानी से लेकर उद्योग धंधों की हालत चौपट है और बेरोजगारों की संख्या कम होने का नाम नहीं ले रही। अभी तक मोदी सरकार भ्रष्टाचार के आरोपों से दूर थी लेकिन राफेल मामला उठाकर कांग्रेस ने उसकी इस छवि को भी संदिग्ध बनाने की कोशिश की है।
पिछले चुनाव में जिन राजनीतिक दलों ने भाजपा का साथ दिया था उनमें से कई दल इस बार बिदके हुए हैं। महाराष्ट्र में शिवसेना टेढ़ी चल रही है तो बिहार में उपेंद्र कुशवाह के सुर लगातार दाएं बाएं हो रहे हैं, पंजाब में शिरोमणि अकाली दल पर वर्चस्व रखने वाला बादल परिवार भी अब भाजपा को लेकर उतनी आत्मीयता से बात नहीं करता।
दूसरी ओर वामपंथी दलों से लेकर कांग्रेस तक ने किसान-मजदूर की समस्याओं और पेट्रोल डीजल के बढ़ते दामों जैसे मुद्दों पर धरना, आंदोलन, प्रदर्शन के अलावा भारत बंद जैसे आयोजनों की बाढ़ सी ला दी है। जनता ने जिन आसमानी उम्मीदों के साथ मोदी सरकार को सत्ता में बिठाया था, ‘अच्छे दिन’ की वो उम्मीदें भी पूरी नहीं हुई हैं।
यानी कुल मिलाकर हालात बहुत चुनौतीपूर्ण हैं। और इन्हीं चुनौतीपूर्ण हालात में भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने खम ठोक अंदाज में कहा है कि 2019 के चुनाव में उन्हें भाजपा के लिए कोई चुनौती नहीं दिख रही। विपक्ष के महागठबंधन विचार का एक तरह से मजाक उड़ाते हुए उन्होंने कहा कि न तो इस महागठबंधन के नेतृत्व का कोई पता है और न ही इनके पास कोई नीति है… इनकी नीयत तो भ्रष्ट है ही।
दूसरी ओर भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने दावा किया है कि 2019 का चुनाव तो भाजपा आसानी से जीत ही लेगी, आने वाले 50 साल तक भाजपा को हराने वाला कोई नहीं होगा। जिस तरह 1947 में सत्ता में आने के बाद कांग्रेस को कई दशकों तक कोई चुनौती नहीं मिली वैसे ही भाजपा को 2019 के चुनाव के बाद कम से कम 50 साल तक कोई चुनौती देने वाला नहीं रहेगा।
जाहिर है कोई भी दल यदि भीतर से कमजोर होगा भी, तो भी अपने कार्यकर्ताओं को कभी कमजोरी का संदेश देना नहीं चाहेगा। मोदी और शाह ने भी शायद यही सोचकर कार्यकर्ताओं से कहा है कि उन्हें डरने की जरूरत नहीं है। न तो भाजपा के सामने कोई राजनीतिक चुनौती है और न ही चुनावी राजनीति में आने वाले 50 सालों तक भाजपा को कोई हरा सकता है।
लेकिन क्या ये दोनों दावे देश के वर्तमान हालात से मेल खाते हैं? सरकार के खिलाफ जिस तरह से चौतरफा आवाजें उठ रही हैं, क्या वे सब हवा-हवाई हैं? जिस तरह पहले भाजपा गठबंधन शासित महाराष्ट्र में और हाल ही में देश की राजधानी दिल्ली में किसानों और मजदूरों ने सरकार की नीतियों के खिलाफ भारी संख्या में सड़कों पर आकर अपना विरोध जताया है, क्या उसके कोई मायने नहीं हैं?
पिछले चुनाव में जिस देश ने भाजपा को सिर माथे बिठाया था, उसी देश में ‘मरणासन्न’ बताई जाने वाली कांग्रेस के आह्वान पर महंगाई के विरोध में एक दिन का भारत बंद हो जाना क्या खारिज करने लायक घटना है? जिस कांग्रेस से देश को ‘मुक्त’ करने का नारा भाजपा ने दिया था, क्या उसमें इतनी ताकत या ऊर्जा आ गई है कि वह भारत बंद का नारा दे, तो उसे अन्य दलों का समर्थन भी मिल जाए और प्रयास हों या न हों लेकिन ज्यादातर बाजार अपने आप बंद रहें…
सरकार माने या न माने लेकिन जमीन पर कुछ तो ऐसा हो रहा है जो बताता है कि जनता का मूड ठीक नहीं है। हो सकता है भाजपा 2019 का चुनाव भी जीत जाए, लेकिन अगले 50 साल??? क्या अगले पचास साल तक उसकी सत्ता के लिए सचमुच कोई चुनौती नहीं होगी? जिस देश की जनता प्याज के दामों पर सरकारें बदल डालती हो वहां इतना बड़ा दावा?
भाजपा कार्यकारिणी के बाद प्रेस कॉन्फ्रेंस में मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने बैठक में पारित राजनीतिक प्रस्ताव का ब्योरा देते हुए बताया कि कार्यकारिणी ने ‘न्यू इंडिया’ का संकल्प लिया है। इस ‘न्यू इंडिया’ के विचार में कहा गया है कि इंडिया 2022 तक गरीबी, जात-पात, भ्रष्टाचार और सांप्रदायिकता से मुक्त हो जाएगा।
2022 यानी चार साल बाद… यानी अगले लोकसभा चुनाव के तीन साल के भीतर… यानी भारत की आजादी के 75 साल पूरे होने पर… भाजपा एक ‘न्यू इंडिया’ बनाने का दावा कर रही है। पर इस तरह के कई दावे तो 2014 में भी किए गए थे। उस समय के दावों में महंगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी को दूर करने के दावे भी शामिल थे। क्या भाजपा को अपने नए दावे पूरे करने से पहले लोगों को इस बात के लिए आश्वस्त नहीं करना होगा कि वह अपने पुराने दावों पर सौ फीसदी खरी उतरी है?
जहां तक विपक्ष का सवाल है, तो उसे कुछ धरना, प्रदर्शन और बंद जैसे आयोजनों की कथित सफलता से ही कुप्पा नहीं हो जाना चाहिए। न ही यह मान लेना चाहिए कि वह भाजपा को उखाड़ फेंकने की स्थिति में आ गया है। जैसी कि हवा बनाई जा रही है कि भाजपा की हालत पतली है, उस हवा के बीच या उसके बावजूद यदि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व छाती ठोककर यह कह रहा है कि उसके सामने कोई चुनौती नहीं है और अगला चुनाव तो क्या अगले 50 साल तक वे भारत पर राज करेंगे, तो इसकी पूरी तैयारी भी की ही जा रही होगी।
अगर विपक्ष ने इसे भाजपा का ‘मुगालता’ मानने की गलती की तो वह चुनावी समर में खुद को कमजोर ही करेगा… चुनाव साम, दाम, दंड, भेद सभी का इस्तेमाल कर जीते जाते हैं और विपक्ष को यह नहीं भूलना चाहिए कि भाजपा में ‘वाजपेयी युग’ का अंत हो चुका है…