गिरीश उपाध्याय
भाजपा शासित बाकी राज्यों को लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के मन में क्या है, यह तो ठीक ठीक नहीं कहा जा सकता, लेकिन जो दिखता है, उससे ऐसा लगता है कि मध्यप्रदेश को राष्ट्रीय नेतृत्व भी बड़ी आशा भरी नजरों से देखता है। यही कारण है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘ नई फसल बीमा योजना’ और ‘ग्रामोदय से भारत उदय’ जैसी अपनी महत्वाकांक्षी योजनाओं और कार्यक्रमों की शुरुआत के लिए इसी प्रदेश को चुना।
पार्टी की नजरों में मध्यप्रदेश के इसी महत्व को देखते हुए मुझे लगता है कि 6 अगस्त को प्रधानमंत्री ने दिल्ली के टाउनहॉल कार्यक्रम में ‘गोरक्षा’ के नाम पर गुंडागर्दी करने वालों की कुंडली या कच्चा चिट्ठा तैयार करने और उन पर कार्रवाई करने का जो आह्वान राज्य सरकारों से किया है, उसकी शुरुआत मध्यप्रदेश से की जानी चाहिए। मध्यप्रदेश ने इससे भी पहले बेहतर विकास दर हासिल करके और कृषि के क्षेत्र में अभूतपूर्व प्रगति करके भाजपा को गर्व करने और बेहतर राज्य की मिसाल देने का मौका दिया है। अन्य राज्यों की तुलना में यहां वैसा सांप्रदायिक या जातीय माहौल भी नहीं है। ऐसे में यदि राज्य सरकार गोरक्षा के नाम पर तांडव करने वाले असामाजिक तत्वों का कच्चा चिट्ठा तैयार कर उन लोगों पर कार्रवाई करती है, तो मध्यप्रदेश एक और मोर्चे पर पार्टी के लिए मिसाल बन सकता है।
यह सवाल पूछा जा सकता है कि मध्यप्रदेश ही क्यों अगुवाई करे? तो इसका जवाब यह है कि भाजपा शासित गुजरात, हरियाणा और राजस्थान जैसे राज्यों की तरह मध्यप्रदेश में भी हाल ही में इस तरह की घटनाएं हुई हैं। गोरक्षा के नाम पर असामाजिक तत्वों ने समाज में अराजकता और अशांति फैलाने की कोशिश की है। प्रदेश के सांप्रदायिक सद्भाव के माहौल को चोट पहुंचाने के प्रयास हुए हैं।
याददाश्त के लिए इतना ही बताना काफी होगा कि इसी साल पिछले आठ महीनों में राज्य में ऐसी तीन घटनाएं हो चुकी हैं। पहली घटना जनवरी माह में हुई थी जब कथित गोरक्षकों ने हरदा जिले में कुशीनगर एक्सप्रेस में यात्रा कर रहे एक मुस्लिम दंपती के साथ मारपीट की थी। गोरक्षकों का आरोप था कि यह दंपती गोमांस ले जा रहा है। हालांकि बाद में हुई पुलिस जांच में वह भैंसे का मांस निकला था।
दूसरी घटना जुलाई महीने में रतलाम जिले में हुई जहां पुलिस ने दो महिलाओं को कथित रूप से गोमांस ले जाते हुए पकड़ा। उस पर भी बड़ा बवाल मचा। हालांकि बाद में वह भी भैंसे का ही मांस पाया गया।
तीसरी घटना भी जुलाई माह में ही मंदसौर जिले में हुई जहां दो मुस्लिम महिलाओं को रेलवे स्टेशन पर उतरते ही कथित गोरक्षकों ने यह आरोप लगाते हुए पकड़ लिया कि उनके पास गोमांस है। इतना ही नहीं इन लोगों ने उन महिलाओं की पिटाई भी की। हैरानी की बात यह रही कि पिटाई करने वालों में महिलाएं आगे थीं। बाद में यहां भी वही कहानी निकली कि जो मांस ले जाया जा रहा था वह गाय का नहीं भैंसे का था।
इससे पहले भी प्रदेश में 2003 से लेकर 2015 तक ऐसी पांच घटनाएं हो चुकी हैं। रतलाम, मंदसौर, इंदौर, विदिशा, हरदा जिलों में हुई इन घटनाओं के कारण कई स्थानों पर सांप्रदायिक तनाव की स्थिति पैदा हो गई थी। कई जगह पुलिस को बलप्रयोग करना पड़ा और कर्फ्यू तक लगाने की नौबत आ गई।
ऐसे में यह जरूरी हो जाता है कि, अन्य राज्यों की तरह यह नासूर मध्यप्रदेश में भी और न फैल जाए, उससे पहले ही इस गोरक्षा वायरस को काबू में करने के सख्त उपाय कर लिए जाएं। उत्तरप्रदेश, बिहार या पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में तो ऐसी सूचियां तैयार होने पर राजनीतिक विवाद का विषय बन सकती हैं और यह आरोप लग सकता है कि एक खास दल या विचारधारा विशेष के कर्यकर्ताओं को प्रताडि़त करने के लिए ऐसी मुहिम चलाई जा रही है। लेकिन मध्यप्रदेश जैसे राज्य में यदि यह मुहिम चलेगी तो भाजपा पूरे देश में यह संदेश दे सकती है कि वह सिद्धांतों की राजनीति करती है। असामाजिक या गुंडा तत्वों से न तो उसका कोई लेना देना है और न ही उसके राज में उन्हें किसी प्रकार का कोई संरक्षण प्राप्त हो रहा है। यह संदेश देना इसलिए भी जरूरी है, क्योंकि आरोप ही यह लगता है कि इन कथित ‘गोरक्षकों’ या ‘गो-गुंडों’ को भाजपा या उसकी सरकारों का संरक्षण प्राप्त है।
प्रधानमंत्री ने अपने टाउनहॉल कार्यक्रम में कहा था कि उन्हें इन गोरक्षकों की हरकतों पर गुस्सा आता है। भाजपा को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसा गुस्सा कम से कम उसके तो सारे मुख्यमंत्रियों को आए ही। अभी तो यह हालत है कि चोरी और सीनाजोरी की तर्ज पर ऐसे गोरक्षक पुलिस को भी कुछ नहीं गांठते। हरदा जिले में जनवरी 2016 में हुई घटना के बाद ऐसे ही एक ‘गो-सरगना’ का, वहां के पुलिस अधीक्षक को सरेआम धमकाने वाला ऑडियो, सोशल मीडिया पर वायरल हुआ था। हद तो तब हो गई थी जब उस व्यक्ति ने एसपी को ही परोक्ष रूप से सांप्रदायिक दंगों की धमकी दे डाली थी। जब गोरक्षा की आड़ में असामाजिक तत्वों के हौसले इतने बुलंद हों तो लोगों में यह धारणा बनने से नहीं रोका जा सकता कि ऐसे लोगों को ऊपर से संरक्षण मिल रहा है। यह धारणा तोड़ने का वक्त आ गया है।