हमने वेदांती मस्तिष्‍क और इस्‍लामी शरीर से ही निपटाया

कल जब मैंने उड़ी के आतंकवादी हमले को लेकर, पाकिस्‍तान पर जवाबी कार्रवाई के बारे में, भारत में चल रही उन्‍मादी बहस का जिक्र करते हुए, करीब 120 साल पहले कहे गए स्‍वामी विवेकानंद के एक कथन का हवाला दिया था, तो कतई अनुमान नहीं था कि भारतीय सेना बुधवार की रात ही पा‍क अधिकृत कश्‍मीर में घुसकर आतंकवादियों को इतना जबरदस्‍त सबक सिखा आएगी। भारतीय सेना को इस कार्रवाई के लिए बधाई देते हुए कल की अधूरी बात को आगे बढ़ाते हैं। वैसे यह संयोग ही है कि हमारी बात जिस दिशा में आगे बढ़नी थी,भारतीय सेना ने वैसी ही कार्रवाई की है।

हमने जो मुद्दा उठाया था उसके केंद्र में स्‍वामी विवेकानंद का वह कथन था जिसमें उन्‍होंने भारत के लिए वेदांती मस्तिष्‍क और इस्‍लामी शरीर वाला धर्म सबसे उपयुक्‍त बताया था। सवाल उठना स्‍वाभाविक है कि इस्‍लामी शरीर से स्‍वामी विवेकानंद का आशय क्‍या रहा होगा?

स्‍वामी विवेकानंद के संचार पर पुस्‍तक लिखते समय इस विषय पर मेरी कई लोगों से बात हुई। उस बातचीत में मुझे स्‍वामीजी के इस कथन पर सबसे ज्‍यादा व्‍यावहारिक टिप्‍पणी कन्‍याकुमारी स्थित स्‍वामी विवेकानंद केंद्र की उपाध्‍यक्ष विदुषी निवेदिता जी की लगी। उन्‍होंने कहा- ‘’स्‍वामीजी जब यह बात कह रहे थे तो उस समय के भारत में भी काफी अच्छी संख्या में मुसलमान थे। जहां तक किसी भी घटना पर शारीरिक रूप से तुरंत रिस्पांस या प्रतिक्रिया देने की बात है तो वह रिस्‍पांस एक मुसलमान ज्यादा अच्छा देता है। उसके जैसा रिस्‍पांस हिंदू समाज नहीं देता। मुसलमान रिएक्ट करता है, वह तुरंत रिस्पांसिव है। रिस्पांसिबल है, यह मैं नहीं बोल रही… रिस्पांसिव है, यह बोल रही हूं… जो हिंदू समाज नहीं है… और रिस्पांस हमेशा शरीर से होगा, उसके लिए बॉडी चाहिए।‘’

‘’स्वामीजी जब इस्लाम का उदाहरण दे रहे थे, तब शायद उनका अभिप्राय यह रहा होगा कि हमें अपने समाज के प्रति, समाज के हित में तुरंत रिस्पांस देने वाला बनना है। लेकिन इसके साथ ही हमारी सोच आत्मीयता की हो, एकात्मता की हो… और इसीलिए उन्होंने इस्लाम के शरीर और वेदांत के मस्तिष्‍क की बात कही।‘’

अब इस विश्‍लेषण को भारत पाकिस्‍तान के हाल के घटनाक्रम के संदर्भ में देखें। उड़ी की घटना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से जो अपेक्षा की जा रही थी, वह रिस्‍पांसिव होने की ही तो थी। जब वे गरीबी, अशिक्षा,बेरोजगारी और अस्‍वच्‍छता से लड़ाई लड़ने की बात कर रहे थे तो वे वेदांत की आत्‍मीयता और एकात्‍मता की बात कर रहे थे। वो वेदांती मस्तिष्‍क की बात थी। लेकिन स्‍वामी विवेकानंद उसके साथ इस्‍लामी शरीर भी चाहते थे। यानी यदि हमारे देश, हमारे धर्म और हमारी अस्मिता पर कोई आक्रमण हो तो हम तुरंत प्रतिकार करें। केवल जुबानी जमा खर्च करके ही चुप न बैठ जाएं।

बुधवार आधी रात से पहले और उसके बाद का घटनाक्रम बताता है कि भारत सरकार और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दोनों स्‍तरों पर काम किया। उन्‍होंने कोझीकोड की रैली में पाकिस्‍तानी अवाम को संबोधित किया। उनसे कहा कि वे अपने हुक्‍मरानों के बहकावे में न आए। मोदी ने विकास की बात की, पाकिस्‍तानी अवाम की भलाई की बात की। उसके बाद उन्‍होंने भाजपा की राष्‍ट्रीय परिषद की बैठक में कहा कि मुस्लिमों को वोट की मंडी न समझा जाए। न तो उनका तुष्टिकरण हो न उन्‍हें तिरस्‍कृत किया जाए। सरकार यहीं नहीं रुकी उसने पीओके में जवाबी कार्रवाई से ठीक 24 घंटे पहले ऐलान किया कि वह मुस्लिमों के कल्‍याण और उनकी समस्‍याएं सुनने व उनका समाधान करने के लिए देश में मुस्लिम पंचायत करेगी। और इसकी शुरुआत गुरुवार को हरियाणा के मेवात इलाके से हो भी गई।

यानी मोदी सरकार ने स्‍वामी विवेकानंद के ‘इच्छित धर्म’ की वेदांती मस्तिष्‍क वाली पहली शर्त तो इस मायने में पूरी कर दी थी कि उसने सभी को जोड़ने की कोशिश की। लेकिन सवाल बचा था इस्‍लामी शरीर का। देश को उड़ी में जो घाव दिए गए थे, उस पर प्रतिक्रिया का। देश में भावना या उन्‍माद का जो ज्‍वार आया था वो इसी मांग को लेकर था कि अब बहुत हो चुका, सरकार कोई ठोस जवाबी कार्रवाई जरूर करे।

और यह प्रतिक्रिया या कार्रवाई बुधवार की रात करके दिखा दी गई। सरकार ने एक तरह से स्‍वामी विवेकानंद के ‘धर्म’ को चरितार्थ किया कि उसके पास वेदांती दिमाग भी है और इस्‍लामी शरीर भी। हालांकि जब भी इस तरह के संकट या विपरीत परिस्थितियां आती हैं, हम एकदम से नहीं कह सकते कि जो रिएक्‍शन हुआ है, वह किसी खास विचार का ही परिणाम है। लेकिन अवचेतन में मौजूद वह विचार हमारे एक्‍शन या रिएक्‍शन को प्रभावित जरूर करता है।

नरेंद्र मोदी खुद एक समय स्‍वामी विवेकानंद के जीवन से प्रभावित होकर संन्‍यासी होना चाहते थे। और यह भी सिर्फ संयोग ही नहीं है कि इन दिनों प्रधानमंत्री मोदी के सबसे विश्‍वस्‍त सहयोगी और देश के सुरक्षा सलाहकार अजीत डोभाल भी वर्तमान पर पद नियुक्‍त होने से पहले दिल्‍ली में विवेकानंद फाउंडेशन के मुखिया थे। आज पाकिस्‍तान के साथ कूटनीतिक से लेकर सैन्‍य कार्रवाई तक में डोभाल की भूमिका किसी से छिपी नहीं है।

तो क्‍या देश ‘’वेदांती मस्तिष्‍क और इस्‍लामी शरीर’’ वाले धर्म की ओर बढ़ रहा है…?

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