अजय बोकिल
कोरोना वायरस के आंतक ने मानो हमें हमारी पुरानी बीमारियां जैसे कि मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया आदि को लगभग भुला ही दिया है। शायद इसलिए क्योंकि जानलेवा होने के बावजूद इनसे लड़ने का तरीका हमें मालूम है। वरना जुलाई-अगस्त का महीना मच्छरों के कहर का रहता आया है। लॉकडाउन में भी मच्छर हमारे धैर्य की परीक्षा वैसी ही ले रहे हैं, लेकिन इस दफा हमें उनसे देसी उपायों से ही जूझना पड़ रहा है। चीनी माल के बहिष्कार के चलते ‘मच्छर मार रैकेट’ बाजार से या तो गायब हैं या फिर कोई उन्हें ले नहीं रहा। ऐसे में मच्छर भगाओ अगरबत्ती या फिर दूसरे उपायों से मच्छरों को काबू करने के यत्न जारी हैं।
कोविड-19 की वैश्विक दहशत के बीच अपने ‘पुराने यार’ मच्छरों की चर्चा सिर्फ इसलिए, क्योंकि वैज्ञानिकों ने अब उस रहस्य का पता लगा लिया है, जिसके बारे में हम सदियों से सोचते-विचारते आ रहे हैं। वो ये कि मच्छर आखिर हमारा खून क्यों चूसते हैं? स्वाद के कारण या प्रतिशोध के कारण? हमारी उनसे ऐसी कौन-सी रंजिश है कि वो सिर्फ काटते ही नहीं, हमारा खून भी साथ ले जाते हैं?
विज्ञान पत्रिका ‘न्यू साइंटिस्ट’ में छपी ताजा रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि जालिम मच्छर शुरू से ‘खून के प्यासे’ नहीं थे। धीरे-धीरे उनकी आदतें बदलीं और वक्त के मुताबिक वो खूं-खार होते गए। शोध रिपोर्ट के मुताबिक न्यूजर्सी की प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने अफ्रीका के एडीस एजिप्टी मच्छरों का अध्ययन किया। इन्हीं मच्छरों की वजह से जीका वायरस फैलता है। डेंगू और पीला बुखार होता है।
क्या मच्छर शुरू से रक्ताहारी हैं? इसका जवाब यह है कि मच्छरों ने इंसानों और अन्य जानवरों का खून पीना इसलिए शुरू किया क्योंकि वो सूखे प्रदेश में रहते थे। जब भी मौसम शुष्क होता है और मच्छरों को अपने प्रजनन के लिए पानी नहीं मिलता तो वे इंसानों या जानवरों का खून चूसना शुरू कर देते हैं। मतलब ये कि ‘पानी की प्यास’ ही मच्छरों को हमारे ‘खून का प्यासा’ बना देती है।
‘न्यू साइंटिस्ट’ में छपी रिपोर्ट के मुताबिक अफ्रीका में एडीस एजिप्टी मच्छर की कई प्रजातियां है। हालांकि सारी प्रजातियों के मच्छर खून नहीं पीते। बाकी बेचारे दूसरी कई चीजें खाकर अपनी गुजर करते हैं। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी की रिसर्चर नोआह के अनुसार उन्होंने अफ्रीका के सब-सहारा क्षेत्र के 27 जगहों से एडीस एजिप्टी मच्छर के अंडे लिए। इन अंडों से मच्छरों को निकलने दिया। फिर इन्हें इंसान, अन्य जीव, गिनी पिग आदि पर लैब बंद डिब्बों में छोड़ दिया ताकि उनके खून पीने के पैटर्न को समझा सके।
अध्ययन में यह बात सामने आई कि जिस इलाके में सूखा या गरमी ज्यादा पड़ती है, पानी कम होता है, वहां मच्छरों को प्रजनन के लिए नमी की जरूरत पड़ती है। ऐसे में शरीर में पानी की कमी पूरी करने के लिए मच्छर इंसानों और अन्य जीवों का खून पीना शुरू कर देते हैं। यानी हमारा खून मच्छरों के जिंदा रहने की गारंटी है। वैसे मच्छरों को इंसानी खून का यह चस्का हजारों साल में लगा है। अलबत्ता मलेरिया फैलाने वाले एनोफिलीस मच्छर पानी के मामले में कुछ बेफिकर इसलिए होते हैं, क्योंकि वो अपनी आबादी कूलर, गमले, क्यारी जैसी जगहों पर बढ़ाते हैं, इन जगहों पर नमी और पानी पर्याप्त रहता है। लेकिन अगर मच्छरों को अपने भीतर नमी या पानी का टोटा महसूस होता है, तो वो तुरंत हमारे शरीर के आसपास भिनभनाना शुरू कर देते हैं।
इस नए शोध ने मच्छरों के बारे में हमारे पुराने जाले साफ किए हैं। मसलन पहले यह माना जाता था कि मादा मच्छर हमारा खून इसलिए पीती है, क्योंकि हमारे रक्त में भरपूर प्रोटीन और अमीनो एसिड होते हैं। मादा मच्छर को अंडे देने के लिए इस तरह पोषक रक्ताहार की जरूरत होती है। वैसे मादा मच्छर के बारे में कहा जाता है कि वह पूरी तरह ‘वेजीटेरियन’ (अगर खून चूसना शाकाहार मानें तो) होती है। जबकि नर मच्छर नॉनवेज के बिना नहीं रह पाते। अगर कोरोना का हाहाकार न होता तो हर साल की तरह हम बारिश के इस मौसम में मच्छरों की क्रूरता पर ही चर्चा कर रहे होते। हालांकि मच्छरों के लिहाज से उनका भी ‘बुरा’ टाइम ही चल रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि मच्छर भी इंसानों को एक-सा नहीं काटते। इस मामले में उनकी अपनी ‘च्वाइस’ है। इस मामले में वो मनुष्यों से ज्यादा संवेदनशील हैं। क्योंकि मनुष्य एक-दूसरे का खून बहाते वक्त ‘ब्लड ग्रुप’ नहीं देखते। लेकिन मच्छर देखते हैं। शायद इसीलिए कुछ लोगों को मच्छर कम काटते हैं तो कुछ लोगों को काटते ही रहते हैं। यहां सवाल उठता है कि मच्छर किसको कितनी बार काटें, उसका कितना खून पीएं, यह कैसे तय करते हैं?
