एमपी अजब है, सबसे गजब है…
कभी कभी मेरा मन करता है कि जिसने भी ये लाइनें लिखी हैं उसके हाथ चूम लूं। मध्यप्रदेश की ऐसी ‘भूतो न भविष्यति’ वाली पहचान के बारे में किसी ने सोचा तक नहीं होगा। वैसे तो ये लाइनें मध्यप्रदेश में पर्यटन का प्रचार प्रसार करने के लिहाज से बने विज्ञापन के लिए रची गई हैं लेकिन इनमें शाश्वत और सार्वकालिक होने का जो तत्व छिपा है, वो कमाल का है। आप मध्यप्रदेश के किसी भी क्षेत्र को उठा लीजिए और उसकी पहचान के बारे में ये लाइनें ठोक दीजिए, बिलकुल फिट बैठेंगी। यदि आप मध्यप्रदेश में किसी को निशाना बनाना चाहते हैं, तो इन लाइनों का इस्तेमाल करिए, मेरा दावा है कि आपका तीर बिलकुल निशाने पर ही लगेगा।
जैसे इन दिनों प्रदेश में चर्चित कुपोषण का मामला ही ले लीजिए। अब कहां तो पर्यटन और कहां कुपोषण… दोनों का दूर दूर तक कोई लेना देना नहीं है। लेकिन कुपोषण के मामलों की जांच करने श्योपुर जिले के दौरे पर गए हमारे अफसरों ने मध्यप्रदेश के अजब और गजब होने पर मुहर लगा दी। महिला बाल विकास और स्वास्थ्य विभाग के प्रमुख सचिवों के दौरे की जो खबरें राजधानी तक आई हैं वे कहती हैं कि जब कुपोषण को लेकर प्रभावित गांवों में सवाल-जवाब ज्यादा होने लगे तो अफसरों ने बिजली आपूर्ति, आधार कार्ड, गरीबों को गैस कनेक्शन देने वाली उज्ज्वला योजना और शौचालय निर्माण पर जानकारी लेना शुरू कर दिया। ऐसा कमाल हमारे यहां ही हो सकता है। जांच करने जाओ कुपोषण की और सवाल करो शौचालय के बारे में।
हाल ही में रिलायंस जिओ की लांचिंग के बाद एक जुमला देश में जोर शोर से उछला है कि लोगों को चाहिए‘आटा’ और सरकार बात करती है ‘डाटा’ की। ऐसा ही हमारे यहां हो रहा है। उधर बच्चे कुपोषण से मर रहे हैं और हम बात कर रहे हैं शौचालय की। अरे शौचालय की उपयोगिता तो तब होगी जब ठीक से खाने को मिले। उचित पोषण नहीं है, पानी की ठीक से व्यवस्था नहीं है और हम घूम फिरकर शौचालय को ले आते हैं।
ऐसा लगता है कि किसी भी मामले में गंभीरता नाम की चीज ही नहीं बची है। यह भी समझ से परे है कि सूचनाओं की घनघोर खुदाई के इस जमाने में भी खबरों और सूचनाओं को दबाने की कोशिशें क्यों की जाती हैं। आज जब लोग हर प्रमाण और प्रमाण को जुटाने की तकनीक हथेली पर लेकर घूमते हैं ऐसे में क्या यह संभव है कि किसी घटना की जानकारी एक बार सार्वजनिक हो जाने के बाद उसे दबाया जा सके। समाज और उसका संचार तंत्र पूरा बदल गया, लेकिन घटनाओं को दबाने की नौकरशाही की मानसिकता अभी भी वहीं की वहीं है। पहला काम घटना या तथ्य को छिपाने का होता है। और यदि घटना उजागर हो जाए तो दूसरी पुरजोर कोशिश उसे नकारने की होती है। इस पर ध्यान कम ही दिया जाता है कि जो हो गया सो हो गया लेकिन आगे ऐसा न हो इसके लिए क्या किया जाए।
कुपोषण मध्यपदेश के लिए कोई नई समस्या नहीं है। जैसे हम शिशु मृत्यु दर और महिलाओं के विरुद्ध होने वाले अपराधों के मामले में देश भर में कुख्यात हैं उसी तरह हम कुपोषण के मामले में भी अग्रणी स्थान बनाए हुए हैं। मुझे पता नहीं कि अन्न और कुपोषण का आपस में कितना रिश्ता है, लेकिन यह बात मैं समझ नहीं पाता कि जिस प्रदेश में खेती किसानी ने इतनी तरक्की की हो और जिसे कई कई बार कृषि कर्मण अवार्ड मिल चुके हों, वहां पोषण की समस्या समानांतर रूप से क्यों बढ़ रही है। आखिर हम क्यों नहीं अपनी कृषि और उससे जुड़े संसाधनों को पोषक आहार की दिशा में मोड़ पा रहे हैं। और क्यों नही उसे बच्चों व गर्भवती माताओं तक पहुंचा पा रहे हैं।
पोषण और स्वास्थ्य पर लंबे समय से काम कर रहे गैर सरकारी संगठन ‘विकास संवाद’ के सचिन जैन ने मंगलवार को अपनी फेसबुक वॉल पर लगातार कई पोस्ट डालते हुए बताया कि ‘’मध्यप्रदेश का होशंगाबाद जिला, देश का सबसे कुपोषित जिला है। सबसे वंचित नौ राज्यों के 100 जिलों में सबसे ऊपर। वहां 48.7 प्रतिशत बच्चे कुपोषित हैं।‘’ जब राजधानी से सटे हुए जिले के ये हाल हैं तो श्योपर जैसे सुदूरवर्ती जिलों की स्थिति के बारे में सहज ही अंदाज लगाया जा सकता है।
कुपोषण की समस्या के निदान का जिक्र करते हुए सचिन जैन कहते हैं- ‘’अगर स्वास्थ्य और पोषण की स्थिति को बुनियादी रूप से सुधारना है तो, संस्थाओं से मुक्ति पा लेना होगी; हमें अपनी कमजोरियों और ताकत, दोनों को ही पहचानना होगा।‘’ सचिन जैन का यह सुझाव सिरे से खारिज करने योग्य है क्योंकि यह शासन प्रणाली की कार्यशैली और उसकी मानसिकता के ठीक विपरीत है। जब पोषण-कुपोषण का सारा खेल ही संस्थाओं के जरिए होता हो तो उससे मुक्ति कौन पाना चाहेगा? रही बात कमजोरी और ताकत की, तो जब‘कमजोरी’ में ही हमारी ताकत का राज छिपा हो, तो ऐसा कौन होगा जो खामखां ताकतवर होना या अपनी ताकत को पहचानना चाहे…
होशंगाबाद मेरा गृह ज़िला है जहॉं “माट् स् साब”की सरकार चलती है। राशन का गेंहूं नई फ़सल के साथ मंडी में बिकता है पर सरकारी आँकड़े उसे कृषि उत्पादन में जोड़ कर “कृषि कर्मण्यता”की दावेदारी करते हैं।
यह सब सरकार और अग्रज के मेल से होता है।
अब आपके लेख के शीर्षक और पर्यटन विभाग के मूलमंत्र पर आते हुए – होशंगाबाद ज़िला खाद्यान्न उत्पादन और शिशु कुपोषण में अग्रणी
है ना एमपी अजब भी और ग़ज़ब भी
ठीक कहा अरविंद जी…