‘ब्लू व्‍हेल’ के सामने ‘डिजिटल इंडिया’ इतना असहाय क्‍यों है?

बच्‍चों के कंप्‍यूटर और मोबाइल से होता हुआ जानलेवा ब्‍लू व्‍हेल गेम सुप्रीम कोर्ट तक पहुंच गया है। सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को सरकारी नियंत्रण वाले दूरदर्शन और निजी चैनलों से कहा कि वे ब्लू व्‍हेल गेम की वजह से स्वास्थ्य और जीवन को होने वाले नुकसान को लेकर अपने प्राइम टाइम कार्यक्रमों में जागरुकता फैलाएं।

सुप्रीम कोर्ट में इस मामले में दो वकीलों ने याचिका दायर कर ब्लू व्‍हेल गेम पर पूरी तरह पाबंदी लगाने की मांग की थी। वकीलों ने याचिका में उन घटनाओं का जिक्र किया था जिनमें ब्लू व्‍हेल गेम की वजह से खासतौर से बच्‍चों ने या तो आत्‍महत्‍या की है या वे ऐसा करने के लिए प्रेरित हुए हैं।

याचिका पर सुनवाई करते हुए प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने पाया कि यह राष्ट्रीय समस्या है और इसी संदर्भ में बेंच ने सरकारी एवं निजी प्रसारकों को जागरूकता फैलाने वाले कार्यक्रम चलाने को कहा है। सरकार ने कोर्ट को बताया कि उसने इस मुद्दे पर एक विशेषज्ञ समिति बनाई है जो तीन हफ्तों में रिपोर्ट सौंप देगी।

सुप्रीम कोर्ट में इस गेम से संबंधित याचिका 15 सितंबर को दायर की गई थी। उसके बाद 13 अक्‍टूबर को इसकी सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा, जस्टिस ए.एम. खानविलकर और जस्टिस डी.वाई. चन्द्रचूड़ की खंडपीठ ने सरकार से कहा था कि ऐसे खेल के बारे में फायरवॉल का सृजन किया जाए। फायरवॉल एक ऐसी प्रणाली है जो किसी प्रायवेट नेटवर्क द्वारा नियंत्रित प्रसारण सामग्री को रोकती है।

ब्‍लू व्‍हेल गेम का यह भूत इन दिनों देश की कई उच्‍च अदालतों के गलियारों में घूम रहा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने 22 अगस्त को ऐसी ही एक याचिका पर फेसबुक, गूगल और याहू से जवाब मांगा था। इस याचिका में इन सेवा प्रदाताओं को ब्लू व्‍हेल चैलेंज के लिंक हटाने के निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

उसके बाद मद्रास हाईकोर्ट ने चार सितंबर को इस गेम पर गंभीर रुख अपनाते हुये केंद्र और तमिलनाडु सरकार को इस पर प्रतिबंध की संभावनाएं तलाशने का निर्देश दिया था। उसी संदर्भ में दिल्ली हाईकोर्ट ने 19 सितंबर को कहा था कि इस गेम पर प्रतिबंध लगाने के बारे में मद्रास हाईकोर्ट के निर्देशों पर हुए अमल के बारे में सरकार जानकारी पेश करे।

ब्लू व्‍हेल चैलेंज गेम दरअसल इसे खेलने वालों को आत्महत्या के लिए मजबूर करता है। इसमें हिस्सा लेने वाले खिलाडी को 50 दिन की अवधि में चुनिंदा चुनौतियां पूरी करनी होती हैं और इसमें अंतिम काम आत्महत्या करने का होता है। खेलने वाले से कहा जाता है कि प्रत्येक चुनौती पूरी करने के बाद वह अपने शरीर को ब्‍लेड या किसी धारदार चीज से खरोंच कर कुछ लाइनें बनाएं। अंत तक आते आते ये लाइनें एक व्‍हेल की आकृति ले लेती हैं।

