उनकी धुन पर आखिर आप क्‍यों नाचना चाहते हैं?

भोपाल में मध्‍यप्रदेश सचिवालय के सामने महीने के पहले कार्यदिवस पर होने वाले वंदे मातरम के गायन को लेकर सरकार ने देर आयद दुरुस्‍त आयद की तर्ज पर अपनी गलती को सुधार लिया है। नए फैसले के बाद, साल के पहले दिन से प्रदेश में शुरू हुआ एक अनावश्‍यक विवाद भी अब थम जाना चाहिए। इसका थमना इसलिए भी जरूरी है क्‍योंकि इसकी लहरें प्रदेश की सीमा को पार कर देशव्‍यापी होने लगी थीं।

सरकार ने गुरुवार को ऐलान किया कि पिछले 14 सालों से चला आ रहा वंदे मातरम के गायन का सिलसिला अब नए रूप में जारी रहेगा। और यह नया रूप क्‍या होगा? नया रूप यह होगा कि राज्‍य का पुलिस बैंड सचिवालय से चंद कदमों की दूरी पर स्थित शौर्य स्मारक से सुबह 10:45 बजे चलेगा और राष्ट्रीय भावना जाग्रत करने वाले गीतों की धुन बजाते हुए वल्लभ भवन पहुँचेगा।

वल्लभ भवन पहुँचने पर राष्‍ट्रगान ‘जन-गण-मन’ और राष्‍ट्रगीत ‘वन्दे-मातरम्’ गाया जायेगा। पुलिस बैण्ड के साथ आम जनता भी चल सकेगी। पूर्व की भांति यह कार्यक्रम प्रत्येक माह के पहले कार्य-दिवस पर ही होगा और इसमें केबिनेट के सदस्य क्रम से शामिल होंगे।

अब आप मोटे तौर पर देखें तो पुरानी व्‍यवस्‍था और नई व्‍यवस्‍था में परिवर्तन क्‍या हुआ है? परिवर्तन सिर्फ इतना है कि इस आयोजन से पुलिस बैंड जोड़ दिया गया है और कहा जा रहा है कि नए स्‍वरूप में आम-जनता की भी भागीदारी होगी।

तो क्‍या बस इतनी सी बात के लिए सरकार ने इतना बखेड़ा होने दिया? पहले से जो व्‍यवस्‍था चली आ रही थी उसमें वंदे मातरम को बैंड की धुन के साथ गाने या उसमें आम जनता की भागीदारी पर क्‍या कोई प्रतिबंध था? जो सरकार एक झटके में किसान कर्ज माफी जैसा इतना बड़ा फैसला कर सकती है वह वंदे मातरम के साथ अपने पुलिस बैंड को क्‍या वैसे ही नहीं जोड़ सकती थी?

दरअसल यह जो हो रहा है वह सिर्फ और सिर्फ उस चूक या लापरवाही पर परदा डालने की कोशिश है जो सरकार से हो गई है या उसके माथे मढ़ दी गई है। मैं व्‍यक्तिगत तौर पर कतई यह मानने को तैयार नहीं हूं कि साल के पहले और साथ ही महीने के पहले दिन परंपरागत रूप से वंदे मातरम गाए जाने का प्रस्‍ताव मुख्‍यमंत्री कमलनाथ के पास गया होगा और उन्‍होंने इसके लिए साफ मना कर दिया होगा।

मुझे लगता है यह उस नौकरशाही की लापरवाही या अपराध है जिसे पहले ही दिन कमलनाथ ने खुद को बदलने की सलाह दी थी। बहुत संभव है ऐसा हुआ हो कि नई सरकार के गठन की हड़बड़ी में या दुरुत्‍साह में आकर किसी ने इस आयोजन की ओर ध्‍यान ही नहीं दिया हो और जब रायता फैल गया तो अफसर लीपापोती वाली यह दलील लेकर मुख्‍यमंत्री के पास पहुंचे हों कि इस कार्यक्रम का कोई औचित्‍य नहीं है क्‍योंकि इसमें लोग ही नहीं जुटते।

