पुरानी कहावत कहती है कि नक्कारखाने में तूती की आवाज दबकर रह जाती है। लेकिन इन दिनों देश में जो धमाके हो रहे हैं, उनमें नगाड़ों की आवाज भी कुचलकर रह गई है। आप इस परिदृश्य को यूं भी समझ सकते हैं कि ये धमाके किये ही इसलिए जा रहे हैं ताकि तूती तो छोडि़ए, नगाड़ों की आवाज भी लोगों को ठीक से सुनाई न दे सके। ये धमाके कान को सुन्न कर सुनने की क्षमता ही छीन ले रहे हैं,और जब सुनने की क्षमता ही नहीं रहेगी, तो कान के पास चाहे तूती बोले या नगाड़े क्या फर्क पड़ना है।
आज इतनी लंबी भूमिका इसलिए बनानी पड़ी ताकि जो बात मैं कहने जा रहा हूं,आप उसे इस उदाहरण के जरिए अच्छे से समझ सकें। जिस समय देश में कश्मीर हिंसा का हौवा चल रहा है, जिस समय गोसंरक्षण और गोहत्या का होहल्ला है और जिस समय मवेशियों की खरीद फरोख्त पर लाए गए नए कानून कायदों को लेकर बवाल मचा हुआ है, ठीक उसी समय देश में एक ऐसी घटना भी घट रही है, जिस पर सबसे ज्यादा चर्चा होनी चाहिए, लेकिन दुर्भाग्य से उस पर वैसी बात कोई भी नहीं कर रहा।
जिस समय देश ऊपर गिनाए गए मुद्दों में उलझा हुआ है, उसी समय सरकार चुपचाप जीएसटी जैसी महत्वपूर्ण व्यवस्था को अंतिम रूप देने में लगी हुई है। कश्मीर के पत्थरबाजों से भले ही पूरा देश वैसे प्रभावित न हो रहा हो, गोहत्या और गोसंरक्षण अलग अलग लोगों के लिए अलग अलग तरीके से मुद्दा बन रहे हों,मवेशी खरीद फरोख्त के नियमों को लेकर भी सरोकार बंटे हुए हों, लेकिन जीएसटी ऐसा मुद्दा है जिससे पूरा देश समान रूप से प्रभावित होने वाला है।
और मुझे लग रहा है कि इस महत्वपूर्ण मुद्दे से ध्यान भटकाने के लिए या तो दूसरे विवाद जानबूझकर खड़े किए जा रहे हैं या फिर परिस्थितियां ऐसी निर्मित की जा रही हैं कि विवाद खड़े हों और देश उन्हीं में उलझ कर रह जाए। यही कारण है कि वह आम आदमी जिसकी जेब से इस टैक्स की राशि वसूल होनी है वह इसे समझ ही नहीं पा रहा और जिन व्यापारियों को इस नए ढांचे का बोझ अपने कंधों पर ढोना है, वे अंदर ही अंदर कसमसा रहे हैं।
मध्यप्रदेश के ऐसे ही एक व्यापारी ने मुझे वाट्सएप संदेश भेजकर गुजारिश की है कि मैं इस मंच से यह बात भी उठाऊं कि जीएसटी को लेकर व्यापारी क्या सोच रहे हैं? मैं आर्थिक मामलों का विशेषज्ञ नहीं हूं और न ही कर ढांचे का जानकार हूं। जीएसटी के बारे में भी मैं रोज केवल वे सरकारी सूचनाएं पढ़ रहा हूं जो कहती हैं कि इसके आने के बाद देश की अर्थव्यवस्था में क्रांतिकारी बदलाव आएगा। कई चीजों के दाम कम हो जाएंगे और लोगों को अलग अलग टैक्स देने के झंझट से मुक्ति मिलेगी।
पर अब तक का मेरा सामान्य अनुभव कहता है कि देश में एक बार जिन चीजों के दाम बढ़ गए वे बढ़ गए। सरकार चाहे किसी की हो, कोई माई का लाल बढ़े हुए दामों को कम नहीं करवा पाया है। यही हाल कर ढांचे के सरलीकरण संबंधी दावों का है। आयकर के मामले में भी ऐसे दावे सालों से होते आए हैं और कारोबार संबंधी कर-व्यवस्था के बारे में भी। लेकिन शुरुआती दौर में जिस व्यवस्था को बहुत सरल और पीपुल फ्रेंडली बताया जाता है, कुछ दिन बीतते बीतते वही व्यवस्था मानो लोगों से दुश्मनी निकालने पर उतर आती है।
इसी संदर्भ में उस व्यापारी की पीड़ा और सवाल आप भी सुन लीजिए जिसके मन में जीएसटी को लेकर कई शंकाएं हैं। उसने लिखा है कि व्यापारी भी चाहते है कि कारोबार के दौरान उन्हें कम से कम लिखा पढ़ी करना पड़े, कम से कम कागजी कार्यवाही हो, कम से कम समय में सरकारी काम निपट जाये। व्यापारी, इन सारे झंझटों से दूर रहकर अपने व्यापार पर ज्यादा ध्यान देना चाहता है। लेकिन उसे लगातार नियम, कायदों और कागजी लिखापढ़ी में उलझाया जा रहा है।
उन व्यापारी सज्जन ने अपनी समझ में जीसएटी को जो समझा है उसके मुताबिक-
अब व्यापारियों को एक माह में तीन-तीन रिटर्न भरने होंगे। ऐसा होने पर गलती की सम्भावना भी बढ़ेगी। गलतियां सुधारने के लिए भी बहुत कम समय मिलेगा। अब व्यापारी, व्यापार करने के बजाय पूरे माह GST के रिटर्न भरने या उसकी औपचारिकताएं पूरी करने में ही लगा रहेगा।
एक जुलाई से लागू होने वाली, नई व्यवस्था की चुनौतियों से निपटने के लिएव्यापारी को अनिवार्य रुप से एक मुनिम/वकील रखना होगा। यानी उसका खर्च बढ़ेगा। प्रतिदिन खरीद बिक्री के बिलों का ब्योरा एकाउंटटेंट को देना होगा। माह के अंत में सारे बिलों की पड़ताल करनी होगी। नई व्यवस्था उसे इतना उलझा देगी कि वह न तो खुद पर ध्यान दे पाएगा न घर परिवार पर। एकल व्यापारियों की मुसीबत तो और अधिक होगी।
व्यापारी के मुताबिक सबसे ज्यादा मरण छोटे व्यापारियों का होने वाला है। जीएसटी से लालफीता शाही में जबरदस्त वृद्धि होगी और फिर से देश में इस्पेक्टर राज हावी हो जायेगा। छोटे-छोटे व्यवसाय बन्द होने से देश में बेरोजगारी बढेगी। इससे और अधिक भ्रष्टाचार तो पनपेगा ही, अपराध और कानून व्यवस्था की स्थिति भी बिगड़ेगी।
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मैं यह नहीं कह रहा हूं कि यह सब शब्दश: घटित होगा ही। लेकिन मेरे लिए यह विचारणीय विषय जरूर है कि जिन व्यापारियों को जीसएसटी से जूझना है, उनके मन में इसे लेकर इस हद तक शंकाएं हैं तो फालतू बातों और मुद्दों में देश को उलझाने के बजाय, इन शंकाओं का निराकरण सबसे पहले किया जाना चाहिए। देश की खेती और मेन्युफैक्चरिंग सेक्टर तो पहले ही संकट से जूझ रहे हैं, कहीं व्यापार भी इसकी चपेट में आ गया तो उसके परिणाम भयानक होंगे