इस लेख की हैंडिंग पढ़कर मुझे महिलाओं की समस्याओं और स्थिति के प्रति Insensitive घोषित करने का मन बनाने वाले इस आर्टिकल को आगे न ही पढ़ें, क्योंकि ये पूरा लेख पुरुषों के फेवर में तो नहीं, लेकिन, हां महिलाओं की आलोचना के लिए जरूर लिख रही हूं। कुछ मुद्दों पर पुरुषों के पक्ष में लिखने की बात मेरे मन में काफी पहले से थी, लेकिन अब इंटरनेशनल मेन्स डे पर अपनी भावनाओं को व्यक्त करने का मुझे सही मौका मिला है।
मैं अक्सर लड़कियों के फेवर में लिखती हूं और आसपास उनकी आलोचना होने पर मेरा खून खौल जाता है, जिससे अनेक मौकों पर विवाद की स्थिति बन आती हैं, लेकिन पिछले कुछ समय से मेरे सामने ऐसी बातें आ रही हैं, जिससे मुझे एहसास होने लगा है कि कुछ लड़कियां, महिला होने का नाजायज फायदा उठाती हैं और अपना फीमेल कार्ड खेलते हुए लड़कों पर भारी होने की कोशिश करती हैं। कुछ उदाहरण ऐसे भी सामने आए, जिनमें लड़के ये भी कहते दिखे कि लड़का होकर हमें उन पर दया आ गई, लेकिन उस लड़की को जरा सा भी रहम नहीं आया।
मैं क्या कहना चाहती हूं ये शायद इन नीचे लिखे किस्सों से साफ हो सके…
मेट्रो- ये सीट महिलाओं के लिए है…
मेट्रो से लेकर बस तक हर जगह महिलाओं के लिए अलग से सीट रिजर्व रहती हैं। महिलाओं के लिए तो मेट्रो में एक कोच अलग से ही है और बाकी कोच में भी उनके लिए सीटें रिजर्व हैं, लेकिन जरूरत पढ़ने पर यदि कोई पुरुष इन सीटों पर बैठ जाए तो मुझे नहीं लगता कि इसमें कुछ गलत है। एक बार मैं मेट्रो से घर की ओर जा रही थी। पीक टाइम होने के कारण काफी भीड़ थी और मेट्रो खचाखच भरी हुई थी। मैं महिलाओं के कोच में न होकर बीच वाले कोच में थी और दरवाजे के पास खड़ी हुई थी। नोएडा सेक्टर-15 का स्टेशन आया तो और भीड़ अंदर घुसी, जिसमें महिलाएं भी शामिल थीं। दो सहेलियां भी इनमें शामिल थीं जो उस सीट की ओर बढ़ रही थीं, जो महिलाओं के लिए थीं। पूरी सीट पर सिर्फ एक ही युवक बैठा था, बाकि महिलाएं थीं। ऐसे में वो सहेलियां सीट के पास आईं और ऑर्डर देते हुए युवक से बोलीं ये सीट महिलाओं के लिए है, आप उठ जाइए।
उस लड़के ने पहले लड़कियों की तरफ देखा, फिर सीट के ऊपर लगा साइन देखा और फिर अपने भारी-भरकम लगेज बैग की ओर। लड़कियों ने उसके बैग और चेहरे पर दिख रही थकान को अनदेखा कर दिया और पैर पटकते हुए उसके उठने का इंतजार करने लगीं। आखिरकार वो लड़का सॉरी बोलता हुआ उठा और लड़कियां गिगलिंग करती हुईं सीट पर बैठ गईं। मुझे उस लड़के पर तरस आ गया, लेकिन उन सहेलियों के लिए तो ये जीत थी।
क्या आपको नहीं लगता कि इस मामले में लड़कियों के जरिए फीमेल कार्ड को गलत तरीके से यूज किया गया?
तूने हाथ कैसे लगाया…
बस में काफी भीड़ थी। लोग एक-दूसरे पर गिर रहे थे। लड़कों के साथ लड़कियां भी खड़े हुए यात्रियों में शामिल थीं। बस वाले कैसे वाहन चलाते हैं और कैसे अचानक ब्रेक लगा देते हैं ये सभी जानते हैं। एक लड़का पीठ पर बैग लिए बस में चढ़ा और कंडक्टर जब पास आया तो वो बैग को पीठ से उतारकर सामने लाकर पैसे निकालने की कोशिश करने लगा। इस दौरान ड्राइवर ने अचानक ब्रेक लगाए। खुद को गिरने से रोकने की कोशिश करते हुए लड़के ने सीट का ऊपरी हिस्सा पकड़ने की कोशिश की, लेकिन हाथ लड़की के कंधे पर जा ठहरा। लड़की ने पलटते हुए धमकी भरे लहजे में कहा- ‘तूने हाथ कैसे लगाया’। लड़के के चेहरे का रंग उड़ चुका था, वो उससे माफी मांगते हुए समझाने की कोशिश करने लगा कि उसने ऐसा जानबूझकर नहीं किया, लेकिन लड़की बस यही दोहराती रही- ‘तूने हाथ कैसे लगाया’। आसपास खड़े लड़कों ने भी समझाने की कोशिश की, लेकिन सब व्यर्थ।
आखिरकार लड़का माफी मांगते हुए बस के दूसरे छोर की ओर चला गया और लड़कियां चिल्ला-चिल्लाकर मर्द जात को गालियां सुनाती रहीं। ड्राइवर ने फिर ब्रेक लगाए, लेकिन इस बार एक लड़की का बैग उन लड़कियों से टकराया। जिस पर फिर से सीट पर बैठी लड़की पलटी, लेकिन जब उसने पाया कि बैग वाली भी लड़की है तो बस घूरकर वो वापस सामने की ओर देखने लगी।
क्या आपको नहीं लगता कि यहां सीट पर बैठी लड़की को स्थिति समझने की कोशिश करनी चाहिए थी?