लेकिन अफसरों की तरफ से यदि यह ‘अपराध’ हुआ था तो उस बिगड़ी हुई बात को संभालने की जिम्‍मेदारी राजनीतिक नेतृत्‍व पर थी। उसे सूझबूझ दिखाते हुए मामले को विवेकपूर्ण ढंग से निपटा लेना चाहिए था। कितना अच्‍छा होता यदि एक तारीख को वंदे मातरम न गाए जाने पर सरकार कहती कि हां, यह चूक हो गई है। लेकिन हमारा इरादा न तो इस परंपरा को बंद करने का है और न हम ऐसा करेंगे। पहले दिन की चूक को दूसरे दिन मंत्रियों या खुद मुख्‍यमंत्री की मौजूदगी में वंदे मातरम गाकर ठीक किया जा सकता था।

यदि ऐसा होता तो न बवाल मचता और न भाजपा को बात का बतंगड़ मनाने का मौका मिलता। लेकिन देखिए सरकार ने किया क्‍या, या उससे इस अफसरशाही ने करवाया क्‍या? उसने मुख्‍यमंत्री से फिर एक गलती करवाई और उनके जरिये एक ऐसा बयान दिलवाया गया जिसने सरकार की और फजीहत करवा दी।

कमलनाथ की ओर से कहा गया- ‘’वंदे मातरम की अनिवार्यता को फिलहाल बंद करने का निर्णय लिया गया है। यह किसी एजेंडे के तहत नहीं लिया गया है। हम इसे वापस प्रारंभ करेंगे, लेकिन एक अलग रूप में। सिर्फ एक दिन वंदे मातरम गाने से किसी की देशभक्ति या राष्‍ट्रीयता परिलक्षित नहीं होती। …जो लोग वंदे मातरम गायन नहीं करते क्‍या वे देशभक्‍त नहीं हैं? राष्‍ट्रीयता या देशभक्ति का जुड़ाव दिल से होता है।‘’

इस बयान के जरिए अफसरशाही ने परोक्ष रूप से इस बात की पुष्टि करवा दी कि वंदे मातरम को बंद करने का फैसला कमलनाथ का ही था। वैसे इस बयान के पीछे दो ही बातें संभावित हैं, या तो अफसरशाही ने मुख्‍यमंत्री के मुंह में बात डाल कर अपनी खाल बचा ली हो या फिर खुद कमलनाथ ने अफसरशाही की गलती को अपने माथे पर ले लिया हो। जो भी हो नई सरकार के लिए ये दोनों ही स्थितियां अनुकूल नहीं हैं।

इस बयान का नतीजा यह निकला कि वो विपक्ष जो अवसर की ताक में ही बैठा था उसने तत्‍काल मौका लपका और सरकार के विरोध में बयानबाजी और प्रदर्शन शुरू हो गए। पूर्व मुख्‍यमंत्री शिवराजसिंह ने ऐलान कर दिया कि वे 7 जनवरी को विधानसभा सत्र के पहले ही दिन भाजपा के सारे विधायकों के साथ सुबह 10 बजे वल्‍लभवन मंत्रालय परिसर में वंदे मातरम गाएंगे।

और चौतरफा बढ़ते दबाव के बीच सरकार को वही करना पड़ा जो उसे अव्‍वल तो होने नहीं देना चाहिए था और यदि हो भी गया था तो गलती को तत्‍काल मानकर दुरुस्‍त कर लेना चाहिए था। अब भले ही अगले माह के पहले कार्यदिवस पर पुलिस बैंड के साथ वंदे मातरम का गायन हो जाए लेकिन इस पूरे एपीसोड में सरकार का जो बैंड बजा है उसका क्‍या?

साथ ही एक बात और… अब आप कितना ही वंदे मातरम खुद गा लें या लोगों से गवा लें। लेकिन भाजपा हमेशा यह कहती रहेगी कि इस सरकार ने तो आते ही वंदे मातरम को भी बंद कर दिया था जिसे हमारे विरोध के कारण फिर से शुरू करना पड़ा।

सरकार! आपके पास काम और चुनौतियां बहुत ज्‍यादा हैं, बेहतर होगा उस पर ध्‍यान दें, ये विपक्ष की धुनों पर बैंड, बाजा, बारात लेकर आप कब तक नाचते रहेंगे?

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