यह छुरी चीन पर नहीं अपनों के गले पर ही चलेगी

भारत पाकिस्‍तान के बीच हाल में बढ़े तनाव के बाद दोनों तरफ से घमासान बयानबाजी हो रही है। नेताओं से ज्‍यादा ऐसी बयानबाजी मीडिया और सोशल मीडिया के मंचों पर है। पाकिस्‍तान पर जबानी हमला बोलने वाले सोशल मीडिया वीरों ने पाक के साथ साथ चीन को भी घसीट लिया है। चूंकि चीन पाकिस्‍तान का समर्थक है,इसलिए सोशल मीडिया पर वह भी भारतीयों के गुस्‍से का शिकार बना है। यह गुस्‍सा हाल ही में तब और बढ़ गया जब यह कथित खबर आई कि चीन ने अपने इलाके से भारत आने वाली ब्रह्मपुत्र नदी की एक सहायक नदी का पानी रोक लिया है।

भारत के लोगों ने चीन की इस हरकत को, पाकिस्‍तान को दिया जाने वाला सिंधु नदी का पानी रोकने की अपनी मांग के विरोध में उठाए गए कदम के रूप में देखा। इसके बाद से सोशल मीडिया पर ऐसे बयानों की सुनामी आ गई है जिनमें भारतीयों से चीनी माल के बहिष्‍कार या चीनी माल न खरीदने की जोरदार अपील की जा रही है।

निश्चित रूप से दो प्रतिद्वंद्वी देशों के बीच स्‍कोर बराबर करने के लिए केवल सामरिक कदम उठाना ही अकेला उपाय नहीं होता। वर्तमान समय में सामरिक चोट से ज्‍यादा गहरा घाव आर्थिक चोट करती है। इस लिहाज से चीनी माल के बहिष्‍कार या चीनी माल न खरीदने की बात चीन को सबक सिखाने का अच्‍छा जरिया हो सकती है।

लेकिन बेहतर होगा इस पूरे मामले को भावना में बहकर देखने के बजाय व्‍यावहारिक दृष्टिकोण से देखा जाए। बात आगे बढ़ाने से पहले जरूरी है कि हम कुछ आंकड़ों पर नजर डाल लें। भारत और चीन के बीच जो व्‍यापार संबंध हैं उनके अंतर्गत भारत चीन से 60 बिलियन डॉलर से अधिक का माल आयात करता है, जबकि हमारे यहां से चीन को निर्यात होने वाले माल की कीमत 18 बिलियन डॉलर से आसपास है। ये आंकड़े कहते हैं कि जितना सामान हम चीन को भेज रहे हैं उससे लगभग तीन गुना अधिक कीमत का सामान चीन से हमारे यहां आ रहा है। यानी आज की स्थिति में व्‍यापार का यह संतुलन चीन के पक्ष में है। इस लिहाज से यदि हम चीन से किए जाने वाले आयात को चोट पहुंचाते हैं तो वहां के व्‍यापार को बहुत बड़ा नुकसान होगा।

लेकिन ऐसी कोई चोट पहुंचाने से पहले हम जरा यह देख लें कि हमारा हथौड़ा वास्‍तव में चीन पर ही चलेगा, या उसके चोट की जद में हमारे हाथ पांव भी आ जाएंगे। सोशल मीडिया पर जो देशप्रेम के संदेश चल रहे हैं, वे दीवाली के मौके पर चीनी माल की खरीदारी के बहिष्‍कार के हैं। एक बार को मान लें कि लोग देशहित को सबसे ऊपर रखते हुए, ऐसी ‘अपीलों’ को शिरोधार्य कर चीनी माल का बहिष्‍कार कर देंगे। लेकिन वास्‍तविकता यह है कि इससे नुकसान चीन का नहीं हमारा और हमारे छोटे व्‍यापारियों का ही होगा। यह चोट चीन को नहीं हमारे अपने लोगों को ही लगेगी। क्‍योंकि दीवाली के मौके पर होने वाली भारी खरीदारी के लिए छोटे व्‍यापारी अपना माल पहले ही खरीद चुके हैं, उनकी ओर से अधिकांश माल का भुगतान भी किया जा चुका है। ऐसे में यदि हम उनसे माल नहीं खरीदते तो उनका ही पैसा फंसेगा और कई परिवारों की दीवाली काली हो जाएगी।

ध्‍यान रखिए, चीनी माल बेचने वाले वो लोग हैं जो भारत के बाजार की सस्‍ते माल खरीदने व बेचने की मनोवृत्ति के चलते ऐसा करते हैं। कहीं ऐसा न हो कि जिस तरह फसल खराब होने पर हमारे किसानों ने लगातार आत्‍महत्‍याएं की थीं उसी तर्ज पर कारोबार खराब होने पर हमारे छोटे व्‍यापारी भी खुद को खत्‍म करने लगें। क्‍योंकि दीवाली जैसे त्‍योहार पर होने वाली खरीदारी लाखों छोटे व्‍यापारियों और गुमटी रेहड़ी वालों के लिए करीब करीब साल भर की आमदनी का जरिया होती है। यदि उनका माल न बिका तो उनके परिवार के सामने भूखों मरने का संकट आ सकता है।

दिल्‍ली के एक व्‍यापारी संगठन का कहना है कि ’दीवाली का 90 फीसदी चाइनीज माल दुकानदारों तक पहुंच चुका है। उसका पेमेंट भी हो गया है और कस्टम ड्यूटी भी जा चुकी है। अब इस माल का उठाव न होने से चीनका कुछ नहीं बिगड़ने वाला, जो नुकसान होगा वह भारतीय व्‍यापारियों का होगा।’

इस पदाधिकारी की यह बात बहुत अहम है कि देश में दीवाली गुड्स की मांग साल दर साल 10-15 फीसदी कीदर से बढ़ रही है। घरेलू निर्माता इसे पूरा नहीं कर सकते। सरकार को चाहिए कि जिन चाइनीज चीजों से घरेलूनिर्माण इकाइयां प्रभावित हो रही हैं, पहले उन पर बैन लगाए और घरेलू उद्योगों को प्रोत्साहन दे। सरकार यदि वास्‍तव में चाहती है कि भारत में यह चीनी माल न बिके तो उसे खुद इस पर प्रतिबंध लगाना चाहिए।

वैसे भी ताजा हरकत तो पाकिस्‍तान ने की है। हम व्‍यापार के मामले में उसका तो एमएफएन (मोस्‍ट फेवर्ड नेशन) का दर्जा अभी तक बनाए हुए हैं। उस मोर्चे पर तो कोई कार्रवाई नहीं हुई है, फिर चीनी माल के नाम पर अपने ही लोगों की गरदन पर छुरी चलाना कहां तक जायज है।

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