भ्रष्‍टाचार के आंकड़ों पर इतनी जल्‍दबाजी की जरूरत क्‍या थी?

शुक्रवार को देश भर के अखबारों में एक खबर छपी है जो कहती है कि पिछले 12 सालों (2005 से 2017) में देश में भ्रष्‍टाचार में 22 फीसदी की कमी आई है। लेकिन उसके बावजूद पिछले साल 31 फीसदी लोगों को अपने काम करवाने के लिए 10 रुपए से लेकर 50 हजार रुपए तक की रिश्‍वत देनी पड़ी।

सेंटर फॉर मीडिया स्‍टडीज की इस रिपोर्ट में भ्रष्‍टाचार के मामलों को लेकर 2016 में देश के 20 राज्‍यों में किए गए सर्वे के आंकड़े दिए गए हैं। इसमें सामान्‍य तौर पर भ्रष्‍टाचार को लेकर 43 प्रतिशत लोगों ने कहा है कि वह बढ़ा है। 31 प्रतिशत मानते हैं कि भ्रष्‍टाचार ज्‍यों का त्‍यों है और 27 प्रतिशत कहते हैं कि भ्रष्‍टाचार घटा है।

छ: राज्‍य ऐसे हैं जहां के 50 प्रतिशत से भी अधिक लोगों ने कहा कि भ्रष्‍टाचार बढ़ा है। इन राज्‍यों में ओडिशा, कर्नाटक, झारखंड, बिहार, छत्‍तीसगढ़ और गुजरात शामिल हैं। जिन राज्‍यों में आधे से अधिक लोगों ने भ्रष्‍टाचार कम होने की बात कही उनमें पश्चिम बंगाल, उत्‍तरप्रदेश, हिमाचल प्रदेश और हरियाणा शुमार हैं। हालात जैसे थे वैसे ही हैं, यह राय रखने वाले 50 प्रतिशत से अधिक लोग जिन राज्‍यों में मिले उनमें मध्‍यप्रदेश, आंध्रप्रदेश और असम का नाम है।

इस सर्वे का एक महत्‍वपूर्ण भाग नोटबंदी के बाद भ्रष्‍टाचार की स्थिति को लेकर है। यह कहता है कि 56 प्रतिशत लोगों ने माना कि नोटबंदी के बाद भ्रष्‍टाचार में कमी आई। जबकि 12 प्रतिशत लोग मानते हैं कि वह और बढ़ा। 32 फीसदी का मानना है कि जो जैसा चल रहा था वही चलता रहा स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया।

नोटबंदी के बाद भ्रष्‍टाचार में कमी की राय देने वाले लोगों की संख्‍या सर्वाधिक गुजरात में 87 प्रतिशत और उसके बाद राजस्‍थान में 80 प्रतिशत थी। इसी तरह नोटबंदी के बाद भ्रष्‍टाचार बढ़ा है यह कहने वाले सबसे ज्‍यादा 40 फीसदी लोग पश्चिम बंगाल में, 28 फीसदी आंध्रप्रदेश में और 25 फीसदी लोग महाराष्‍ट्र में मिले।

देश में भ्रष्‍टाचार और रिश्‍वतखोरी एक शाश्‍वत तथ्‍य है। इस तरह के सर्वे और आंकड़े कुछ भी कहें लेकिन जनमानस में यह धारणा आम है कि भ्रष्‍टाचार चारों तरफ व्‍याप्‍त है और बगैर रिश्‍वत के काम नहीं होते। ऐसे में सीएमएस की यह रिपोर्ट लोगों के मानस पर भ्रष्‍टाचार में कमी या बढ़ोतरी को लेकर कितना असर डालेगी कहा नहीं जा सकता। लेकिन इसके कुछ बिंदुओं पर बात करना जरूरी है।

जैसे नोटबंदी के असर का ही मामला लें। रिपोर्ट दावा करती है कि नोटबंदी के बाद भ्रष्‍टाचार में 56 प्रतिशत की कमी आई। इसका एक मतलब तो यही निकलता है कि 2005 से 2017 तक के 12 सालों में जो कमी सिर्फ 22 प्रतिशत थी वह सिर्फ तीन महीनों में बढ़कर 56 प्रतिशत तक हो गई। क्‍या यह बात गले उतरेगी?