इस बारे में स्टडी बताती है कि हमारी त्वचा से निकलने वाले रसायन ही मच्छरों को हमारा पता देते हैं। इसी के दम पर मच्छर पता लगा लेते हैं कि बंदे का खून किस ग्रुप का है। इसमें भी मच्छरों की पहली पसंद ‘ओ’ ग्रुप है। इसके बाद ‘ए’ और ‘बी’ ब्लड ग्रुप वालों का नंबर है। वैसे भी ‘ओ’ ब्लड ग्रुप को यूनिवर्सल डोनर माना जाता है। यह बात मच्छर पहले से जानते हैं और फिर दान की तो बछिया भी बुरी नहीं मानी जाती, ये तो खून का मामला है।
हमारे शरीर का तापमान भी मच्छरों की मदद करता है। वो बिना थर्मल गन के पता लगा लेते हैं कि शिकार कहां है। कई मच्छर आपके कपड़े और उनके रंग से भांप लेते हैं कि किसे काटना है। अलबत्ता डार्क कलर मच्छरों की पहली पसंद है। मादा मच्छर तो गर्भवती महिलाओं का खून चूसना ज्यादा पसंद करती हैं। यह बात भी उजागर हुई है कि मच्छरों के खून पीने के टाइमिंग भी लगभग तय हैं। अमूमन वो खून या तो सुबह पीते हैं या फिर शाम ढलते पीते हैं। बाकी टाइम भिनभिनाते हुए आराम ज्यादा करते हैं।
यह खुलासा भी हुआ है कि मच्छर अपने यजमान को उस समय ज्यादा काटता है, जब वो खुद प्यासा होता है। इसी के साथ मच्छर मलेरिया, डेंगू, चिकनगुनिया, जापानी बुखार जैसी बीमारियां भी बांटते चलते हैं। मच्छर हमारी सांसों पर भी नजर रखते हैं। हमारी नाक से छोड़ी गई कार्बन डाय आक्साइड मच्छरों के लिए राडार का काम करती है।
दुनिया में हर साल हजारों लोग मलेरिया और डेंगू जैसे रोगों से मरते हैं। हालांकि भारत में इन बीमारियों के कारण होने वाली मौतों में हाल के सालों में कमी आई है। इसका कारण कारगर दवाइयां और हमारी प्रतिरोधक क्षमता भी है। मच्छरों द्वारा फैलाए गए ये रोग मु्ख्य रूप से उन देशों में फैलते हैं, जो गर्म माने जाते हैं, जैसे कि भारत।
इन तमाम बातों का मकसद यह है कि कोरोना के चक्कर में हम मच्छरों को न भूल जाएं। मलेरिया के उपचार के लिए दी जाने वाली हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्विन दवा ने मच्छर और कोरोना के बीच एक रिश्ता कायम करने की असफल कोशिश की थी। लेकिन लगता है कि मच्छर अपना अलग वजूद कायम रखेंगे। उधर विश्व स्वास्थ्य संगठन और स्वास्थ्य पत्रिका ‘लेंसेट’ ने आगाह किया है कि कोरोना महामारी के बीच पारंपरिक मलेरिया जैसी बीमारियो को लेकर गाफिल न रहें। क्योंकि भारत दुनिया के 11 सर्वाधिक मलेरिया प्रभावित देशों में से है।
कोरोना तो अजनबी वायरस है, उसके व्यवहार के बारे में हमें पूरी जानकारी अभी नहीं है। लेकिन मलेरिया, डेंगू के बारे में तो हम सभी जानते हैं। मच्छरों की सबसे बड़ी खूबी यह है कि वो कोरोना की तरह छुपकर वार नहीं करते। हमारे आसपास बेशरमी से मंडराकर हमें खुली चुनौती देते रहते हैं। आप मसल कर भी उन्हें खत्म नहीं कर सकते।
मच्छर और मानव के बीच परस्पर सताने वाला यह नटखट रिश्ता कुछ-कुछ ‘टॉम एंड जेरी’ जैसा ही है। किसी ने इस जज्बे को इन पंक्तियों में पूरी शिद्दत से अभिव्यक्त किया है- ‘’मच्छर ने जो काटा दिल में मेरे जुनून था, खुजली हुई इतनी दिल बे सुकून था। पकड़ा तो छोड़ दिया ये सोच कर, साले की रगों में अपना ही खून था..!
अद्भुत लेख
धन्यवाद