कहानी जामुन का पेड़- दूसरा भाग

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अब फाइल को मेडिकल डिपार्टमेंट में भेज दिया गया। मेडिकल डिपार्टमेंट ने फौरन इस पर एक्‍शन लिया और जिस दिन फाइल मिली उसने उसी दिन विभाग के सबसे काबिल प्‍लास्टिक सर्जन को जांच के लिए मौके पर भेज दिया गया। सर्जन ने दबे हुए आदमी को अच्‍छी तरह टटोल कर, उसकी सेहत देखकर, खून का दबाव, सांस की गति, दिल और फेफड़ों की जांच करके रिपोर्ट भेज दी कि, ‘’इस आदमी का प्‍लास्टिक ऑपरेशन तो हो सकता है, और ऑपरेशन कामयाब भी हो जाएगा, मगर आदमी मर जाएगा।

लिहाजा यह सुझाव भी रद्द कर दिया गया।

रात को माली ने दबे हुए आदमी के मुंह में खिचड़ी डालते हुए उसे बताया ‘’अब मामला ऊपर चला गया है। सुना है कि सेक्रेटेरियट के सारे सेक्रेटरियों की मीटिंग होगी। उसमें तुम्‍हारा केस रखा जाएगा। उम्‍मीद है सब काम ठीक हो जाएगा।‘’

दबा हुआ आदमी एक आह भर कर आहिस्‍ते से बोला- ‘’हमने माना कि तगाफुल न करोगे लेकिन खाक हो जाएंगे हम, तुमको खबर होने तक।‘’

माली ने अचंभे से मुंह में उंगली दबाई। हैरत से बोला- ‘’क्‍या तुम शायर हो।‘’

दबे हुए आदमी ने आहिस्‍ते से सर हिला दिया।

दूसरे दिन माली ने चपरासी को बताया, चपरासी ने क्‍लर्क को और क्‍लर्क ने हेड-क्‍लर्क को। थोड़ी ही देर में सेक्रेटेरिएट में यह बात फैल गई कि दबा हुआ आदमी शायर है। बस फिर क्‍या था। लोग बड़ी संख्‍या में शायर को देखने के लिए आने लगे। इसकी खबर शहर में फैल गई। और शाम तक मुहल्‍ले मुहल्‍ले से शायर जमा होना शुरू हो गए। सेक्रेटेरिएट का लॉन भांति भांति के शायरों से भर गया। सेक्रेटेरिएट के कई क्‍लर्क और अंडर-सेक्रेटरी तक, जिन्‍हें अदब और शायर से लगाव था, रुक गए। कुछ शायर दबे हुए आदमी को अपनी गजलें सुनाने लगे, कई क्‍लर्क अपनी गजलों पर उससे सलाह मशविरा मांगने लगे।

जब यह पता चला कि दबा हुआ आदमी शायर है, तो सेक्रेटेरिएट की सब-कमेटी ने फैसला किया कि चूंकि दबा हुआ आदमी एक शायर है लिहाजा इस फाइल का ताल्‍लुक न तो कृषि विभाग से है और न ही हार्टिकल्‍चर विभाग से बल्कि सिर्फ संस्‍कृति विभाग से है। अब संस्‍कृति विभाग से गुजारिश की गई कि वह जल्‍द से जल्‍द इस मामले में फैसला करे और इस बदनसीब शायर को इस पेड़ के नीचे से रिहाई दिलवाई जाए।

फाइल संस्‍कृति विभाग के अलग अलग सेक्‍शन से होती हुई साहित्‍य अकादमी के सचिव के पास पहुंची। बेचारा सचिव उसी वक्‍त अपनी गाड़ी में सवार होकर सेक्रेटेरिएट पहुंचा और दबे हुए आदमी से इंटरव्‍यू लेने लगा।

‘’तुम शायर हो उसने पूछा।‘’

‘’जी हां’’ दबे हुए आदमी ने जवाब दिया।

‘’क्‍या तखल्‍लुस रखते हो’’

‘’अवस’’

‘’अवस’’! सचिव जोर से चीखा। क्‍या तुम वही हो जिसका मजमुआ-ए-कलाम-ए-अक्‍स के फूल हाल ही में प्रकाशित हुआ है।

दबे हुए शायर ने इस बात पर सिर हिलाया।

‘’क्‍या तुम हमारी अकादमी के मेंबर हो?’’ सचिव ने पूछा।

‘’नहीं’’

‘’हैरत है!’’ सचिव जोर से चीखा। इतना बड़ा शायर! अवस के फूल का लेखक!! और हमारी अकादमी का मेंबर नहीं है! उफ उफ कैसी गलती हो गई हमसे! कितना बड़ा शायर और कैसे गुमनामी के अंधेरे में दबा पड़ा है!

‘’गुमनामी के अंधेरे में नहीं बल्कि एक पेड़ के नीचे दबा हुआ… भगवान के लिए मुझे इस पेड़ के नीचे से निकालिए।‘’

‘’अभी बंदोबस्‍त करता हूं।‘’ सचिव फौरन बोला और फौरन जाकर उसने अपने विभाग में रिपोर्ट पेश की।

दूसरे दिन सचिव भागा भागा शायर के पास आया और बोला ‘’मुबारक हो, मिठाई खिलाओ, हमारी सरकारी अकादमी ने तुम्‍हें अपनी साहित्‍य समिति का सदस्‍य चुन लिया है। ये लो आर्डर की कॉपी।‘’

‘’मगर मुझे इस पेड़ के नीचे से तो निकालो।‘’ दबे हुए आदमी ने कराह कर कहा। उसकी सांस बड़ी मुश्किल से चल रही थी और उसकी आंखों से मालूम होता था कि वह बहुत कष्‍ट में है।