मैं न तो नोटबंदी की खिलाफत कर रहा हूं और न ही इस रिपोर्ट का खंडन। क्‍योंकि पहले उत्‍तरप्रदेश और हाल ही में दिल्‍ली एमसीडी के नतीजे तो यही कह रहे हैं कि लोगों ने नोटबंदी को बुरे फैसले के रूप में नहीं बल्कि सकारात्‍मक कदम के रूप में लिया।

लेकिन मैं इस बात पर हैरान हूं कि संसद के बजट सत्र में खुद सरकार ने जब यह माना था कि नोटबंदी का असर कितना हुआ है इसका आकलन फिलहाल नहीं किया जा सकता, तो फिर सीएमस ने कौनसा जादू चलाकर पुख्‍ता तौर पर आंकड़े जुटाते हुए यह निष्‍कर्ष निकाल लिया। यदि इस जल्‍दबाजी से बचा जाता तो रिपोर्ट की विश्‍वसनीयता ज्‍यादा होती।

इस बात की पूरी संभावना है कि नीति आयोग भी रिपोर्ट में नोटबंदी की वाहवाही के कारण ही इसके लांचिंग से जुड़ने को तैयार हुआ होगा। हो सकता है नीति आयोग के सदस्‍य विवेक देबरॉय भी इसकी प्रस्‍तावना लिखने के लिए इसी कारण राजी हुए हों। वरना जो रिपोर्ट मूल रूप से कहती हो कि भाजपा शासित गुजरात में 52 फीसदी लोग भ्रष्‍टाचार बढ़ा हुआ और ममता के पश्चिम बंगाल व अखिलेश के उत्‍तरप्रदेश (सर्वे के समय वहां सपा का ही राज था) में क्रमश: 64 व 57 फीसदी लोग कम हुआ मानते हैं, उसे नीति आयोग मान्‍यता देगा इसमें मुझे संदेह है।

मेरा संदेह इसलिए भी है क्‍योंकि नोटबंदी के असर के आकलन को लेकर रिपोर्ट के आरंभिक अध्‍याय में ही कहा गया है कि इसका मूल डाटा कलेक्‍शन अक्‍टूबर-नवंबर 2016 में किया गया। यानी आंकड़े अधिकांशत: उस माहौल में जुटाए गए जब नोटबंदी या तो थी ही नहीं या फिर उसका असर क्‍या होगा लोग इसका अंदाजा भी नहीं लगा पा रहे थे।

रिपोर्ट बनाने वालों को भी इस बात का अहसास रहा होगा, शायद इसलिए उन्‍होंने थोड़ी सफाई देते हुए कहा है कि नोटबंदी का असर जानने के लिए जनवरी 2017 में अतिरिक्‍त रूप से उन्‍हीं लोगों का टेलीफोनिक सर्वे किया गया जिनसे मूल सर्वे के दौरान आंकड़े जुटाए गए थे। रिपोर्ट यह भी मंजूर करती है कि नोटबंदी का असर सर्वे के आंकड़ों पर ज्‍यादा नहीं पड़ा है, क्‍योंकि यह वर्ष 2016 के पूरे साल के हालात पर आधारित है।

इसी रिपोर्ट का वाक्‍य है- ‘’In short, demonetization phase has no or nominal effect on the findings of CMS-ICS 2017 on petty corruption.’’ (छोटे पैमाने पर होने वाले भ्रष्‍टाचार के मामलों में, नोटबंदी के असर का, सीएमएस-इंडिया करप्‍शन रिपोर्ट-2017 के निष्‍कर्षों पर या तो बिलकुल भी असर नहीं पड़ा है या फिर बहुत ही नगण्‍य प्रभाव है)

यदि ऐसा ही था तो फिर इतनी जल्‍दबाजी में नोटबंदी के असर वाला चार्ट रिपोर्ट के साथ नत्‍थी करने वाली बात कुछ जंची नहीं।

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