क्‍या अदालतों के इन फैसलों से हम कोई सबक लेंगे

 

मंगलवार का दिन अदालतों के नाम रहा। सुबह अखबारों में व्‍यापमं जैसे महत्‍वपूर्ण मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले की खबर पढ़ने को मिली तो दिन में देश की शीर्ष अदालत ने तमिलनाडु में मुख्‍यमंत्री बनने की आस लगाए बैठीं शशिकला को भ्रष्‍टाचार के मामले में दोषी पाते हुए उनके तमाम राजनीतिक सपनों को चकनाचूर कर दिया।

इन खबरों और घटनाक्रमों के बीच एक सवाल रह रहकर जहन में उठता रहा कि क्‍या समाज इस तरह के फैसलों और घटनाओं से सबक लेकर खुद को सुधारने की कोई कोशिश भी कर रहा है?

समाज की प्रवृत्ति पर बात करने से पहले व्‍यापमं मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आब्‍जर्वेशन पर ध्‍यान देना जरूरी है। कोर्ट ने मुख्‍य बात यह कही कि- “स्कूल के पहले साल में ही बच्चा नकल का अंजाम जान जाता है। वह देखता है कि नकलचियों को सजा मिलती है। प्रोफेशनल कोर्स में जाने वाले क्या इनसे भी नादान थे? इन्होंने तो बाकायदा नकल सिंडिकेट से संपर्क साधा। इनसे सहानुभूति नहीं दिखा सकते। …ये कानून के साथ धोखा है। अगर हम सिद्धांतों और कैरेक्टर वाला ऐसा देश बनाना चाहते हैं जहां कानून का शासन हो तो इस तरह के दावों को नहीं माना जा सकता।”

छात्रों की अपील खारिज करते हुए कोर्ट ने चार प्रमुख वजहें गिनाईं-

– अपना प्रवेश जायज ठहराए जाने को लेकर याचिकाकर्ताओं ने बार-बार समाज की भलाई की दुहाई दी है। लेकिन नकल को बढ़ावा देना समाज की भलाई नहीं है। जब राष्ट्र हित की बात हो तो नागरिक स्वतंत्रता और जिंदगी भी बहुत छोटा बलिदान होता है।

– न्याय की दुहाई देकर जालसाजी या छोटा-मोटा गलत काम भी माफ नहीं किया जा सकता, फिर यहां तो बड़े पैमाने पर धोखाधड़ी हुई है। नफा-नुकसान देखे बिना सही सलूक ही न्याय की कसौटी है।

– ये (याचिकाकर्ता) इतने मासूम नहीं थे। परीक्षा के वक्‍त ये जानते थे कि अपने बलबूते इनका एडमिशन नहीं हो पाएगा। इसीलिए इन्‍होंने पीएमटी परीक्षा में होशियार स्टूडेंट्स की मदद ली।

– मजबूत राष्ट्र का निर्माण करने के लिए चरित्र और आदर्श बेहतर बनाने होंगे। कहते हैं- संपत्ति खोई तो कुछ नहीं खोया, सेहत खोई तो कुछ खोया, लेकिन चरित्र खोया तो सब कुछ खो दिया। भारत में माता-पिता और गुरु यही सिखाते आए हैं।

सिद्धांत रूप से देखें तो सुप्रीम कोर्ट ने याचिका खारिज करते समय जो भी बातें कही हैं या वजहें गिनाई हैं उनमें कुछ भी नया नहीं है। सदियों से ये बातें आदर्श के रूप में समाज में कही सुनी जाती रही हैं। लेकिन इसके बावजूद, बगैर परिणाम की चिंता किए, न तो इन बातों के उल्‍लंघन से होने वाले नतीजों से कभी कोई सबक लिया गया और न ही समाज में ऐसी प्रवृत्तियों के खिलाफ किए जाने वाले प्रयासों को तवज्‍जो दी गई।

कानून और सजा की समाज को कितनी परवाह है, इसे समझने के लिए ज्‍यादा दूर जाने की जरूरत नहीं है। रसूखदार लोग कैसे कानून और नैतिकता की अनदेखी करते हैं इसका एक उदाहरण ठीक उसी दिन अखबारों में छपा है जिस दिन व्‍यापमं वाली खबर छपी है। सभी जानते हैं कि व्‍यापमं मामले में कानून कायदों को दरकिनार करने पर, मध्‍यप्रदेश के कई अफसरों और राजनेताओं को, गंभीर परिणाम भुगतने पड़े थे। बेहद ताकतवर समझे जाने वाले राज्‍य के उच्‍च शिक्षा मंत्री लक्ष्‍मीकांत शर्मा को न सिर्फ महीनों जेल में रहना पड़ा, बल्कि उनका तेजी से उभरता राजनीतिक कॅरियर भी चौपट हो गया।

लेकिन विडंबना देखिए कि व्‍यापमं में सरकार और सत्‍तारूढ़ दल की राजनीति पर पड़े फफोलों के बावजूद, प्रदेश के एक मंत्री ने धान खरीदी घोटाले के एक आरोपी को बचाने के लिए कथित रूप से सहकारी अदालत पर दबाव डाला। खबर कहती है कि बालाघाट की कटंगी सहकारी समिति में एक साल पहले 1 लाख 75 हजार रुपए की फर्जी धान खरीदी हुई थी। समिति अध्यक्ष राजकुमार रहंगडाले को मामले में दोषी पाते हुए उन्हें हटा दिया गया था। इसी मामले की सुनवाई छिंदवाड़ा के सहकारी उप पंजीयक की कोर्ट में चल रही थी।

उप पंजीयक ने फैसला सुनाते हुए यह सनसनीखेज टिप्‍पणी की है कि प्रदेश के कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने दबाव डाला था कि आरोपी के पक्ष में फैसला दिया जाए। उप पंजीयक अनीता उइके ने अपने आदेश में लिखा- ‘’28 जनवरी 2017 को मोबाइल नंबर 9425139726 से फोन कर कृषि मंत्री गौरीशंकर बिसेन ने कहा था- मैं आपको निर्देशित करता हूं कि आप वादी के पक्ष मे निर्णय दें। जिससे ये तथ्य प्रमाणित होता है कि वादी अपने संबंधों से प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रूप से अनुचित दबाव डलवाकर कार्य करने का आदी है। इस मामले में न्यायालय की निष्ठा एवं पारदर्शिता प्रश्नगत होने के कारण प्रकरण को चलायमान रखने का न्यायहित में कोई औचित्य नहीं है। इसलिए याचिका खारिज की जाती है।‘’

यानी मध्‍यप्रदेश का राजनीतिक तंत्र, व्‍यापमं से जला होने के बावजूद, दबंगई और कानून कायदों की धज्जियां उड़ाने से बाज नहीं आ रहा। यदि मान भी लें कि व्‍यापमं मामले में सरकार को कुछ पता नहीं था, तो यहां तो खुद सहकारी अदालत ने अपने फैसले में मंत्री के दबाव का जिक्र किया है। अब आप यदिनैतिकता का तकाजा जैसे शब्‍दों पर भरोसा करते हों, तो करिए उस मंत्री पर कार्रवाई…

क्‍या कर पाएंगे? 

 

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