आपकी छाती पर ये ‘विदेशी वेबसाइट्स’ क्‍या कर रही हैं?

जब मैंने देश के मीडिया द्वारा संचालित कथित न्‍यूज वेबसाइट पर परोसी जाने वाली पोर्न सामग्री की बात उठाई तो मेरे पास कुछ लोगों के फोन आए, जो यह जानना चाहते थे कि क्‍या वाकई ऐसा हो रहा है? किसी ने यह बात भी उठाई कि आजकल कई वेबसाइट हैक भी हो रही हैं कहीं ऐसा तो नहीं कि आपने जो वेबसाइट देखी वह हैकिंग का शिकार हुई हो?

वैसे तो ऐसा कहीं से नहीं लगता कि ये वेबसाइट हैक हुई होंगी। क्‍योंकि इनको देखने वाले या इनकी नियमित मॉनिटरिंग करने वाले लोग भी होते होंगे। और न होते हों तो होने चाहिए। और फिर यह किसी एक वेबसाइट का मामला नहीं है। मैंने ऐसी कई वेबसाइट्स को खंगाला और पाया कि ज्‍यादतर में आपत्तिजनक कंटेट मौजूद है। यह बताता है कि ऐसी सामग्री सोच‍ विचार कर, शुद्ध धंधा करने के लिहाज से ही दिखाई जा रही है। जो दिखाई देता है उससे साफ समझ में आता है कि खेल आखिर चल क्‍या रहा है।

दरअसल इन वेबसाइट्स का सारा खेल या धंधा उन्‍हें मिलने वाले हिट्स पर निर्भर करता है। जिस वेबसाइट के पास जितने ज्‍यादा हिट्स होते हैं, उसे उतने ही अधिक विज्ञापन प्राप्‍त होते हैं। यह कुछ-कुछ अखबारों की प्रसार संख्‍या और टीवी चैनलों की टीआरपी जैसा ही मामला है। विज्ञापनदाता अधिक संस्‍करण और अधिक प्रसार संख्‍या वाले अखबारों को अथवा अधिक टीआरपी वाले चैनलों को अपने विज्ञापन अभियान में ज्‍यादा तवज्‍जो देते हैं। ऐसे अभियानों का मोटा माल इन्‍हीं लोगों के पेट में जाता है।

लेकिन खबर को देखने वाले या उसमें रुचि रखने वाले तो करोड़ों की संख्‍या में हैं नहीं। ऐसा इसलिए क्‍योंकि अब खबर के लिए पाठक या दर्शक के पास किसी एक स्रोत पर आश्रित रहने की मजबूरी नहीं है। लोगों के पास प्रिंट व इलेक्‍ट्रानिक मीडिया के अलावा इंटरनेट और सोशल मीडिया जैसे कई स्रोत हैं जिनकी लाखों लाख शाखाएं करोड़ों सूचनाओं से लदी रहती हैं। ऐसे में खबरों की वेबसाइट पर सिर्फ खबर के जरिए प्रतिस्‍पर्धा नहीं की जा सकती। इसके लिए दूसरा मसाला और दूसरा रास्‍ता अपनाया जाता है।

और यही कारण है कि इन वेबसाइट्स ने खुद की प्रसार संख्‍या यानी हिट्स बढ़ाने के लिए ऐसी सामग्री का सहारा लिया है जो लोगों की दमित इच्‍छाओं से जुड़ी हैं। इनमें सबसे ऊपर आती है सेक्‍स या सेहत से जुड़ी सामग्री। यही कारण है कि अपने डिजिटल प्‍लेटफार्म्स पर करीब करीब सभी लोगों ने ऐसे कोने बना रखे हैं जहां ऐसी सामग्री की लिंक्स लपक झपक विज्ञापनों के रूप में रह रहकर कौंधती रहती है।

वेबसाइट्स से पैसा कमाने के लिए हिट्स चाहिए और ऐसी लपक झपक सामग्री बिना किसी बौद्धिक निवेश के करोड़ों हिट्स मुहैया करा देती हैं, इसलिए हर कोई इस काम में पिला पड़ा है। उधर सरकारों के विज्ञापनदाता विभाग भी बिना कोई ध्‍यान दिए केवल हिट्स के आधार पर ऐसे तमाम प्‍लेटफार्म्स को भारी भरकम विज्ञापन देकर समाज को जहरीला बनाने वाले इन लोगों को ही पाल पोस रहे हैं। सही मायनों में समाज के लिए उपयोगी जानकारी देने वाले ऐसे मंच तो बेचारे दूर कहीं धूल फांक रहे हैं। आखिर ऐसी कोई निगरानी संस्‍था क्‍यों नहीं होनी चाहिए जो यह तय करे कि जहां भी इस तरह की सामग्री दिखाई जाएगी उन वेबसाइट्स को सरकारी विज्ञापन नहीं दिए जाएंगे या उन पर और बाकी अंकुश लगाए जाएंगे।

निर्भया वाले मामले को वेबसाइट्स पर देखते समय एक और बात ने मुझे चौंकाया। कई वेबसाइट्स पर प्रदर्शित सामग्री में विदेशी वेबसाइट्स की लिंक दिखाई देती है। यह सवाल मन में आना स्‍वाभाविक है कि ये विदेशी वेबसाइट्स क्‍यों दिखाई जा रही हैं या हमारी वेबसाइट्स में इनकी घुसपैठ कैसे हो रही है? कहीं हमारी वेबसाइट्स जाने अनजाने किसी खुफिया साजिश का शिकार तो नहीं हो रहीं? कहीं ऐसी लिंक के जरिए हमारे नेटतंत्र में कोई सुरंग तो नहीं बनाई जा रही? यदि ऐसा है तो यह देश की सुरक्षा से जुड़ा मामला है और इसकी गहरी छानबीन होनी चाहिए।

कुल मिलाकर सोचने वाली बात यह है कि हम खबरें दिखाने के नाम पर लोगों को क्‍या दिखा रहे हैं, उन्‍हें जानकारी की दुनिया में ले जाने के नाम पर किस दुनिया में ले जा रहे हैं। तर्क दिया जा सकता है कि कोई क्‍या देखे या न देखे यह उसका निजी मामला है। बिलकुल ठीक है, इस तर्क पर सहमति और असहमति दोनों हो सकती है। लेकिन क्‍या हम किसी स्‍कूल या कॉलेज की लाइब्रेरी में पोर्न वीडियो सीडी रख सकते हैं? क्‍या ऐसा करते हुए हम वही तर्क (कुतर्क) देना चाहेंगे कि बच्‍चे क्‍या देखते हैं और क्‍या नहीं यह उनका निजी मामला है। बच्‍चा अपने खुद के कंप्‍यूटर या मोबाइल पर क्‍या देखे यह तो उसका निजी मामला हो सकता है,लेकिन स्‍कूल की लाइब्रेरी में क्‍या हम उसे ऐसी सामग्री उपलब्‍ध कराना चाहेंगे?

मेरा सवाल बड़ी बड़ी बातें बनाने वाले, बौद्धिक जुगाली करने वाले, अपने आपको खबरों की दुनिया में अव्‍वल कहने वाले, जानकारी के लिहाज से लोगों को हमेशा आगे रखने का दावा करने वाले, सच और हक की बात करने वाले, बात बेबात दूसरों के गिरेबान में झांकने वाले मीडिया से है कि जरा अपने गिरेबान में भी तो कभी नजर डाल लें…

कसम से, वहां बहुत माल-मसाला मौजूद है, कभी उस पर भी बात करने की हिम्‍मत जुटाएं…

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here