धर्म की जय हो… किसी का हो न हो, हमारा कल्याण जरूर हो

धर्म की जय हो, अधर्म का नाश हो,

प्राणियों में सद्भाव हो, विश्‍व का कल्‍याण हो…

आप सोच रहे होंगे कि आज इस आदमी को क्‍या हो गया? धर्म-अधर्म और सद्भाव-कल्‍याण टाइप कैसी बहकी बहकी बातें कर रहा है…? गिरेबान टाइप कॉलम का धार्मिक समागमों में होने वाले इस सनातनी उद्घोष से आखिर क्‍या लेना देना?

तो सुनिए! आज मेरा मन तमाम सांसारिक मोह माया से मुक्‍त होकर धर्म में लीन हो जाने को कर रहा है। मुझे बार बार तुलसीदास जी की वे पंक्तियां याद आ रही हैं जो कहती हैं- होइहि सोइ जो राम रचि राखा। को करि तर्क बढ़ावै साखा यानी इस संसार में वही होता है जो राम ने रच रखा है।

मुझे नहीं पता कि तुलसी ने कर्मण्‍येवाधिकारस्‍ते का संदेश देने वाली गीता का अध्‍ययन करने के बाद ये पंक्तियां लिखी थीं या उसके पहले। क्‍योंकि वही तुलसी एक जगह यह भी कहते हैं कि कर्म प्रधान विश्‍व रचि राखा, जो जस करइ सो तस फल चाखा… यह भी हो सकता है तुलसी ने गीता पढ़ी हो लेकिन वे कन्‍फ्यूज हों कि मनुष्‍य के जीवन और कर्म के फल में प्रधानता किसको देनी है, कर्मण्‍यता को या भाग्‍य को…

दरअसल मैं भी आज तुलसीदास जी की तरह कन्‍फ्यूज हूं। तय नहीं कर पा रहा हूं कि कर्म को केंद्र में रखकर यह कॉलम लिखूं या भाग्‍य को… मेरे इस कन्‍फ्यूजाने का कारण भी रिश्‍वत लेते पकड़े गए वे श्रीमान एस.के. कथूरिया जी हैं जिनके बारे में मैंने रविवार को लिखा था। इन दिनों मैं उनसे जुड़ी तमाम खबरों और सूचनाओं का बारीकी से अध्‍ययन कर रहा हूं। और मुझे लगता है कि इस पट्ठे के जरिए जो केस सामने आया है उसे लेकर कोई उत्‍साही शोधार्थी मध्‍यप्रदेश में भ्रष्‍टाचार के विभिन्‍न आयाम: एक अनुशीलन टाइप थीसिस लिखकर डॉक्‍टरेट कर सकता है।

ऐसी ही खबरों को टटोलते टटोलते मुझे रविवार को ही एक अखबार में छपी वह खबर दिखाई दी जिसने मुझे आज धार्मिक होने पर मजबूर कर दिया। खबर के मुताबिक सतना नगर निगम के कमिश्‍नर कथूरिया साहब को रिश्‍वत लेते रंगे हाथों पकड़े जाने की घटना को सतना की महापौर यानी कथूरिया साहब की बॉस ने प्रेतबाधा का परिणाम बताया है।

महापौर ममता पाण्‍डेय ने कहा कि लोग आए दिन रिश्‍वत लेते हुए गिरफ्तार हो रहे हैं, ऐसी कार्रवाइयों से नगर निगम को बचाने के लिए वे अनुष्‍ठान करवाएंगी। उन्‍होंने रिश्‍वत कांड को एक और अपशकुन से जोड़ दिया। उनका कहना था कि जब से सतना को स्‍मार्ट सिटी घोषित किया गया है, तब से यहां भूत प्रेत का साया पड़ गया है। हमें नगर निगम को बुरी नजर से बचाना होगा।

