कभी कभी ऐसा भी होता है कि आप किसी विषय पर लिखना शुरू करो तो अनायास ही उससे जुड़ी बहुत सारी सामग्री अपने आप चली आती है। जैसे मैं पिछले दो दिनों से बच्चों के शोषण और उन पर होने वाले अत्याचार के बारे में लिख रहा हूं। इसी दौरान कई मंचों से ऐसी सामग्री आ रही है, जो इस मुद्दे पर नए तथ्य उद्घाटित करने वाली है।
ऐसे ही मंगलवार को इस मुद्दे से जुड़ी कई नई जानकारियां एक रिपोर्ट के जरिये सामने आईं। हुआ यूं कि ‘सेव द चिल्ड्रन’ संस्था ने भोपाल में, मप्र बाल अधिकार संरक्षण आयोग के साथ मिलकर ‘विंग्स 2018’ शीर्षक से, भारत में लड़कियों की स्थिति पर एक रिपोर्ट जारी की। यह रिपोर्ट सार्वजनिक स्थानों पर लड़कियों की सुरक्षा की अवधारणा को लेकर कुछ राज्यों में किए गए अध्ययन पर आधारित है।
यह अध्ययन छ: राज्यों असम, दिल्ली-एनसीआर, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में किया गया। इसमें 12 जिले, 30 शहर और 84 गांव शामिल किए गए। इनमें लड़की होने के नाते महसूस की जाने वाली सुरक्षा संबंधी चिंताओं और संबंधित मुद्दों पर, उन किशोरियों से बात की गई जो वयस्क होने की दहलीज पर खड़ी हैं।
अध्ययन में मध्यप्रदेश से कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इनमें सबसे हैरान कर देने वाला तथ्य यह है कि लड़कियां सुनसान इलाकों के बजाय भीड़भाड़ वाले इलाकों में अपनी सुरक्षा और यौन शोषण को लेकर ज्यादा चिंतित नजर आईं। 52 प्रतिशत लड़कियों का कहना था कि वे स्थानीय बाजार में खुद को सबसे ज्यादा असुरक्षित महसूस करती हैं।
47 फीसदी लड़कियों ने सार्वजनिक परिवहन सेवाओं को, 36 फीसदी ने पास पड़ोस की तंग गलियों और मोहल्लों के अलावा स्कूल के आसपास के इलाके को, 25 फीसदी ने स्कूल, स्थानीय मार्केट या ट्यूशन की ओर जाने वाले रास्ते को, 22 फीसदी ने गांव के आसपास के जंगल को और 12 फीसदी ने सिनेमा हॉल तथा मॉल को सुरक्षा के लिहाज से जोखिम भरा बताया।
इस अध्ययन का एक निष्कर्ष वर्तमान केंद्र व राज्य सरकार की बहुप्रचारित मान्यता को ध्वस्त करता नजर आता है। इस निष्कर्ष के मुताबिक सिर्फ 18 फीसदी लड़कियों ने मंजूर किया है कि वे खुले में शौच की जगह को अपने लिए असुरक्षित मानती हैं। जबकि उसकी तुलना में भीड़भाड़ वाले बाजार 52 फीसदी लड़कियों को असुरक्षित नजर आते हैं।
यह तथ्य चौंकाने वाला इसलिए है कि केंद्र सरकार ने जब ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के तहत, खासतौर से ग्रामीण इलाकों में, व्यापक पैमाने पर शौचालय बनाने का काम शुरू किया था तो उसके पीछे एक बड़ा कारण यह भी बताया गया था कि खुले में शौच जाने वाली लड़कियां असुरक्षित होती हैं और आसानी से यौन अपराधियों का शिकार बन जाती हैं।
इसी तरह यह अध्ययन एक और आम धारणा को तोड़ता नजर आता है। यह आम धारणा है कि अकेले होने या असुरक्षित जगहों पर, लड़कियां सबसे ज्यादा यौन आक्रमण या यौन हिंसा/शोषण के डर से ग्रस्त रहती हैं। लेकिन अध्ययन कहता है कि असुरक्षित जगहों पर लड़कियों के मन में सबसे ज्यादा डर किसी के द्वारा पीछा करने या घूरने को लेकर रहता है।
