वो तो पुलवामा में सीआरपीएफ के काफिले पर आतंकी हमले की घटना के बाद 26 फरवरी को भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान में एयरस्ट्राइक कर दी वरना उस दिन मीडिया में जिस मुद्दे को लेकर सबसे ज्यादा चर्चा होनी चाहिए थी वह एयरस्ट्राइक से एक दिन पहले यानी 25 फरवरी को दिया गया जम्मू कश्मीर की पूर्व मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती का ‘देशद्रोही’ बयान था।
हां, मैंने यहां ‘देशद्रोही’ शब्द का बहुत सोच समझकर इस्तेमाल किया है। मैंने इस शब्द को क्यों चुना यह समझने के लिए मैं महबूबा मुफ्ती का वह बयान आपको याद दिलाना चाहूंगा। उस बयान का संदर्भ संविधान के अनुच्छेद 35 ए और 370 के तहत कश्मीर को विशेष दर्जा दिए जाने के प्रावधान से जुड़ा है। पिछले कुछ दिनों से यह बात चल रही है कि अनुच्छेद 35 ए को समाप्त किया जाए।
महबूबा ने इसी सिलसिले में बयान दिया था कि- ‘’अनुच्छेद 35-ए में अगर किसी तरह का बदलाव किया गया तो राज्य के लोग राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा के बजाय किसी और झंडे को भी थाम सकते हैं।‘’ उन्होंने मीडिया से कहा था- ‘मैं उमर अब्दुल्ला के संपर्क में हूं। हमारे पास एक ऐसी रणनीति होनी चाहिए ताकि अनुच्छेद 35-ए पर कोई हमला नहीं हो और यदि हमला होता है तो मैं नहीं जानती कि कश्मीर के लोग अपने हाथों में तिरंगे के अलावा कौन सा झंडा थाम लेंगे।‘’
एक तरह से धमकी देते हुए महबूबा बोली थीं-‘’यदि उन्होंने ऐसा किया तो फिर हमें मत कहना कि हमने आपको (केंद्र को)चेतावनी नहीं दी थी। जम्मू-कश्मीर के लोगों को मजबूर न करें।‘’ महबूबा की बात का उमर अब्दुल्ला ने भी एक तरह से समर्थन करते हुए कहा था-‘’जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे से किसी तरह का खिलवाड़ हुआ तो राज्य में इसके गंभीर और दूरगामी परिणाम होंगे।‘’
अनुच्छेद 35ए और 370 को लेकर विवाद नया नहीं है। स्थानीय लोगों का इस बारे में कहना है कि इसके कारण ही उनका अस्तित्व बचा हुआ है। यदि इस स्थिति को समाप्त कर दिया गया तो ‘बाहरी’ लोग आकर कश्मीर के स्वरूप को ही खत्म कर देंगे और उनसे आजीविका और रोजगार के बचे खुचे साधन भी छिन जाएंगे।
जबकि इसके विपरीत मत रखने वाले वर्ग का मानना है कि इस अनुच्छेद के कारण ही कश्मीर भारत की मुख्य धारा से उस तरह कभी जुड़ नहीं पाया जिस तरह देश के अन्य राज्य जुड़े हुए हैं। यह मांग रह रहकर उठती रही है कि जब देश एक है तो फिर किसी एक राज्य को अपना संविधान और कानून अलग रखने की इजाजत कैसे दी जा सकती है। वहां देश के दूसरे भागों के लोगों के बसने पर प्रतिबंध कैसे लगाया जा सकता है।
अनुच्छेद 35 ए का मामला सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है और कोर्ट संभवत: एक सप्ताह के भीतर ही इस मामले की सुनवाई करने वाला है। कोर्ट क्या फैसला करेगा और उस फैसले का असर क्या होगा, उसे लागू कैसे किया जाएगा, ये सब बातें भविष्य में तय होंगी। लेकिन मुख्य मुद्दा कश्मीर के नेताओं के बयानों का है।
कोई भी नेता और खास तौर से ऐसा नेता जो राज्य का मुख्यमंत्री रह चुका हो, जिसके पिता मुफ्ती मोहम्मद सईद भारत के गृहमंत्री रहे हों, वह सुप्रीम कोर्ट के समक्ष विचाराधीन मामले को लेकर ऐसा बयान कैसे दे सकता है कि यदि उसके मनोनुकूल फैसला नहीं आया तो फिर राज्य की जनता तिरंगे को छोड़कर कोई और झंडा थाम लेगी। महबूबा ने उस ‘दूसरे’ झंडे का नाम नहीं लिया लेकिन इसमें कहीं कोई शक शुबहे की गुंजाइश ही नहीं है कि उनका सीधा सीधा इशारा पाकिस्तानी झंडे की ओर है।
यानी महबूबा न सिर्फ भारत सरकार को बल्कि सीधे सीधे सुप्रीम कोर्ट तक अपनी यह धमकी पहुंचा रही हैं कि अनुच्छेद 35 ए के बारे में वर्तमान स्थिति को बदलने वाला या उसके ‘विपरीत’ कोई फैसला लिया गया तो कश्मीर के लोग पाकिस्तान का झंडा थाम लेंगे। उनका यह बयान खुले तौर पर कश्मीर के लोगों को भारत के खिलाफ भड़काने और मनचाही न होने पर भारत से अलग होकर पाकिस्तान के साथ हो जाने के लिए उकसाने वाला है।
इस समय जब विघटनकारी या अलगाववादी ताकतों की गतिविधियां चरम पर हैं, संवैधानिक पदों पर रह चुके व्यक्तियों के मुंह से ऐसी बातें न सिर्फ घोर आपत्तिजनक हैं बल्कि वे देश के खिलाफ भी हैं। देशद्रोह और क्या होता है? देश में रहकर कानूनी या संवैधानिक तरीके से अपनी बात को मान्यता दिलवाने के बजाय कोई यह कहे कि यदि हमारी मनमर्जी नहीं हुई तो हम दूसरा झंडा थाम लेंगे, यही तो देशद्रोह है।
इस समय जब भारत पाकिस्तान के साथ तनाव की चरम स्थितियों से गुजर रहा है, उस समय सीमावर्ती राज्य के नेताओं का इस तरह का बयान कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। हमें सीमा पार के आतंकियों के साथ साथ घर में बैठे ऐसे लोगों पर भी सख्त कार्रवाई करनी होगी जो देश के खिलाफ जाने वाली बातें कर रहे हैं।
पाकिस्तान की पकड़ में आए हमारे फाइटर पायलट अभिनंदन वर्धमान की रिहाई के बाद, भारत और पाकिस्तान के बीच युद्ध की आशंकाएं भले ही कम हुई हों लेकिन आंतरिक तौर पर ये खतरा लगातार बना हुआ है। एयर स्ट्राइक और उसके बाद पाकिस्तान की ओर से की गई घुसपैठ के दौरान कश्मीर में कुछ ऐसी गंभीर घटनाएं भी हुई हैं जो बहुत अधिक चिंता में डालने वाली हैं।
जिम्मेदारीपूर्ण पत्रकारिता के तकाजों के चलते उन घटनाओं का यहां जिक्र करना ठीक नहीं है, लेकिन ऐसे संकटपूर्ण हालात में ऐसी घटनाओं का होना, न तो देश के लिए ठीक है और न ही हमारे उन सैन्य और सुरक्षा बलों के हित में है जो जान जोखिम में डालकर देश और सीमाओं की हिफाजत में लगे हैं।