सरकार इतने डिफेंसिव मोड में क्‍यों जा रही है…?

जिस रॉफेल विमान के सौदे को लेकर भारत और फ्रांस में घमासन मचा हुआ है उस विमान को बनाने वाली कंपनी का नाम है दसाल्‍ट एविएशन। फ्रांस की यह विमान कंपनी दुनिया की जानी मानी विमान निर्माण कपंनियों में से एक है। यह पिछली एक शताब्‍दी में दुनिया के 90 से अधिक देशों में 10 हजार से अधिक सैन्‍य और नागरिक विमान बेच चुकी है।

रॉफेल युद्धक विमान के अलावा इस कंपनी ने विमानों के डिजाइन, विकास, बिक्री और विमानन संबंधी अन्‍य क्षेत्रों में विशेषज्ञता हासिल करते हुए दुनिया भर में अपनी पहचान बनाई है। यह कंपनी रॉफेल युद्धक विमानों के अलावा बिजनेस जेट विमानों की उच्‍च श्रेणी के फॉल्‍कन विमान और सेना के उपयोग में आने वाले द्रोन भी बनाती है। कंपनी के आकार का अनुमान इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसमें 11400 कर्मचारी काम करते हैं और 2017 में इसने 4.8 अरब यूरो का राजस्‍व जुटाया था।

जिस दिन राहुल गांधी ने भारत के प्रधानमंत्री के खिलाफ अब तक के सबसे कड़े शब्‍दों का इस्‍तेमाल किया, उसी दिन यानी 22 सितंबर को दसाल्‍ट एविएशन ने रॉफेल सौदे को लेकर एक स्‍पष्‍टीकरण जारी किया। मामले को समझने के लिए उस स्‍पष्‍टीकरण को ध्‍यान से पढ़ना जरूरी है।

दसाल्‍ट एविशन ने कहा-
1- यह अनुबंध सरकार का सरकार के साथ हुआ समझौता है। इसके अंतर्गत एक अलग अनुबंध की व्‍यवस्‍था है जो कहता है कि दसाल्‍ट एविएशन भारत में सहायक अथवा मुआवजा निवेश (ऑफ़सेट) के रूप में,भारतीय कंपनियों से खरीद मूल्‍य की 50 फीसदी राशि के बराबर की राशि वाला सहयोगी करार करेगी।
2- यह ऑफसेट अनुबंध रक्षा खरीद प्रक्रिया (डीपीपी)2016 के नियमों के अनुपालन में संपन्‍न होगा। इस अनुबंध के ढांचे के अंतर्गत और भारत की ‘मेक इन इंडिया’ नीति के अनुसार, दसाल्‍ट एविएशन ने रिलायंस समूह के साथ साझेदारी करने का फैसला किया है। जैसाकि कंपनी के सीईओ एरिक ट्रैपियर 17 अप्रैल, 2018 को ‘मिंट’ अखबार को दिए गए इंटरव्‍यू में बता चुके हैं, (रिलायंस के साथ) यह साझेदारी विशुद्ध रूप से दसाल्‍ट की पसंद है।
दसाल्‍ट एविएशन और रिलायंस ने फाल्कन और रॉफेल विमान के निर्माण के लिए नागपुर में एक संयंत्र बनाया है। नागपुर का चयन इसलिए किया गया क्‍योंकि वहां ऐसी जमीन उपलब्‍ध थी जो हवाईअड्डे के रनवे से सीधे जुड़ी थी। ऐसी जमीन एयरोनॉटिक गतिविधियों के लिए एक आवश्यक शर्त है।
3- (दसाल्‍ट एविएशन ने रिलायंस के अलावा) बीटीएसएल, डीईएफएसवाईएस, काइनेटिक, महिंद्रा, मेनी, सैमटेल जैसी अन्य कंपनियों के साथ भी सौदे को लेकर ऐसी ही अन्य साझेदारियों पर हस्ताक्षर किए गए हैं। इनके अलावा करीब सौ अन्य संभावित भागीदारों के साथ बातचीत अभी चल रही है।
4- दसाल्‍टएविएशन को बहुत गर्व है कि भारतीय अधिकारियों ने (अपने लिए) रॉफेल विमान का चयन किया है।
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दरअसल मामला उस समय उलझा जब फ्रांस के पूर्व राष्‍ट्रपति ओलांद ने यह कहा कि दसाल्‍ट की सहयोगी कंपनी के रूप में भारत सरकार ने ही रिलायंस का नाम आगे बढ़ाया था और इसमें उनके पास कोई चॉइस नहीं थी। कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने ओलांद के बयान का यह निष्‍कर्ष/अर्थ निकालते हुए कि भारत सरकार और खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अनिल अंबानी की कंपनी का नाम फ्रांस को दिया, सरकार पर तेजाबी आरोप लगा डाले।

