अपनी पिछली बात मैंने इन लाइनों के साथ खत्म की थी कि-
सिर हिलाने से कुछ नहीं होगा, सिर खपाओ तो कोई बात बने…
हम बात कर रहे थे ब्रिटिश मूल की अमेरिकी यात्रा लेखक मार्गोट बिग की उस किताब पर जिसमें सिर हिलाने की भारतीयों की आदत और सिर हिलाने के अलग-अलग तरीके के अलग अलग मायनों का तफसील से ब्योरा दिया गया है।
वास्तव में सिर हिलाने की हमारी यह अदा अद्भुत है। लेकिन कई बार हमें यह इस कदर भ्रम में डाल देती है या ऐसा बेवकूफ बना देती है कि पूछिये मत। मध्यप्रदेश में सरकारी सेवा में बहुत बड़े ओहदे से रिटायर हुए मेरे एक मित्र की ऐसी ही खास अदा ने एक बार मुझे अच्छा खासा मुश्किल में डाल दिया था।
दरअसल उनके सिर हिलाने की अदा ऐसी थी कि लगता था मानो वे आपकी बात को मानने से इनकार कर रहे हैं या आपके मत से असहमत हैं। जबकि असलियत में वे उस बात पर सहमति जाहिर कर रहे होते थे। धीरे धीरे उनकी यह स्टाइल समझ में आने लगी और मैंने उनका मंतव्य पकड़ने की कला सीख ली।
लेकिन एक दिन बड़ा धोखा हो गया। मैं उनसे एक खबर के बारे में बात करने गया। बातचीत के दौरान मैं अपने पास जो जानकारी थी वो उन्हें बताता रहा और वे अपनी खास अदा में वैसे ही सिर हिलाते रहे। मैंने आदतन उसे अपनी खबर की पुष्टि माना और कुछ देर उनके पास बैठने के बाद चला आया।
अपने पास उपलब्ध जानकारी और उन अफसर मित्र के सिर हिलाने की हरकत से उपजे निष्कर्षों को आधार बनाकर मैंने खबर लिख डाली। जैसे ही अगले दिन अखबारों में वो खबर छपी हंगामा हो गया। सुबह सुबह उनका फोन आया। यार, ये मैंने तुमसे कब कहा था? खबर में दिए गए ब्योरे से साफ पलटते हुए वे नाराजी की मुद्रा में बोले, मैंने तो सारी बातों से इनकार किया था और तुमने मेरे हवाले से सारी बातें स्वीकारोक्ति में लिख डालीं।
उनकी बात सुनकर मैं अवाक रह गया। मैंने कहा अरे आपने ही तो सारी बातें मानीं थीं। वे बोले, मैंने तो एक शब्द भी नहीं बोला। मैंने कहा- ‘’आप बोले जरूर नहीं थे, लेकिन आपने सिर हिलाकर मेरी हर बात की पुष्टि तो की थी ना…’’ इस पर उनका जवाब मेरे सिर पर एक बम की तरह फूटा- ‘’अरे यार मैं मना करते हुए सिर हिला रहा था और तुमने सारी बातें हामी भरते हुए लिख डालीं…’’
सच मानिए, सिर हिलाने की उस वारदात पर अब सिर पीटने की बारी मेरी थी। मैं उनसे क्या कहता कि आपके सिर हिलाने के अंदाज को तो मैं इसी तरह पढ़ता आया हूं, पहले कभी ऐसा धोखा नहीं हुआ, अब आपने अपना पूरा अंदाज ही पलट दिया है यह मुझे कैसे पता चलेगा…
दोस्तो, सिर हिलाने के अर्थ का कोई पुरावा तो होता नहीं। चूंकि उसमें शब्द नहीं होता केवल भाव भंगिमा होती है और उसी से आप अंदाज लगाते हैं कि सामने वाला हां कह रहा है या ना। मैंने भी उन अधिकारी मित्र से पुरानी दोस्ती और लंबे अनुभव के आधार पर यह निष्कर्ष निकाल लिया था कि वे मेरी बातों पर रजामंदी दे रहे हैं और बस यहीं चूक हो गई… अगले दिन मेरे पास उनसे माफी मांगने और खबर का स्पष्टीकरण देने के अलावा कोई चारा नहीं बचा था…
तो जब मैं खुद भारतीय होने के बावजूद एक दूसरे भारतीय की इस अदा को नहीं समझ पाया तो मार्गोट बिग की मुश्किल समझी जा सकती है। उनके धैर्य की दाद देनी होगी कि वे पांच साल तक भारतीयों के सिर हिलाने की अलग अलग अदाओं का अध्ययन करती रहीं और पता लगाती रहीं कि कौनसी अदा का या कौनसे एंगल का क्या मतलब है।
लेकिन इसके बावजूद मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि कोई कितना भी अध्ययन और शोध कर ले, लेकिन यकीनी तौर पर यह कभी नहीं कह सकता कि वह किसी के सिर हिलाने के मतलब को सौ फीसदी समझने में समर्थ हो गया है। दरअसल हमारे मन में क्या है यह हमारा सिर कभी नहीं बता सकता, और सिर्फ हिलकर तो कतई नहीं…
जैसाकि मेरे साथ हुआ, वैसा कई लोगों के साथ हो सकता है, कि सामने वाले ने सिर हिलाया और आपने उसका प्रचलित अर्थ निकाल लिया। पर बाद में यदि पता चले कि इस बार उसने जो मुंडी हिलाई थी वह लीक से हटकर थी, तो आपको लेने के देने भी पड़ सकते हैं। राजनीति और कारोबार में अकसर मुंडिया ऐसे ही, कहीं पे निगाहें, कहीं पे निशाना की तर्ज पर हिलाई जाती हैं।
वैसे इस पूरे एपीसोड को लेकर मुझे कुछ और मसले भी याद आ गए। हम भारतीय सिर हिलाने के संकेतों को समझ जाते हैं लेकिन मेरा सवाल यह है कि हम लिंचिंग पर उतारू मॉब में घिरे उस शख्स की आंखों की दहशत को पढ़ना कब सीखेंगे, जिसे देखते ही देखते मार दिया जाता है।
हम कब सीखेंगे उस मूक बधिर किशोरी के आंखों के आंसुओं का मतलब जो अपनी लाचार अवस्था में, शरीर नोचने को तैयार भेडि़यों से घिरी, खुद को छोड़ देने की गुहार करती है। कब समझेंगे उस बच्ची के चेहरे का डर जिसे चॉकलेट देने के बहाने कोई दरिंदा उठा लाया है।
हम कब जान पाएंगे उस किसान के चेहरे की सलवटों का अर्थ जो अपने सूखे खेत पर सिर पकड़कर बैठा, खुदकुशी के तरीके के बारे में सोच रहा होता है। कब समझ सकेंगे उस झुकी हुई कमर और कांपते हाथों वाली बुजुर्ग मां की पीड़ा जिसे उसके बेटों ने खुद के ही घर से बेदखल कर दिया है।
मुझे लगता है सिर्फ सिर हिलाने का मतलब सीख जाने से ही हमारा काम नहीं चलने वाला। हमें जिंदा रहने का अहसास कराने वाली सांसों और दिल की धड़कन का मतलब समझना भी सीखना होगा। इंसान के इंसान पर भरोसे का मतलब भी सीखना होगा। सिर हिलने का मतलब एक बार समझ में न आए तो चलेगा, लेकिन भरोसे का मतलब समझ में न आया तो फिर इस कायनात का ही कोई मतलब नहीं रहेगा…