सुबह अखबार हाथ में आया तो लगा कि सलमान खान का एक वक्तव्य इस देश की सबसे बड़ी व प्रमुख समस्या बन चुका है। चारों ओर इसी के बारे में चर्चा हो रही है। कुछ और पन्ने पलटे तो जस्टिस मार्कन्डेय काटजू के दर्शन हो गए। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज और प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन रह चुके काटजू साहब कहना है कि महिला का रेप महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं, यह होता रहा है और होता रहेगा।
फिर से लौटता हूँ सलमान पर। सलमान ने खुद की थकान और पीड़ा की तुलना किसी रेप पीडि़त महिला से की थी। इसमें कोई दो राय नहीं कि किसी भी इंसान की थकावट या शारीरिक परेशानी की तुलना दुष्कर्म पीडि़ता से नहीं की जा सकती। बलात्कार जैसी त्रासदी से गुजरने वाली महिला की तकलीफ का अंदाजा लगाना भी मुमकिन नहीं है। इस लिहाज से सलमान की बात को कतई ठीक नहीं कहा जा सकता। शायद इसीलिए सलमान ही नहीं उनके पिता के भी माफी मांगने के बावजूद राष्ट्रीय महिला आयोग ने बेहद सक्रियता दर्शाते हुए उन्हें कानूनी नोटिस भी जारी कर दिया है। महिला स्वाभिमान और सम्मान को लेकर महिला आयोग की सक्रियता वाकई काबिले तारीफ है। अखबारों में आयोग की अध्यक्ष महोदया ललिता कुमारमंगलम् का बयान भी छपा है जिसमें वे सलमान को आड़े हाथों लेते हुए कहती है- “ये बेहद शर्म की बात है कि कोई हस्ती इस तरह गैर-जिम्मेदाराना तरीके से बात करे।” यहाँ मैं खुद को महिला आयोग से कुछ सवाल करने से रोक नहीं पा रहा हूँ।
पहला सवाल तो ये है कि क्या महिला आयोग, सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जस्टिस व प्रेस काउंसिल के अध्यक्ष रह चुके मार्कंडेय काटजू को हस्ती मानता है या नहीं?
” महिला का रेप महत्वपूर्ण मुद्दा नहीं, यह होता रहा है और होता रहेगा.” क्या ये कथन आपत्तिजनक नहीं है? क्या ये कथन बलात्कार की शिकार किसी महिला के घावों पर नमक छिड़कने जैसा नहीं है? यदि हाँ, तो क्या महिला आयोग विधि क्षेत्र के इस धुरंधर को नोटिस जारी करने का साहस कर सकेगा ?
सवाल केवल जस्टिस काटजू का नहीं है। महिलाओं को लेकर अभद्र और अनर्गल टिप्पणियाँ करने वालों की फेहरिस्त काफी लंबी है, लेकिन ज्यादातर मामलों में आयोग की ऐसी सक्रियता तो नहीं दिखाई दी। यहाँ तक कि एक लाइव टेलीविजन शो में बहस के दौरान महिला को “ठुमके लगाने वाली” जैसा संबोधन दिए जाने के बाद भी महिला आयोग की ओर से कोई खास प्रतिक्रिया देखने को नहीं मिली थी।
पब्लिक मीटिंग में एक महिला को “सौ टंच माल” कहने वाले नेताजी का भी कोई बाल बांका न कर सका। तर्क ये दिया गया कि “सौ टंच माल” का अर्थ सोने की शुद्धता से होता है और इसमें कुछ भी आपत्तिजनक नहीं है। नेताजी के इस तर्क में कितना दम है, इस पर तो यहाँ चर्चा करना मुमकिन नहीं है, लेकिन इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती कि यदि आप और हम किसी महिला की तारीफ में उसे “सौ टंच माल” कहें तो हमें जूते खाने से कोई नहीं बचा सकता।
एक बडे समाजवादी नेता कभी संसद में खड़े होकर किसी विशेष क्षेत्र की महिलाओं की शरीर की बनावट की तारीफ करते हैं, तो कभी इस बात की चिंता करते हैं कि संसद में “परकटी महिलाएं” तो नहीं आ जाएंगी।
ऐसे उदाहरणों की सूची काफी लंबी है और इसमें सभी पार्टियों और विचारधाराओं के लोग शामिल हैं। अफसोस, इसमें से किसी पर भी महिला आयोग ने सख्ती दिखाई हो ऐसा मुझे तो याद नहीं पड़ता। खास बात ये है कि इनमें से किसी ने भी अपने कथन के लिये माफी मांगने या खेद प्रकट करने की जरूरत भी नहीं समझी, जबकि सलमान खुद व उनके पिता कम से कम इस गलती के लिये माफी तो मांग चुके हैं। तो क्या सलमान को नोटिस जारी इसलिए किया गया, क्योंकि सुपर स्टार सलमान का मुद्दा मीडिया में ज्यादा ‘सेलेबल’ है?