आज एक मजेदार वाकया हुआ। मैं जिस विषय पर लिखना चाहता था उसकी शुरुआत मैं गीता के इस संदेश से करना चाहता था- ‘’जो हुआ, वह अच्छा हुआ,जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा।‘’ मैंने सोचा इसका मूल श्लोक ही लिखा जाए। लेकिन ऐसा अर्थ देने वाला कोई मूल श्लोक मुझे गूगल देवता पर काफी खोज करने के बाद भी नहीं मिला। मैंने प्रत्यक्ष रूप से भी कई लोगों से पूछा लेकिन कोई स्पष्ट रूप से नहीं बता पाया कि ऐसा श्लोक गीता में कहां है?
इसी बीच नेट पर एक बड़े अखबार की वेबसाइट में गीता से संदर्भित सामग्री में मुझे इन लाइनों के जिक्र के साथ मजेदार टिप्पणी मिली जो कहती है- ‘’इस सार-बिन्दु का एक भी वाक्य या इससे मिलती-जुलती बात गीता में कहीं नहीं है। इससे तो यह ध्वनि निकलती है कि जो हो रहा है सब ठीक है, जैसा चल रहा है वैसा चलने दो। इस प्रकार के भाग्यवाद और पलायनवाद का गीता में कोई स्थान नहीं है।‘’
आज की मेरी बात के केंद्र में आप इसी भाव को लेकर चलिएगा। अब मुद्दे की बात…
आज का मुद्दा है मध्यप्रदेश में हरदा जिले के कलेक्टर श्रीकांत बनोठ का तबादला और तबादला आदेश का ‘रद्दीकरण’। (मैंने जानबूझकर ‘निरस्तीकरण’ के बजाय ‘रद्दीकरण’ का इस्तेमाल किया है, क्योंकि यहां मुझे यही शब्द सबसे उपयुक्त लगा) संक्षेप में मामला यह है कि श्रीकांत बनोठ ने 23 मई को जिले के विधायक और पूर्व मंत्री कमल पटेल के बेटे सुदीप पटेल को जिला बदर करने का आदेश दिया। 24 मई को सरकार ने कलेक्टर का तबादला कर दिया और 27 मई को वह तबादला आदेश रद्द कर दिया।
अब मीडिया में इस बात को लेकर बहस हो रही है कि जब आदेश रद्द की करना था तो तबादला किया ही क्यों? एक धड़ा कह रहा है इसमें कमल पटेल को कड़ा मैसेज दिया गया है, तो कुछ लोग कह रहे हैं कि अफसरों की लॉबी ने बनोठ को बचवा लिया। कारण यह भी ढूंढा जा रहा है कि यह सब गड़बड़झाला हुआ कैसे और क्या यह मुख्य सचिव से लेकर मुख्यमंत्री तक की जानकारी में था या नहीं…
लेकिन मैं इस मामले में दूसरी ही बात देख रहा हूं, जो ज्यादा गंभीर है और जिस पर मीडिया के साथ साथ प्रदेश की जनता का भी ध्यान जाना चाहिए। मुझे लगता है कि प्रदेश में पिछले लंबे समय से भ्रष्टाचार और अन्य अनियमितताओं की बड़ी बड़ी से घटनाओं को इसी तरह जानबूझकर या तो उलझाया जा रहा है या उनकी ओर से ध्यान बंटाया जा रहा है।
उदाहरण के लिए आप हरदा का ये ही एपीसोड ले लीजिए। कमल पटेल के बेटे पर जिलाबदर की कार्रवाई का मामला कोई नया नहीं है। यह ‘कलेक्टर साहब’ के पास लंबे समय से लटका हुआ था। अब इसे दबाव बनाने की हरकत कहें या कुछ और, लेकिन इसी बीच कमल पटेल ने नर्मदा में रेत के अवैध उत्खनन का मामला उठा दिया। और उठा क्या दिया, उन्होंने जिस तरह सबूतों के साथ उसे उजागर किया उसने सरकार की सांसें फुला दीं। पटेल इस मामले को लेकर नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल तक में चले गए।
अब सारे लोग कहानी को कमल पटेल और श्रीकांत बनोठ के इर्द गिर्द घुमा रहे हैं। कोई यह बात नहीं कर रहा कि नर्मदा में अवैध रेत उत्खनन का जो मामला सामने आया था, उसका क्या हो रहा है? उसका दोषी कौन है और उस पर सरकार क्या कार्रवाई करने जा रही है? कलेक्टर के तबादला आदेश से लगा था कि शायद सरकार ने अवैध खनन के मामले को गंभीर मानते हुए कार्रवाई की है, लेकिन अब तबादला आदेश रद्द होने के बाद ऐसा क्यों न माना जाए कि सरकार या तो रेत की अवैध खुदाई करने वाले माफिया के दबाव में है या फिर उसके लिए अवैध रेत उत्खनन कोई मुद्दा ही नहीं है।
यह प्रवृत्ति केवल हरदा के मामले में ही दिखी हो ऐसा भी नहीं है। पिछले दिनों हुआ सागर जिले का बहुचर्चित महापौर अभय दरे कांड ही ले लीजिए। वहां एक ठेकेदार से दस के बजाय 25 प्रतिशत कमीशन मांगा गया। यह सीधे सीधे भ्रष्टाचार का मामला है, लेकिन बहस किसी और ही बात पर हो रही है? ऐसे सारे मामले राजनीति और प्रशासन की अंधी सुरंग में धकेल दिए जा रहे हैं। कोई इस मूल मुद्दे को छू भी नहीं रहा कि प्रदेश में सरेआम कमीशनखोरी चल रही है।
मीडिया भी ऐसे विषयों पर सतही दृष्टिकोण से बात करने लगता है। यह रवैया सरकार को सबसे ज्यादा सूट करता है, क्योंकि इससे मूल मुद्दे से लोगों का ध्यान भटकाने में मदद मिलती है। मेरे हिसाब से हरदा में मुद्दा न तो कमल पटेल का जिलाबदर हुआ बेटा है और न ही कलेक्टर श्रीकांत बनोठ। मुद्दा है नर्मदा में सरेआम सड़क बनाकर नदी के बीचोबीच हुई रेत की अवैध खुदाई।
जब रेत की अवैध खुदाई पूरी तरह से बंद कर, नर्मदा का संरक्षण करना आपका लक्ष्य है, तो ऐसी टुच्ची राजनीतिक और प्रशासनिक कलाबाजियों के बजाय आप तो यह बताएं कि वहां नर्मदा का सीना छलनी करने वाले कौन हैं और आपने उनके खिलाफ क्या किया? कथित गीता-सार की शब्दावली में कहें तो जो हुआ अच्छा हुआ, लेकिन जो हो रहा है क्या वह भी अच्छा हो रहा है?
तू इधर उधर की न बात कर, ये बता कि क़ाफ़िला क्यूँ लुटा
मुझे रहज़नों से गिला नहीं तेरी रहबरी का सवाल है