पिछले दो चार दिनों से मैं सोशल मीडिया पर लगातार आने वाले वीडियो संदेशों और फोटो को लेकर विचलित हूं। चूंकि आभासी दुनिया में जो चीजें वायरल होती हैं, उन सभी के बारे में पूरी दृढ़ता से यह नहीं कहा जा सकता कि वे कब की हैं और सच या वास्तविक भी हैं या नहीं, लेकिन फिर भी जो सामग्री शेयर की जा रही है, वह अंदर तक कचोटने वाली है। ये वीडियो संदेश हाल ही में संपन्न गणेशोत्सव के त्योहार को लेकर हैं। कई अलग-अलग जगहों के इन वीडियो संदेशों में दिखाया जा रहा है कि जिन ‘भगवान गणेश’ को पूरे भक्तिभाव के साथ धूमधाम से लाकर हमने घरों और पंडालों में बिठाया गया, पूरे दस दिन लोगों ने जिनकी पूजा-आरती की, जिनके चरणों में हजारों, लाखों लोगों ने शीश नवाकर जाने कौन-कौन सी मनौतियां और अशीर्वाद मांगे, उन्हीं भगवान गणेश को किस बुरी तरह से ‘विसर्जित’ किया जा रहा है।
मैं ऐसे दो संदेशों का यहां जिक्र करना चाहूंगा, जिनमें से एक संभवत: महाराष्ट्र के किसी इलाके का है और दूसरा हमारे अपने मध्यप्रदेश के मंदसौर का बताया गया है। मंदसौर के वीडियो में एक ट्रक में गणेश प्रतिमाएं भरी हुई हैं और उन्हें किसी सुनसान पहाड़ी से ऐसे नीचे फेंका जा रहा है मानो वे कूड़ा कचरा हों। जिस तरह से वे प्रतिमाएं पहाड़ी से नीचे खाई में गिरकर टुकड़े टुकड़े हो रही हैं, वो दृश्य हमारी पूरी आस्था और श्रद्धा के टुकड़े करने वाला है। इसी तरह दूसरे वीडियो में एक ट्रक किसी पुल पर खड़ा है। उसके आसपास कई सारे पुलिस वाले हैं और ऐसा लगता है कि जो कार्य संपन्न किया जाना है वह जनता की नजरों में न आए इसलिए उस पुल पर यातायात भी रोक दिया गया है। इधर पुलिस वाले आपस में बतिया रहे हैं और उधर ट्रक पर सवार दो तीन लोग प्रतिमाओं को ट्रक से धक्का देकर पुल से नीचे नदी में पटक रहे हैं। मानो कोई अपराधी किसी की हत्या करने के बाद सबूत मिटाने के लिए लाश को ठिकाने लगा रहा हो।
ऐसे दृश्य हर शहर में हमें अपने आसपास मिल जाएंगे। भोपाल में ही जब मैं शाहपुरा तालाब के पास विसर्जन के लिए की गई व्यवस्था को देखने गया तो पाया कि वहां शहर का कूड़ा ढोने वाले वाहनों में (आप सहज अंदाज लगा सकते हैं कि नगर निगम की कचरा गाडि़यों में क्या क्या ढोया जाता होगा) वे सारी गणेश प्रतिमाएं कचरे के ढेर की तरह लादी जा रही थीं, जिन्हें लोग वहां विसर्जन के नाम पर ‘फेंक’ गए थे। यह तो पता नहीं कि बुलडोजर की मदद से सारी प्रतिमाएं बटोर कर कूड़ा वाहनों में लादने के बाद उन्हें कहां ले जाकर फेंका या दफन किया गया होगा, लेकिन अनुमान जरूर लगाया जा सकता है कि ‘’सिद्धिसदन, गजवदन, विनायक’’ किस तरह ठिकाने लगे होंगे।
अब सवाल उठता है कि जरा जरा सी बात पर उद्वेलित होकर मरने मारने पर उतारू होने वाले हम ‘धर्मप्राण हिन्दू’ क्या इस बारे में कभी सोचते हैं? क्या यही है हमारा धर्म, यही है हमारी आस्था और यही हमारी श्रद्धा? क्या हमारा सारा भक्तिभाव केवल दस दिनों तक के लिए है? उसके बाद भगवान जाएं भाड़ में.. हमारी बला से? हम दूसरों को उपदेश देने के मामले में तो बहुत आगे रहते हैं। ईद के दिन बांग्लादेश की सड़कों पर कथित खून की नदियां बहने वाली खबर की तो हमने बहुत चर्चा की, लेकिन क्या हमारा ध्यान इस ओर भी गया कि हम अपने ‘भगवानों’ के साथ कैसा व्यवहार कर रहे हैं? उनका कैसा अपमान कर रहे हैं?
यदि कोई हमसे कहे कि आप प्लास्टर ऑफ पेरिस की मूर्तियों का नहीं, बल्कि मिट्टी की मूर्तियों का उपयोग करें, कोई हमसे कहे कि विशालकाय मूर्तियां बनाने के बजाय छोटी मूर्ति से काम चला लें, सार्वजनिक जलाशयों या जलस्रोतों के बजाय अपने घर में गणेश विसर्जन की व्यवस्था कर लें, तो हमें बहुत बुरा लगता है। मैं सोशल मीडिया पर ऐसे दर्जनों संदेश दिखा सकता हूं जिसमें लोगों ने ऐसे सुझावों पर घनघोर आपत्ति करते हुए उसे अपने धर्म और श्रद्धा क्षेत्र में ‘आततायियों’ का हस्तक्षेप माना है।
कोई भी किसी के धार्मिक कर्मकांड या भक्तिभाव में हस्तक्षेप न करे, यह बात तो समझ में आती है, लेकिन हम खुद ही अपने देवताओं का ऐसा अपमान करें, यह बात कैसे गले उतारी जा सकती है? हमें बकरे की गर्दन कटने पर आपत्ति है, लेकिन विसर्जन के दौरान हमारे अपने देवी देवताओं की मूर्तियों के जिस तरह हाथ-पांव तोड़े जाते हैं और गर्दनें उखाड़ी जाती हैं, उस पर हम क्या कहेंगे?
मुझे पता है मेरा यह लिखना बहुत सारे लोगों को रास नहीं आएगा। लोग ऐसी ‘धर्मद्रोही’ बातें सुनने के आदी नहीं हैं। लेकिन मैं सिर्फ इतना जानना चाहूंगा कि क्या हमारा धर्मप्रेम केवल चंद दिनों के लिए ही जागता है? क्या हम समय के साथ ऐसी कोई परंपरा या व्यवस्था नहीं बना सकते जिसमें हमारी आस्था, हमारी श्रद्धा, हमारा भक्तिभाव और हमारे धर्म की अस्मिता भी बनी रहे और हमारे देवी देवताओं का ऐसा अपमान या तिरस्कार भी न हो। बात भले ही बुरी लगे, लेकिन इस पर सोचिएगा जरूर… आपको सोचने और अपनी सोच पर अमल करने का एक अवसर जल्दी ही आने वाला है… दुर्गास्थापना के रूप में…
घटनाएं गवाह हैं कि जो व्यवहार पुत्र गणेश के साथ होता है, विसर्जन के समय वही व्यवहार माता गौरी के साथ भी होता है…
ऐसा व्यवहार तो धर्म, आस्था या श्रद्धा का परिचायक नहीं है…