अंजाम के लिए इंतजार करें, चुनाव नतीजे आने तक

जिन लोगों ने शुक्रवार को टीवी चैनलों पर नरेंद्र मोदी सरकार का आखिरी बजट प्रजेंटेशन देखा होगा उन्‍होंने यह जरूर नोटिस किया होगा कि पीयूष गोयल ने जैसे ही पांच लाख रुपए तक की आय को टैक्‍स फ्री करने की घोषणा की, पूरे सदन का माहौल ही बदल गया। लंबे समय बाद मोदी.. मोदी.. वाला नारा सुना गया। भाजपा और एनडीए के अन्‍य सहयोगी दलों के सांसद जब पूरी ताकत से मेजें थपथपाते हुए इस घोषणा का स्‍वागत कर रहे थे तब विपक्ष सुन्‍न सा बैठा था।

लेकिन पूरे वाकये के दौरान लोकसभा टीवी वालों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जो विजुअल्‍स दिखाए वे काफी सारी बातें कह गए। एक तो मैंने महीनों बाद मोदी के चेहरे पर एक विजयी मुसकुराहट देखी। सदन के बदले हुए माहौल के दौरान बगल में बैठे गृह मंत्री राजनाथसिंह की ओर देखकर व्‍यक्‍त की गई मोदी के चेहरे की भाव मुद्रा मानो यह जताने की कोशिश थी कि उन्‍होंने किला जीत लिया है।

ऐसा नहीं है कि मोदी सरकार से आयकर में छूट की अपेक्षाएं पहले नहीं की गईं। जब से यह सरकार आई है हर बजट में ऐसी अपेक्षाएं लेकर टीवी चैनल चीखते चिल्‍लाते नजर आए हैं, लेकिन लोगों के कहने या दबाव को हमेशा दरकिनार करने की फितरत वाले नरेंद्र मोदी ने कभी वह नहीं किया जिसके लिए हल्‍ला मचाया गया या कोई दबाव बनाया गया।

पर इस बार सरकार सचमुच दबाव में दिखी। सबसे बड़ा दबाव चुनाव के रण में जाने का है। शायद यही कारण है कि इस बार उस वर्ग को कुछ ज्‍यादा सहलाने और पुचकारने की जुगत की गई है जो बहुत मुखर है। जाहिर है सरकार उस मध्‍यम वर्ग की नाराजी का खतरा उठाने की स्थिति में नहीं है जो चुनावी साल में और कुछ न कर सके लेकिन हवा बिगाड़ने में बड़ी भूमिका निभा सकता है।

इस बात का अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि सदन के माहौल और सांसदों की प्रतिक्रिया में उस समय वो गरमाहट नहीं दिखी जब पीयूष गोयल किसानों और मजदूरों के हित की घोषणाएं कर रहे थे। यानी किसानों के मामले में जुबानी जमाखर्च कितना ही होता हो, पर हमारी संसद और उसके सदस्‍यों का मानस भी शहरी मध्‍यम वर्ग की ‘छवि बिगाड़ू’ क्षमता से डर रहा है।

बजट को लेकर जारी एक सरकारी प्रेस नोट के मुताबिक पांच लाख रुपए तक की आय को कर से छूट देने और मानक कटौती का दायरा बढ़ाने आदि के चलते लघु और मध्‍यम करदाताओं को करीब 23 हजार करोड़ रुपए की राहत मिलेगी। जबकि किसानों के लिए घोषित की गई किसान सम्‍मान निधि योजना पर सरकार 75 हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी। यानी किसानों पर खर्च की जाने वाली राशि वेतनभोगी मध्‍यम वर्ग की तुलना में करीब तीन गुना है। यह प्रावधान दर्शाता है कि सरकार ने चुनावी मजबूरियों के चलते मध्‍यम वर्ग को खुश करने की कोशिश जरूर की है लेकिन उसने अपने बड़े वोट बैंक यानी किसान के लिए खजाने का ढक्‍कन कुछ ज्‍यादा खोला है।

पर क्‍या वास्‍तव में ऐसा ही है? सरकारी प्रेस नोटों में मुझे यह आंकड़ा नहीं दिखा कि पांच लाख रुपए तक की आय को कर मुक्‍त कर देने से प्रति आयकरदाता को औसतन कितना फायदा होगा, लेकिन टीवी चैनल दिन में दिखा रहे थे कि यह फायदा करीब 13 हजार रुपए तक का होगा। अब इस लिहाज से देखें तो किसानों को सम्‍मान निधि के नाम पर साल में मिलेंगे छह हजार रुपए और आयकर देने वाले लघु एवं मध्‍यम करदाताओं को साल में फायदा होगा 13 हजार रुपए का। यानी उन्‍हें किसानों से दो गुना ज्‍यादा फायदा मिलेगा।

बजट पेश होने के साथ ही इसकी नुक्‍ताचीनी भी शुरू हो गई है। अलग अलग राजनीतिक दलों ने अपने अपने हिसाब से बजट की व्‍याख्‍या कर आंकड़ों से खेलते हुए बयान जारी किए हैं। जैसे कांग्रेस अध्‍यक्ष राहुल गांधी ने किसान सम्‍मान निधि की 6000 सालाना राशि की प्रतिदिन के हिसाब से गणना करते हुए कहा है कि सरकार ने किसानों को 17 रुपए रोज का झुनझुना पकड़ा दिया है।

बजट पेश होने के बाद टीवी चैनलों पर होने वाली चर्चाओं के दौरान एक विशेषज्ञ ने तर्क दिया कि इस फैसले से भूमि सुधार कार्यक्रमों को धक्‍का लगेगा। उनका कहना था कि सम्‍मान निधि के लिए दो हेक्‍टेयर यानी पांच एकड़ तक की जमीन की पात्रता रखी गई है। इस कारण अब यह होगा कि सम्‍मान निधि लेने के फेर में कृषि जोतें और छोटी हो जाएंगी। यदि किसी के पास छह एकड़ जमीन है तो वह अपनी जमीन के तीन तीन एकड़ के दो टुकड़े करके इसका लाभ लेने की कोशिश करेगा।

चूंकि चुनाव सामने हैं इसलिए ऐसी तमाम बातें और बजट की नुक्‍ताचीनी चुनाव तक चलने वाली है। बहरहाल संसद के पिछले सत्र में सामान्‍य वर्ग के गरीबों को दस प्रतिशत आरक्षण वाला बिल पास कराने के बाद अब शहरी मध्‍यम वर्ग को आयकर में बड़ी छूट देने और किसानों व मजदूरों को सीधे आर्थिक फायदा पहुंचाने की योजनाएं लाकर सरकार शायद समझ रही होगी कि उसने अपने कार्यकाल का अंत आते आते जनमानस में फैल रही नाराजी को दूर करने के पर्याप्‍त जतन कर लिए हैं।

लेकिन ऐन वक्‍त पर उठाए गए इन कदमों का राजनीतिक फायदा चुनाव में कितना मिलेगा, यह जानने के लिए आपको लोकसभा चुनाव परिणामों का इंतजार करना होगा।

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