इसके बाद ओलांद के बयान की प्रामाणिकता पर सवाल उठे तो 22 सितंबर को ही ‘इंडिया टुडे टीवी’ ने मीडियापार्ट पत्रिका के पत्रकार एंटोन रगेट से बात की। रगेट ने ही ओलांद का इंटरव्‍यू कर वह सनसनीखेज खबर दी थी। रगेट ने इंडिया टुडे को बताया कि ओलांद अपने बयान पर कायम हैं। जबकि फ्रांस सरकार और दसाल्‍ट ने बयान जारी कर ओलांद के बयान का खंडन किया था।

जब फ्रांस में यह उठापटक चल रही थी तो भारत में भी अलग-अलग स्‍तर से बयान आ रहे थे। सबसे महत्‍वपूर्ण और विस्‍तृत बयान वित्‍त मंत्री अरुण जेटली ने दिया। टाइम्‍स ऑफ इंडिया में 24 सितंबर को प्रमुखता से छपे उनके बयान में दो तीन बातें ऐसी हैं जिन पर ध्‍यान दिया जाना चाहिए।

सबसे पहली बात तो जेटली ने यह कही कि कांग्रेस बेसिर पैर के आरोप लगा रही है और वह अच्‍छी तरह समझ ले कि उसके आरोपों के चलते रॉफेल सौदा रद्द नहीं होने वाला। दूसरे, जेटली ने राहुल और ओलांद की जुगलबंदी की बात की और कहा कि ओलांद के बयान की टाइमिंग पर ध्‍यान दिया जाना चाहिए।

वित्‍त मंत्री ने कहा कि हालांकि मेरे पास इसका कोई प्रमाण नहीं है, लेकिन यह सवाल तो उठता ही है कि राहुल गांधी 30 अगस्‍त को ट्वीट करते हैं कि ‘’सच में रॉफेल बहुत तेज और दूर तक उड़ता है। वह आने वाले एक दो हफ्तों में बंकर को तबाह करने वाले बम गिरा सकता है।‘’ और राहुल के इस ट्वीट के बाद ही ओलांद का बयान आता है कि अनिल अंबानी को भारत सरकार ने ही रॉफेल सौदे में इंट्रोड्यूस किया था।

जेटली के बयान में तीसरी बात मेरे हिसाब से सबसे ज्‍यादा अहम है। मैं समझ नहीं पा रहा हूं कि सरकार ने इस मुद्दे को अभी तक दबाए क्‍यों रखा और इस पर अभी भी वह बहुत दबे सुरों में बात क्‍यों कर रही है। दरअसल जेटली ने कहा कि ‘रिलायंस इंडस्‍ट्री’ तो फरवरी 2012 में ही रॉफेल सौदे की प्रक्रिया से जुड़ गई थी। उसने दसाल्‍ट के साथ उस समय एक एमओयू भी किया था।

जेटली के मुताबिक यह उस समय की बात है, जब यूपीए सरकार रॉफेल डील को लेकर बातचीत कर रही थी। वित्‍त मंत्री इसी बात को आगे बढ़ाते हुए सवाल उठाते हैं कि राहुल गांधी जो कुतर्क आज कर रहे हैं, उन्‍हें यदि मान लिया जाए, तो आज के आरोप 2012 के एमओयू पर भी हूबहू लागू होते हैं।

मैं यहीं से इस बात के अगले सिरे को पकड़ना चाहता हूं और मेरा सवाल यही है कि यदि वास्‍तव में ‘अंबानी घराने’ की रिलायंस इंडस्‍ट्री 2012 में ही दसाल्‍ट के साथ एमओयू कर रॉफेल सौदे की प्रक्रिया से किसी न किसी रूप में जुड़ चुकी थी तो फिर सरकार को कांग्रेस को घेरने में हिचक क्‍या है?

सरकार रक्षात्‍मक होने के बजाय क्‍यों नहीं आक्रामक होकर कांग्रेस से सवाल पूछती कि भाई हमसे अंबानी के बारे में तो बाद में पूछना, पहले तो आप बताओ कि आपके जमाने में इस सौदे में दूसरा अंबानी क्‍या कर रहा था?

कल बात करेंगे इस मामले से जुड़े और भी पेचों पर...

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