सोमवार को एक मित्र ने वाट्सएप पर आस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी आग के कुछ फोटो भेजे तो मन विचलित हो गया। कई किलोमीटर के दायरे में पेड़ पौधों को जलाती और अगले कई किलोमीटर को लील जाने के लिए लपलपाती लपटों के दृश्य दहला देने वाले थे। लेकिन लपटों और धुंए से घिरे जंगलों में धू-धू कर जलते पेड़ों के अलावा, आग से बचने के लिए इधर उधर भागते वन्यप्राणियों और आग में झुलस चुके प्राणियों के दृश्यों ने तो झकझोर दिया।
एक वीडियो में कंगारुओं का झुंड आग से बचने के लिए बेतहाशा भाग रहा है लेकिन चारों तरफ लगी आग से इन प्राणियों को बचने की कोई जगह नहीं मिल रही। वीडियो में बस उन कंगारुओं के इधर उधर भागने का ही दृश्य है, जाहिर है जिसने भी यह वीडियो शूट किया होगा उसकी हिम्मत नहीं हुई होगी कि उसके अंजाम को भी लोगों को दिखा सके।
एक दूसरे दृश्य में जंगल की फेंसिंग पर जला हुआ कंगारू का एक बच्चा लटका हुआ है। उस फोटो को देखकर इस मासूम जानवर के अंत पर रोना आ जाता है। साफ दिख रहा है कि आग से बचने की उसने कितनी कोशिश की होगी लेकिन पीछा करती आग से बच निकलने की उसकी सारी कोशिशों के सामने तार की वह फेंसिंग मौत का फरमान लेकर आड़े आ गई।
ऐसा नहीं है कि आस्ट्रेलिया के लोग इस आग से निपटने के लिए कुछ नहीं कर रहे। जमीन से लेकर आसमान तक फायरब्रिगेड की गाडि़यों और हेलीकॉप्टरों के जरिये पानी और रसायन आदि का छिड़काव कर आग को बढ़ने से रोकने की हरचंद कोशिश की जा रही है लेकिन आग इतनी विकराल है कि उसके सामने ये सारी इंसानी कोशिशें बौनी साबित हो रही हैं।
ऐसे में कुछ मानवीय दृश्य दिल को छू लेने वाले हैं। एक फोटो में दिख रहा है कि काफी कुछ झुलस चुके कोआला (आस्ट्रेलिया में पाया जाने वाला प्राणी) के बच्चे को, जिसकी जीभ भी जल गई है, इंजेक्शन के जरिये पानी पिलाया जा रहा है। लोग इस आग से खुद को बचाने के साथ साथ जानवरों को बचाने की भी पूरी कोशिश कर रहे हैं। ऐसे ही एक वीडियो में एक दंपति कार से उतरकर आग से घिरे कोआला के बच्चे को अपनी पानी की बोतलों से पानी छिड़ककर बचाता है और बाद में उसे कंबल में लपेटकर अपने साथ ले जाता है।
दरअसल आस्ट्रेलिया के जंगल गरमी के दिनों में आग लगने के मुहाने पर होते हैं। वहां आग लगना कोई असामान्य घटना नहीं है। करीब करीब हर साल जंगलों में यह आग (बुशफायर) लगती है। लेकिन इस बार इस आग ने जो विकराल रूप लिया है उससे पूरा देश सहमा हुआ है। वहां कई इलाकों में आपातकाल जैसी स्थिति निर्मित हो गई है क्योंकि चार महीनों से जंगल झुलस रहे हैं और आग ठंडी होने का नाम ही नहीं ले रही।