अब पहले तो यह खबर मोदीजी तक पहुंचनी चाहिए कि वे क्‍यों देशभर के दर्जनों शहरों को स्‍मार्ट बनाकर भूतप्रेत की बाधा से ग्रस्‍त कर रहे हैं। वे भले ही किसी और उद्देश्‍य से शहरों को स्‍मार्ट  बनाना चाह रहे हों, लेकिन इधर उनके चक्‍कर में शहरों को नजर लगती जा रही है। बेचारे अफसरों को यह नजर उतारने के लिए लोगों से नजराना लेना पड़ रहा है। इसलिए सरकार माईबाप आप बराए मेहरबानी इस स्‍मार्ट सिटी की प्रेतबाधा पर कृपया पुनर्विचार करें। और बाकी शहरों पर आप अनुकंपा करें न करें लेकिन सतना को तो इस स्‍मार्टबाधा से मुक्‍त कर ही दें…

दूसरी बात रिश्‍वतखोरी को प्रेत बाधा बताते हुए अनुष्‍ठान करवाने की है। मुझे नहीं पता कि महापौर साहिबा को यह प्रेतबाधा वाला इलहाम कहां से हुआ? यह भी जानने वाली बात है कि क्‍या किसी और ने उनके कान में यह बात फूंकी या वे खुद ही इस नतीजे पर पहुंच गईं कि हो न हो यह सब भूतप्रेत का ही किया धरा है।(लोकायुक्‍त संगठन वाले ध्‍यान दें।) इसीलिए वे अब अनुष्‍ठान के जरिए इन भूत प्रेतों को भगाना चाहती हैं। अभी यह पता नहीं चल पाया है कि इस तरह का अनुष्‍ठान कोई पंडित/पुजारी संपन्‍न कराएगा या इसके लिए किसी तांत्रिक या ओझा को बुलवाया जाएगा।

लेकिन धन्‍य है मध्‍यप्रदेश, धन्‍य है यहां की धरा… धन्‍य हैं यहां के धनी धोरी… एक अफसर के सरेआम रिश्‍वत लेते पकड़े जाने को इस प्रदेश की जनता के नुमाइंदे प्रेत बाधा बता रहे हैं। इनसे आप क्‍या उम्‍मीद कर सकते हैं कि ये अफसरों को नकेल डालकर रखेंगे या भ्रष्‍ट अफसर उनके डर के कारण कांपेंगे। जब ऐसे नेता राज करने वाले हों तो असली राजा तो अफसर ही होंगे।

वैसे ममता पाण्‍डेय ने आइडिया बुरा नहीं दिया है। यह भले ही एक शहर की छोटी सी सरकार की तरफ से आया हो, लेकिन इस पर हमारी भोपाल की बड़ी सरकार को जरूर विचार करना चाहिए। यूं भी हमारे यहां कथा-प्रवचन, व्रत-उपवास की लंबी परंपरा है… यदि छोटा मोटा अनुष्‍ठान करने से रिश्‍वतखोरी जैसी बुराई खत्‍म हो जाए तो इससे बड़ी नेमत और क्‍या हो सकती है। इस तरीके पर किसी को आपत्ति भी नहीं होगी, क्‍योंकि ऐसे अनुष्‍ठानों के तार ‘धर्म’ और ‘धार्मिक’ आस्‍थाओं से जुड़ते हैं। यानी यह दोनों हाथ में लड्डू टाइप मामला है, एक हाथ में रिश्‍वतखोरी का खात्‍मा और दूसरे हाथ में वोट का जखीरा…

मेरा तो सुझाव है कि यह काम प्रदेश के नवगठित आनंद विभाग को सौंप देना चाहिए। वैसे भी इस विभाग के पास कोई ठोस काम नहीं है, ऐसे में वह गांव गांव में सत्‍यनारायण की कथा करवाए और जहां जहां भी रिश्‍वत के मामले आएं वहां अनुष्‍ठान… इसके लिए वह पंडे, पुजारियों और तांत्रिकों, ओझाओं से टेंडर बुला सकता है। हर गांव, कस्‍बे के अलावा स्‍मार्ट, अस्‍मार्ट सभी शहरों के साथ इस काम को लेकर एएमसी किया जा सकता है… इससे विभाग सेल्‍फ फाइनेंस्‍ड भी हो जाएगा।

रही आपकी बात, तो आप सोचते रहिए कि इस दुनिया में लहरें गिनने की गुंजाइशें कितनी अपार हैं…

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