इसके बाद 69 फीसदी लड़कियां मानती हैं कि ऐसी जगहों पर उन्हें सबसे ज्यादा आशंका अश्लील फब्तियां कसे जाने की होती है। 40 फीसदी को पुरुषों द्वारा परेशान किए जाने अथवा अवांछित जगहों पर स्पर्श किए जाने का डर महसूस होता है, तो 29 फीसदी को डकैती अथवा जबरदस्ती उनकी चीजें छीन लिए जाने का डर सताता है।
23 फीसदी लड़कियां मानती हैं कि ऐसे असुरक्षित माहौल में उन्हें अपहरण का जोखिम लगता है, जबकि 19 फीसदी के मन में शारीरिक हानि पहुंचाए जाने की आशंका रहती है। सिर्फ 13 फीसदी लड़कियों ने ही अध्ययन के दौरान बताया कि किसी असुरक्षित जगह या माहौल में उन्हें यौन हिंसा या बलात्कार का डर लगता है। जबकि स्थापित मान्यता यह है कि लड़कियां असुरक्षित जगहों पर सबसे ज्यादा इन्हीं दो बातों को लेकर भयभीत रहती हैं।
विकास के तमाम दावों और समाज के आधुनिक होने की तमाम दलीलों के बीच वास्तविक हालात आज भी क्या हैं, जरा यह भी जान लीजिए। अध्ययन बताता है कि घर और समाज में लड़कियों की स्थिति आज भी दोयम दर्जे की है। सिर्फ तीन फीसदी लड़के और इतने ही प्रतिशत अभिभावक मानते हैं कि लड़कियों का अकेले बाहर जाना सुरक्षित है।
इसके मुकाबले 29 फीसदी किशोर वय के लड़कों और 26 फीसदी अभिभावकों का मानना है कि लड़कियों का अकेले बाहर निकलना बहुत ही असुरक्षित है। जबकि 38 फीसदी लड़कों व 37 फीसदी अभिभावकों की राय में यह कुछ हद तक असुरक्षित है। दूसरी ओर 30 फीसदी लड़कों व 34 फीसदी पालकों का मत है कि लड़कियां अकेले बाहर तो जा सकती हैं, लेकिन पूरी सावधानी बरतते हुए…
यदि कोई लड़की किसी सार्वजनिक स्थल पर प्रताड़ना की शिकार हो जाए और उसके घरवालों को इस बात का पता चले तो उनकी क्या प्रतिक्रिया होगी? इस सवाल के किशोरियों ने जो जवाब दिए हैं वे सामाजिक ढांचे की स्थिति को लेकर बहुत डराने वाले हैं। 63 फीसदी लड़कियों का कहना था कि ऐसी घटना का पता चलने के बाद उनका घर से बाहर निकलना बंद कर दिया जाएगा।
50 फीसदी का मानना था कि उनके घर से बाहर निकलने पर कई तरह की बंदिशों लगा दी जाएंगी या उनकी आवाजाही को बहुत कम कर दिया जाएगा। 34 फीसदी ने कहा कि घटना के बाद उनसे कह दिया जाएगा कि वे स्कूल या कॉलेज की पढ़ाई बंद कर दें और घर बैठें। 29 फीसदी की राय थी कि लड़कों के साथ मेलजोल बढ़ाने पर रोक लगा दी जाएगी।
ऐसी घटनाओं की शिकार होने पर 23 प्रतिशत लड़कियों को आशंका थी कि उनके अभिभावक उन्हें उच्च शिक्षा प्राप्त करने की अनुमति नहीं देंगे। इसी तरह 18 फीसदी का मानना था कि उनके माता-पिता जल्द से जल्द उनकी शादी कर देंगे। सिर्फ 20 फीसदी लड़कियों ने ही कहा कि ऐसी घटना हो जाने के बाद उनके अभिभावक पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराएंगे।
समाज में लड़कियों की स्थिति का आईना दिखाने वाली इस रिपोर्ट पर कल भी बात करेंगे…