हम जिस जमाने में जी रहे हैं वहां होने वाली बातें न तो बहुत ज्यादा छिपती हैं और न छिपाई जा सकती हैं, न दबती हैं और न दबाई जा सकती हैं। फौरी तौर पर आपको भले ही ऐसा लगता हो कि आप मामले को दबाने या ‘सोशल अथवा एंटीसोशल’ मीडिया के जरिये, किसी को निपटाने में कामयाब हो गए, पर आपकी यह विजयी मुद्रा ज्यादा दिन टिक नहीं सकती। हो सकता है आपके पाले में खड़ा होकर आपको विजयी बनाने वाला ‘सेनापति’ कल किसी दूसरे पाले में खड़ा हो और ‘स्पष्टवादी’ अथवा ‘जेहादी जॉन’ बनकर यह बता रहा हो कि कैसे उसने एक झूठे-सच्चे तरीके से अपने दुश्मन को निपटाया था। वही ‘दुश्मन’जिसके पाले में आज वह खड़ा है।
मैं इसीलिए सोशल/मोबाइल/डिजिटल मीडिया पर व्यक्ति की पहचान सुनिश्चित करने पर जोर दे रहा हूं, क्योंकि इसके बिना हम आज के जमाने में मीडियागत शुचिता, नैतिकता और प्रोफेशनलिज्म की बात ही नहीं कर सकते। जब सामने सैनिक नहीं ऐयार खड़े हों तो आप किससे और कैसे लड़ेंगे। यदि आप जीतते हैं तो पता तो हो कि आपने चूहा मारा है या हाथी, या फिर यदि आप हारे भी हों तो जमाने के सामने यह बात खुली किताब की तरह रखी हो कि आपको चित करने वाला कोई ‘अगरबत्ती छाप पहलवान’ था या ‘असली सूमो’।
पहचान की बात इसलिए भी मौजूं हैं क्योंकि करीब साल भर पहले अभिनेता आमिर खान के जिस बयान को लेकर देश में सहिष्णुता और असहिष्णुता का उबाल आया था, उसका नया खुलासा यह है कि सत्तारूढ़ दल के ही आईटी विभाग के कर्ताधर्ताओं और उनकी टीम ने मिलकर आमिर के खिलाफ न सिर्फ अभियान चलाया था बल्कि एक ई-कामर्स कंपनी पर इस बात का दबाव भी डाला था कि वह आमिर को अपना ब्रांड एम्बेसैडर बनाए न रखे। ऐसे ही कुछ शिखंडी अभी-अभी कश्मीर के क्रिकेट खिलाड़ी मोहम्मद शमी की पत्नी के फोटो पर सक्रिय हुए थे। ऐसे ही कुकुरमुत्ते ‘वन रैंक वन पेंशन’ और ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ मामले में उगे थे और आज नोटबंदी जैसे मसले पर रोज कुछ न कुछ पेले जा रहे हैं।
ऐसा लगता है कि हमारे आसपास की हवा प्रदूषण ही नहीं बल्कि गालियों की बौछार भी लेकर आ रही है। यह हवा ‘आंधी’ या कहर बनकर कब किस पर टूट पड़ेगी, कहा नहीं जा सकता। अजीब माहौल है, आपको लगातार गालियां पड़ रही हैं और आप पूछ भी नहीं सकते कि भई तू है कौन? क्योंकि सामने तो आदमी नहीं ऐयार हैं, ‘डिजिटल नामर्द’ हैं। सरकार ‘कैशलेस इकॉनोमी’ की बात कर रही है, उसी तर्ज पर मैं कहता हूं कि यह सोशल या डिजिटल बाजार की‘शेमलेस करंसी’ है। इसे हर कोई ऐरा गैरा आधिकारिक बेशर्मी से मीडिया के बाजार में चला रहा है।
अपने पहले के आलेखों में मैंने ‘क्रॉस मीडिया ऑनरशिप’ का जिक्र किया था। मैं इसे मीडिया के सामने सबसे बड़े खतरे के रूप में देखता हूं। आज करीब करीब सभी बड़े मीडिया घरानों ने अपनी वेबसाइट्स या अलग अलग डिजिटल प्लेटफार्म खोल लिए हैं। संजीदा पाठक तो उनके मुख्यपृष्ठ पर दी जाने वाली कथित समाचारगत या वैचारिक सामग्री तक ही ठहर जाते हैं। लेकिन इन डिजिटल प्लेटफार्म्स के ‘असली जहां’ तो आगे मिलते हैं। ‘असली जहां’ मैंने इसलिए कहा क्योंकि इन वेबसाइट्स को वांछित ‘हिट्स’ खबर के आगे जहां और भी हैं वाली दूसरी ‘चटनियों’ और ‘अचारों’ से मिलते हैं। और वही इनके ‘धंधे’ को चमकाने वाला और मुनाफा कमवाने वाला ‘माल’ है।
किसी भी अच्छी से अच्छी या नामचीन वेबसाइट को खोल लीजिये, थोड़ा सा ‘नीचे उतरिये’… फिर आपको नीचे उतरने की जरूरत नहीं पड़ेगी, वेबसाइट खुद ब खुद आपको ‘नीचे’ उतारती चली जाएगी…
आज का असली मीडिया यही है। टीवी पर इसी से टीआरपी आती है और वेबसाइट्स पर इसी से ‘हिट्स’। वैसे यह ‘हिट्स’ नाम जिसने भी रखा है, बड़ा ही सोच समझकर रखा है। यह ‘क्रिया विशेषण’ लगाने के बाद आपको ऐसी सभी ‘सामग्रियों’ के बारे में और कुछ कहने सुनने की जरूरत नहीं है।
क्रॉस मीडिया ऑनरशिप के खतरे को वाजपेयीजी के समय की भाजपा ने 18 साल पहले ही भांप लिया था। तभी तो उन्होंने अपने घोषणापत्र में इसका जिक्र करते हुए कहा था-
‘’We will, therefore, impose appropriate cross-media and cross-platform restrictions and also restriction on investment by media in cable-TV companies and vice-versa.’’
भाजपा ने तो उस घोषणा पत्र के इसी पैराग्राफ में यह भी कहा था कि मीडिया में स्वैच्छिक आदर्श आचरण संहिता की स्थापना के लिए वह कोशिश करेगी। उसने वादा किया था कि-
‘’(We will) Ensure and encourage the availability of a variety and plurality of views and diversity in programming by discouraging monopolies and maximizing the number of voices, which can use the mass media.’’
लेकिन आज के मीडिया का परिदृश्य इसके ठीक विपरीत विचारों की बहुलता और विविधता का नहीं बल्कि छद्म बहुमत की एकाधिकारिता का है। दुर्भाग्य, कि उसमें तलवारों की मूठ से ही असहमति या विपरीत विचार का सर कलम किया जा रहा है…
आगे बात करेंगे, इस कठिन समय में मीडिया को शीलभंग से बचाने की…