हरियाली की आस्‍तीन में छुपी ये कुल्‍हाडि़यां किसकी हैं?

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ज्‍यादा दिन नहीं बीते हैं उस वाकये को जब भोपाल की एक हरी भरी बस्‍ती को सिरफिरे अंदाज में ‘स्‍मार्ट’बनाने की कोशिशें हुई थीं। दुनिया की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी ‘भोपाल गैस कांड’ को झेल चुके इस शहर के बाशिंदों की जुबान पर वे नारे अभी ताजा ही होंगे, कि स्‍मार्ट सिटी के नाम पर शहर की हरियाली खत्‍म नहीं होने देंगे। राजधानी के शिवाजी नगर और तुलसी नगर को स्‍मार्ट सिटी में तब्‍दील करने के सरकारी फैसले के विरोध में उतरे लोगों ने अपना केस मजबूत करने के लिए पेड़ों की गिनती करने का जो काम शुरू किया था, वह भी शायद अभी पूरा नहीं हुआ होगा। इस बीच एक हादसे ने भोपालवासियों को चौंका दिया है।

हादसा यह कि माननीय विधायकों के लिए नए आलीशान रिहायशी आवास/विश्रामगृह बनाने के लिए सैकड़ों पेड़ काट डाले गए। माननीयों के लिए नया आशियाना बनाने की इस स्‍कीम का एक सच यह है कि पहले इसका विरोध हो चुका है और उस समय विधानसभा और सरकार ने इस योजना पर अमल न करने की बात कही थी। लेकिन अचानक चुपचाप उस स्‍कीम पर काम शुरू हुआ और रातोंरात पता नहीं कहां से आस्‍तीन में छुपी कुल्‍हाडि़यां निकल आईं। इससे पहले की लोगों और मीडिया को भनक लगती, सैकड़ों पेड़ों की लाशें बिछ चुकी थीं। मीडिया में यह मामला उछलने पर आनन फानन में लीपापोती के इंतजाम हुए और विधानसभा की ओर से स्‍पष्‍ट किया गया कि योजना पर अमल नहीं होगा।

इससे बड़ी विडंबना और क्‍या होगी कि जिस प्रदेश का मुखिया अतिरिक्‍त संवेदनशीलता दिखाते हुए,जनविरोध का सम्‍मान कर, प्रधानमंत्री की अति महत्‍वाकांक्षी ‘स्‍मार्ट सिटी’ योजना के स्‍थान को ही रद्द कर देता है। वहीं अफसर चंद दिनों के भीतर ही ऐसा दूसरा कारनामा कर दिखाते हैं। मुख्‍यमंत्री के स्‍तर पर यह सार्वजनिक बयान आता है कि भोपाल की हरियाली को किसी कीमत पर नष्‍ट नहीं होने दिया जाएगा। शीर्ष नेतृत्‍व से इतना बड़ा संकेत मिल जाने के बावजूद, कुछ लोग हरियाली पर कुल्‍हाड़ी चलाने की नई चाल चल डालते हैं।

एक तरफ भोपाल में नैशनल ग्रीन ट्रिब्‍यूनल शहर की हरियाली बचाने के लिए नित नए आदेश-निर्देश दे रहा है। राज्‍य के मुख्‍यमंत्री, हरियाली को बचाने के लिए सरकार की योजनाएं तक बदल रहे हैं। और दूसरी तरफ एक वर्ग ऐसा है जो इन सबके विपरीत अपनी मनमानी करने में लगा है। अब ऐसा तो हो नहीं सकता कि, इतने सारे पेड़ों को काटे जाने की भनक किसी को नहीं लगी हो। और यह काम किसी सुदूर वन क्षेत्र में, किसी लकड़ी माफिया का भी नहीं था। यह काम तो ऐन सरकार की नाक के नीचे, सरकारी अफसरों के द्वारा, सरकारी जमीन पर किया गया। यानी इसमें सब कुछ उजागर था। फिर भी पेड़ कट गए।

सोचिए, यदि राजधानी में यह हो सकता है, तो फिर राजधानी से सैकड़ो किलोमीटर दूर प्रदेश के जंगलों में क्‍या-क्‍या नहीं होता होगा। यहां तो पेड़ों की चीख लोगों ने सुन ली। वहां तो वे बहुत खामोशी से लिटा दिए जाते होंगे। रोज कितने ही पेड़ों को ऐसी ठंडी मौत दे दी जाती होगी।

जब भोपाल के लुटियंस जोन शिवाजी नगर और तुलसी नगर में स्‍मार्ट सिटी बनाए जाने का प्रस्‍ताव रद्द हुआ था, तब मैंने लिखा था कि, इन इलाकों को कुल्‍हाड़ी के कहर से बचा लेने वालों का काम खत्‍म नहीं हो गया है। वे यह सोचकर चुप न बैठ जाएं कि उनका इलाका तो बच गया, बाकी हमें क्‍या करना है। यदि भोपाल की हरियाली को बचाने की वह मुहिम, अपने अपने मकानों और संस्‍थानों को बचाने भर तक ही सीमित नहीं थी, तो उस मुहिम को पहरुआ बनकर भोपाल के पत्‍ते पत्‍ते पर निगाह रखनी होगी। क्‍योंकि इस शहर की हरियाली को खुरचने या कुचल डालने के लिए, औजारों पर धार तो सतत की जा रही है। जरा सी नजर चूकी और किस जगह सीमेंट का रंग पुत जाए, कहा नहीं जा सकता। इसे रोकने की पहली जिम्‍मेदारी लोगों की ही है। उनका दबाव बना रहेगा तो ऐसी हर साजिश को नाकाम किया जा सकेगा। वरना… हरा रंग सिर्फ हरे राम तक ही बचेगा।

दूसरा मोर्चा सरकार का है। यह अच्‍छी बात है कि राजनीतिक नेतृत्‍व ने हाल ही में आए ऐसे मामलों में समझदारी और संवेदनशीलता दिखाते हुए, ऐसी योजनाओं को आगे बढ़ने से रुकवाया है। लेकिन ऐसा लगता है कि नीचे तक वह संदेश उस भावना के साथ नहीं पहुंचा है। लोगों को अचानक जब मीडिया से इन वारदातों का पता चलता है, तो वे सहज ही यह सवाल पूछ बैठते हैं कि क्‍या सरकार को यह सब पता नहीं होगा? जनता का यह सवाल तमाम संवेदनशील कदमों पर रेत की बौछार सी कर देता है।

जहां तक माननीय विधायकों के लिए नए विश्रामगृह का सवाल है, मेरी एक जिज्ञासा है- क्‍या इसके लिए विधायकों में कोई रायशुमारी कराई गई है? ऐसा हुआ है तो, जरा हम भी जानें कि हमारे वे कौन नुमाइंदें हैं, जो हरियाली और जनधन को पलीता लगाकर अपने लिए आलीशान आशियाना चाहते हैं। यदि उचित समझें तो वह सूची जरूर सार्वजनिक करिए। पता तो चले कि आखिर यह फैसला था किसका?

गिरीश उपाध्‍याय

फोटो- उजड़ी हुई हरियाली का यह फोटो भोपाल के दैनिक भास्‍कर ने प्रकाशित किया है।

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