मंगलवार को ‘वेलेंटाइन डे’ के मौके पर ‘डे-समर्थकों’ और ‘डे-विरोधियों’ के बीच दिन भर ले-दे चलती रही। शाम को मैं एक कार्यक्रम में था, वहां एक वक्ता ने जैसे ही वेलेंटाइन डे के संदर्भ में यह कहा कि हमें वेलेंटाइन तो याद रहा लेकिन हम यह भूल गए कि आज ही के दिन अमर शहीद भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी दी गई थी, तो हॉल में शोर मचा और कई लोगों ने विरोध करते हुए कहा कि यह गलत सूचना है, इन तीनों शहीदों को 14 फरवरी नहीं बल्कि 23 मार्च को फांसी दी गई थी। अचानक हुए इस पलटवार से वक्ता थोड़ी देर के लिए अचकचा गए। बाद में उन्होंने जैसे तैसे बात को संभाला।
दरअसल मंगलवार को इस भ्रामक सूचना का शिकार न केवल वे वक्ता महोदय हुए बल्कि देश भर में हजारों लोगों ने वाट्सएप और अन्य सोशल मीडिया पर आई इस सूचना को सच मानते हुए वेलेंटाइन डे को जी भरकर कोसा। ऐसी भ्रामक सूचनाएं फैलाने में माहिर वाट्सएपिये दिन भर लोगों को यह निर्देश देने में लगे रहे कि वेलेंटाइन के बजाय हम अमर सेनानी भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरु को याद करें और उनकी याद करने वाला यह संदेश तुरंत ज्यादा से ज्यादा लोगों को फॉरवर्ड करें। जैसाकि आमतौर पर होता है हजारों लोग इस गलत सूचना के जाल में फंस गए और उन्होंने इसे धड़ाधड़ फॉरवर्ड भी किया।
और जिस कार्यक्रम का मैंने जिक्र किया, पूरी संभावना है कि उसके वक्ता महोदय तक भी ऐसे ही किसी माध्यम से यह जानकारी आई होगी और उन्होंने उसे सच मानकर एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उसे शेयर कर लिया। हालांकि वहां मौजूद जागरूक लोगों ने तो उनकी गलती सुधार दी, लेकिन ऐसे कई लोग जरूर रहे होंगे जिन्होंने उस सूचना को सही मानकर, उस पर भरोसा करते हुए, युवा पीढ़ी को अमर सेनानियों के बजाय वेलेंटाइन के पीछे दीवाना होने पर न जाने कितनी गालियां दे डाली होंगी।
हमारे अपने मध्यप्रदेश में बैतूल जिले के आमला में तो अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं ने बाकायदा शहीद स्मारक पर कार्यक्रम आयोजित कर, देश की स्वत़ंत्रता के लिए प्राण न्यौछावर करने वाले इन शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित की। खबर है कि वहां विद्यार्थी परिषद के जिला सह संयोजक नीलेश राठौर ने यह बताया भी कि देश के लिए खुद को बलिदान करने वाले इन तीनों सेनानियों को 14 फरवरी को ही फांसी दी गई थी।
इससे पहले सूचना की दुनिया में मंगलवार सुबह एक और करनामा हो चुका था। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पता नहीं कहां से एक वीडियो क्लिपिंग उठाकर धांय धांय अंदाज में यह ब्रेकिंग न्यूज फेंक रहा था कि मुलायमसिंह ने उत्तरप्रदेश में भाजपा की सरकार बनने की बात कही है। ‘बड़ी खबर’ के रूप में दिखाई जा रही उस वीडियो क्लिपिंग को बार बार दोहराया गया। उसका कई एंगल से विश्लेषण भी शुरू हो गया। लेकिन बाद में पता चला कि जिसे भाई लोग उत्तरप्रदेश के संदर्भ में मुलायमसिंह का बड़ा बयान बता रहे थे, वह संभवत: बिहार चुनाव के वक्त की कोई वीडियो क्लिप थी जिसे बड़ी चतुराई से उत्तरप्रदेश चुनाव के बीच में सरका दिया गया था।
यह सूचना और संचार की क्रांति का युग है। जैसे-जैसे हम सूचना और संचार के संसाधनों का विस्तार कर रहे हैं, जैसे-जैसे सूचनाओं के आदान प्रदान की गति तेज… और तेज होती जा रही है, वैसे-वैसे गलत और भ्रामक सूचनाओं का जाल भी हमें घेरता जा रहा है। सरासर झूठी जानकारियां परोसी जा रही हैं। और परोसी क्या जा रही हैं, मुंह में ठूंसी जा रही हैं। जिसे सोने के सिक्के के रूप में पेश किया जा रहा है, वह दरअसल गिलट का सिक्का है।
सूचनाओं के इस अपप्रचार या दुष्प्रचार में सबसे ज्यादा और सबसे बड़ी भूमिका सोशल मीडिया की है। बगैर सोचे समझे सूचनाएं आगे बढ़ाई जा रही हैं। पका-पकाया माल हाथ आने के अति उत्साह में लोग उन्हीं सूचनाओं को प्रेषित कर यह समझ रहे हैं मानो उन्होंने बहुत बड़ा तीर मार लिया हो। सबसे जल्दी और सबसे ज्यादा सूचनाएं भेजने की आपाधापी में हम वेलेंटाइन डे की अवधारणा को नहीं, अपने इतिहास और उसकी प्रामाणिकता को दांव पर लगा रहे हैं। यह हमारे अमर सेनानियों की शहादत की तारीख भूलने का प्रसंग नहीं है, यह साजिश है इतिहास की तारीखों और तथ्यों को भ्रम की कालकोठरी में डाल देने या उन्हें फांसी पर लटका देने की। हमारे असली चेहरे को झुलसा देने की।और इस साजिश में जाने-अनजाने हम सब भागीदार होते जा रहे हैं।
सबसे चिंताजनक बात यह है कि लोग सूचनाओं की वास्तविकता को जाने या उनकी पुष्टि किए बगैर उन पर भरोसा करते चले जा रहे हैं। जबकि सच यह है कि गूगल जैसे प्लेटफार्म पर भी पटकी जाने वाली अनेक जानकारियां या तो झूठ हैं या तथ्यों को तोड़मरोड़कर प्रस्तुत की जा रही हैं। पंजाबी में बात को ‘गल’ कहते हैं, यदि ‘बात’ के लिए पंजाबी के इसी शब्द का इस्तेमाल करें तो आप सहज अंदाज लगा सकते हैं गू-गल हमें क्या परोस रहा है।