अंतर्राष्ट्रीय मीडिया में आ रही रिपोर्ट्स के अनुसार सितंबर से शुरू हुई इस आग ने 63000 वर्गकिमी के दायरे को अपनी चपेट में लिया है और इसके कारण अब तक 25 लोगों की जान जा चुकी है और 2500 से अधिक भवन और घर राख हो चुके हैं। सबसे अधिक नुकसान वनसंपदा को हुआ है। लाखों की संख्या में पेड़ जलने के साथ साथ करीब 50 करोड़ वन्यप्राणियों के जल मरने या झुलस जाने की खबरें हैं। आग में वन्यप्राणियों के जलने का यह आंकड़ा दहला देने वाला है। इस आग ने आस्ट्रेलिया में बहुतायत से पाए जाने वाले प्राणी कोआला की करीब 30 प्रतिशत आबादी को खत्म कर दिया है।
इस घटना ने एक और बड़े संकट की तरफ पर्यावरणविदों का ध्यान खींचा है। दरअसल आस्ट्रेलिया के जंगलों में कुछ खास किस्म की वनस्पति पाई जाती है इनमें अल्पाइन ऐश (यूकेलिप्टस डेलेगेटेनसिस) और माउंट ऐश (यूकेलिप्टस रेग्नांस) शामिल हैं। ये पौधे किसी और तरीके से नहीं लगाए जा सकते ये सिर्फ बीजों से ही पैदा होते हैं। इनके बीज भी पेड़ के 15 से 20 साल की उम्र पूरी होने पर तैयार होते हैं। यदि आग इसी तरह लगती रही तो इस बात की पूरी आशंका है कि इन पेड़ों की प्रजाति हमेशा के लिए खत्म हो जाएगी।
आस्ट्रेलिया की आग ने उस देश को कितना हिला दिया है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वहां के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन ने 13 जनवरी से शुरू होने वाली भारत की अपनी चार दिवसीय यात्रा शनिवार को रद्द कर दी। हालांकि मॉरिसन ने कहा कि वे यह संकट खत्म हो जाने पर आने वाले महीनों में एक बार फिर से अपनी भारत यात्रा का कार्यक्रम बनाएंगे। मॉरिसन इस यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ व्यापक द्विपक्षीय बातचीत करने वाले थे।
आस्ट्रेलिया की आग से पहले पिछले साल ब्राजील में अमेजन के जंगलों में भी भीषण आग लगी थी। उस आग ने भी पूरी दुनिया को चिंतित किया था। उस आग के कारण अमेजन के अति प्राचीन वर्षावनों का करीब दस हजार वर्गकिमी का इलाका जलकर खाक हो गया था। उसके कारण भारी मात्रा में निकली कार्बन डाइऑक्साइड और कार्बन मोनोऑक्साइड गैसों का इस पृथ्वी के वातावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ा था। दक्षिण अमेरिका के सात देशों में उस आग से निकले धुंए का असर दिखाई दिया था और उसने आने वाले समय में कई देशों के मौसम चक्र को बदलने की आशंका पैदा कर दी थी। आस्ट्रेलिया की ताजा आग के बारे में भी कहा जा रहा है कि उसके कारण भी भारी मात्रा में इन घातक गैसों का उत्सर्जन हो रहा है जो दुनिया के पर्यावरण के लिए घातक होगा।
पिछले साल संयुक्त राष्ट्र के जलवायु सम्मेलन में दुनिया भर के नेताओं ने बिगड़ते हालात पर चिंता जताते हुए कहा था कि इस मुद्दे पर बातें तो बहुत हो गईं लेकिन अब कुछ कर दिखाने का समय है। लेकिन हालात बता रहे हैं कि स्थितियां काबू से बाहर होती जा रही हैं। माना कि आस्ट्रेलिया की आग वहां हर साल होनी वाली घटना है। पर इसका बढ़ता दायरा बता रहा है कि यह आग सिर्फ जंगलों में ही नहीं लगी हमारी धरती के पूरे पर्यावरण में लगी है। यदि इसे रोकने के समुचित उपाय नहीं हुए तो आने वाली नस्लों का भविष्य ही खतरे में पड़ जाएगा।