इंडियन एक्‍सप्रेस में हाल ही में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार देश में ब्‍लू व्‍हेल गेम के घातक असर का शिकार होने वाले पांच प्रकरण सामने आए हैं जिनमें से तीन में बच्‍चों की जान चली गई और दो को बचा लिया गया। बचाए गए बच्‍चों में से एक बच्‍चा इंदौर के एक निजी स्‍कूल का भी था। भारत में ब्‍लू व्‍हेल गेम का पहला शिकार पश्चिम बंगाल के पश्चिम मिदनापुर जिले का 15 वर्षीय किशोर बताया जाता है जिसने 12 अगस्‍त 2017 को अपने घर के बाथरूम में आत्‍महत्‍या कर ली थी।

ब्लू व्‍हेल ऑनलाइन चैलेंज गेम के कारण स्‍कूली बच्‍चों द्वारा की जा रही आत्‍महत्‍या की कोशिशों को देखते हुए पिछले दिनों हरियाणा के पंचकूला में जिला प्रशासन ने एक एडवायजरी जारी की थी जिसमें अभिभावकों से कहा गया था कि वे बच्चों की ऑनलाइन हरकतों की निगरानी रखें, उन्‍हें घर से बाहर खेलने व अन्य गतिविधियों के लिए बढ़ावा दें, उनके असामान्य व्यवहार को पहचानें, उनसे लगातार बातचीत करते रहें और संदेह होने पर तुरंत मनोवैज्ञानिक से सलाह लें।

यानी समाज में हर स्‍तर पर इस खतरनाक गेम को लेकर चिंता व्‍याप्‍त है और सरकार से लेकर न्‍यायालय तक चाहते हैं कि यह गेम प्रतिबंधित होना चाहिए। अब मेरा सवाल सिर्फ इतना सा है कि यदि पूरा देश और देश की तमाम संस्‍थाएं ब्‍लू व्‍हेल गेम को प्रतिबंधित करने के पक्ष में हैं तो आखिर सरकार के सामने ऐसी कौनसी मजबूरी है कि वह ऐसा नहीं कर पा रही है।

सुप्रीम कोर्ट में सरकार ने कहा है कि उसने इसके लिए विशेषज्ञों का एक पैनल बनाया है। तो क्‍या यह माना जाए कि गूगल, याहू और फेसबुक जैसे बहुराष्‍ट्रीय सॉफ्टवेयर दिग्‍गजों के सामने हम इतने असहाय हो गए हैं कि उन्‍हें हमारे देश के नौनिहालों की जान ले सकने वाले एक खेल को बंद करने तक के लिए राजी नहीं कर पा रहे हैं।

दुनिया भर में अपने सॉफ्टवेयर इंजीनियरों की धाक को सिर पर लेकर घूमने वाली और ‘डिजिटल इंडिया’ को राष्‍ट्रीय कार्यक्रम बनाने वाली सरकार यदि इतनी छोटी सी बात पर भी रोक नहीं लगवा पा रही या बहुराष्‍ट्रीय कंपनियों को मजबूर नहीं कर पा रही तो कैसे भरोसा किया जाए कि वह देश की सुरक्षा को हो सकने वाले ऑनलाइन खतरों से निपटने लिए पूरी तरह सक्षम है।

चीन जो काम गूगल और फेसबुक जैसी कंपनियों को लात मारकर करवा लेता है वह काम क्‍या हम चिरौरी करके भी नहीं करवा पा रहे? क्‍या आपके हंटर में इतना भी दम नहीं कि सिर्फ सरकार के एक आदेश भर से 24 घंटे के भीतर यह जान लेवा गेम भारत में पूरी तरह बंद हो जाए। या फिर यह माना जाए कि ब्‍लू व्‍हेल चलाने वाले खतरनाक खिलाडि़यों के साथ आप भी देश की भावी पीढ़ी से खिलवाड़ कर रहे हैं…

 

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