‘’यह हम नहीं कर सकते’’ सचिव ने कहा। ‘’जो हम कर सकते थे वह हमने कर दिया है। बल्कि हम तो यहां तक कर सकते हैं कि अगर तुम मर जाओ तो तुम्‍हारी बीवी को पेंशन दिला सकते हैं। अगर तुम आवेदन दो तो हम यह भी कर सकते हैं।‘’

‘’मैं अभी जिंदा हूं।‘’ शायर रुक रुक कर बोला। ‘’मुझे जिंदा रखो।‘’

‘’मुसीबत यह है’’ सरकारी अकादमी का सचिव हाथ मलते हुए बोला, ‘’हमारा विभाग सिर्फ संस्‍कृति से ताल्‍लुक रखता है। आपके लिए हमने वन विभाग को लिख दिया है। अर्जेंट लिखा है।‘’

शाम को माली ने आकर दबे हुए आदमी को बताया कि कल वन विभाग के आदमी आकर इस पेड़ को काट देंगे और तुम्‍हारी जान बच जाएगी।

माली बहुत खुश था। हालांकि दबे हुए आदमी की सेहत जवाब दे रही थी। मगर वह किसी न किसी तरह अपनी जिंदगी के लिए लड़े जा रहा था। कल तक… सुबह तक… किसी न किसी तरह उसे जिंदा रहना है।

दूसरे दिन जब वन विभाग के आदमी आरी, कुल्‍हाड़ी लेकर पहुंचे तो उन्‍हें पेड़ काटने से रोक दिया गया। मालूम हुआ कि विदेश मंत्रालय से हुक्‍म आया है कि इस पेड़ को न काटा जाए। वजह यह थी कि इस पेड़ को दस साल पहले पिटोनिया के प्रधानमंत्री ने सेक्रेटेरिएट के लॉन में लगाया था। अब यह पेड़ अगर काटा गया तो इस बात का पूरा अंदेशा था कि पिटोनिया सरकार से हमारे संबंध हमेशा के लिए बिगड़ जाएंगे।

‘’मगर एक आदमी की जान का सवाल है’’ एक क्‍लर्क गुस्‍से से चिल्‍लाया।

‘’दूसरी तरफ दो हुकूमतों के ताल्‍लुकात का सवाल है’’ दूसरे क्‍लर्क ने पहले क्‍लर्क को समझाया। और यह भी तो समझ लो कि पिटोनिया सरकार हमारी सरकार को कितनी मदद देती है। क्‍या हम इनकी दोस्‍ती की खातिर एक आदमी की जिंदगी को भी कुरबान नहीं कर सकते।

‘’शायर को मर जाना चाहिए?’’

‘’बिलकुल’’

अंडर सेक्रेटरी ने सुपरिंटेंडेंट को बताया। आज सुबह प्रधानमंत्री दौरे से वापस आ गए हैं। आज चार बजे विदेश मंत्रालय इस पेड़ की फाइल उनके सामने पेश करेगा। वो जो फैसला देंगे वही सबको मंजूर होगा।

शाम चार बजे खुद सुपरिन्‍टेंडेंट शायर की फाइल लेकर उसके पास आया। ‘’सुनते हो?’’ आते ही खुशी से फाइल लहराते हुए चिल्‍लाया ‘’प्रधानमंत्री ने पेड़ को काटने का हुक्‍म दे दिया है। और इस मामले की सारी अंतर्राष्‍ट्रीय जिम्‍मेदारी अपने सिर पर ले ली है। कल यह पेड़ काट दिया जाएगा और तुम इस मुसीबत से छुटकारा पा लोगे।‘’

‘’सुनते हो आज तुम्‍हारी फाइल मुकम्‍मल हो गई।‘’ सुपरिन्‍टेंडेंट ने शायर के बाजू को हिलाकर कहा। मगर शायर का हाथ सर्द था। आंखों की पुतलियां बेजान थीं और चींटियों की एक लंबी कतार उसके मुंह में जा रही थी।

उसकी जिंदगी की फाइल मुकम्‍मल हो चुकी थी।

(समाप्‍त)

नोट- मूल कहानी में उर्दू के कई कठिन शब्‍दों का इस्‍तेमाल हुआ है, उनके स्‍थान पर हमने अपने पाठकों की सुविधा के लिए बोलचाल की हिन्‍दी वाले शब्‍द इस्‍तेमाल किए हैं।

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जामुन का पेड़- एक अनूठी कहानी

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कृष्‍ण चंदर

यह कहानी हिन्‍दी-उर्दू के प्रसिद्ध साहित्‍यकार कृष्‍ण चंदर की लिखी हुई है। कृष्‍ण चंदर का जन्‍म 23 नवंबर 1914 को (आज के) पाकिस्‍तान के वजीराबाद में हुआ था और उनका देहांत 8 मार्च 1977 को मुंबई में हुआ। उन्‍होंने 20 उपन्‍यास, 30 कहानी संकलन और दर्जनों रेडियो नाटक लिखे।

जामुन का पेड़ नामक इस कहानी को लिखे जाने का ठीक ठीक समय तो ज्ञात नहीं हो सका, लेकिन यदि यह उनके निधन के दस साल पहले भी लिखी गई होगी, तो इस कहानी की उम्र करीब 50 साल बैठती है। जरा सोचिए कृष्‍ण चंदर ने 50 साल पहले जिस लालफीताशाही को इस कहानी में बयां किया है, क्‍या वह आज भी वैसी की वैसी नहीं है?

तो फिर बदला क्‍या है इस देश में…

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