तुम्हारे साथ रेप हुआ तो तुम तो एन्जॉय करोगे…
रेप बहुत ही सेंसेटिव टॉपिक है। लेकिन मैंने न सिर्फ पुरुष, बल्कि महिलाओं को भी इस पर मजाक करते देखा है। खैर, ये किस्सा रेप की एक खबर पर चल रही बातचीत का है। रेप की खबर पढ़ लड़कियां बातचीत कर रही थीं, वो गुस्से में थीं। इस दौरान उनका एक मेल फ्रेंड आया और उसने भी इस घटना की आलोचना की, लेकिन लड़कियों को तो जैसे अपना गुब्बार निकालने के लिए बकरा मिल गया था। उन्होंने उसे ही पुरुष जात ऐसी-वैसी कहते हुए सुनाना शुरू कर दिया। एक मोहतरमा ने कहा कि, तुम लड़कों को तो कोई फर्क नहीं पड़ता। तुम्हारे साथ तो लड़की रेप करे तो तुम तो उसे एन्जॉय ही करोगे, क्योंकि तुम मर्दों को तो बस एक ही चीज से मतलब है।
इस पर लड़का बिफर गया और उसने जवाब देते हुए कहा- क्यों, मैं क्यों अपने साथ हुए रेप को एन्जॉय करूंगा? क्या आपके पिता के साथ ऐसा होगा तो क्या वे भी इसे एंजॉय करेंगे, भाई के साथ, दादा के साथ, या आपके ब्वॉयफ्रेंड के साथ? क्या वे सब भी इसे एन्जॉय करेंगे? मेरी एक गर्लफ्रेंड है और मैं उसे बहुत प्यार करता हूं। मैं किसी ओर की तरफ देखता तक नहीं, तो छूना बहुत दूर की बात है। ऐसे में यदि कोई लड़की मेरा रेप करती है तो मेरे लिए भी ये किसी ट्रॉमा से कम नहीं होगा। मेरी स्थिति तो आपसे भी बुरी होगी, क्योंकि रेप की बात बताने पर आप जैसी लड़कियां मुझे ही गलत बताएंगी। पुरुष साथी मेरा मजाक उड़ाएंगे और पुलिस तक मेरा साथ नहीं देगी।
आप यदि सभी पुरुषों को एक ही कैटेगरी में डालते हुए- ‘आप तो रेप को एन्जॉय करेंगे’ की बात कह सकती हैं तो मैं भी ये बात कह सकता हूं। और हां, ये भी मत भूलिए कि आजकल ऐसे भी कई मामले सामने आ रहे हैं, जिसमें ब्रेकअप होने के बाद लड़की रेप का आरोप लगाते हुए अपने एक्स को हवालत पहुंचा देती है, जबकि संबंध उसकी मर्जी से बने होते हैं। यूज एंड थ्रो लड़कियां भी खूब करती हैं तो प्लीज… अगर मैं सब लड़कियों को एक कैटेगरी में नहीं डाल रहा तो आप भी ऐसा मत करें।
ये कहता हुआ वो लड़का वहां से चला गया। लड़कियां उसके तर्कों को समझ नहीं पा रही थीं, और बस यही बोल रही थीं कि जबरदस्ती सुना रहा था, हमें तो मालूम है कि मर्द कैसे होते हैं।
क्या आपको नहीं लगता कि हमें ये बात स्वीकार करना चाहिए कि दुनिया में अच्छे लड़के और बुरी लड़कियां भी हैं?
पत्नी बीमार, बच्चा बीमार… सब बहाने हैं…
एक शख्स ने दो बार एक-एक हफ्ते की ये कहते हुए छुट्टी ली कि पत्नी बीमार है, बच्चा बीमार है। उसे छुट्टी मिली तो आसपास बातें होने लगीं। पुरुष साथी कहने लगे हम तो पत्नी के बीमार होने पर इतनी लंबी छुट्टी नहीं लेते। महिला साथी कहने लगीं, कौन पति अपनी पत्नी की बीमारी में सेवा करता है और बच्चे के बीमार होने पर मां ही उसका ख्याल रखती है, पुरुष कुछ नहीं करते। फिर दोनों ओर से कहा गया, सब बहाने हैं।
ये बहाने क्यों हैं? आपको ऐसा जीवनसाथी नहीं मिला या फिर आपने किसी पति को पत्नी या बच्चे के बीमार होने पर उनकी देखभाल करते नहीं देखा, इसका मतलब ये तो नहीं कि ऐसे पुरुष होते ही नहीं है।
– पत्नी उनकी है, जिनसे वो प्यार करते हैं। बच्चे में तो उनकी जान बसती है। तो फिर क्यों वो उनकी देखभाल के लिए छुट्टी नहीं ले सकते?
– महिलाएं जब पति, सास-ससुर, बच्चे के बीमार होने पर छुट्टी लेती हैं तो वो मंजूर है, क्योंकि भई वो तो महिला है। और यदि पुरुष ऐसी छुट्टी लें तो महिलाओं तक के लिए ये बात पचाना मुश्किल हो जाती है।
– जब आप बीमार होती हैं तो उम्मीद करती हैं कि ऑफिस में आपका बॉस आपकी स्थिति को समझे और आपको घर भेज दे। और अगर ऐसा न हो तो अचानक से वो एंटी वूमेन बन जाता है।
– यदि बॉस ऐसा ही बीमार पुरुष साथी के साथ करे तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि पुरुषों को तो आदत होती है न…
– क्या आपको नहीं लगता कि महिलाएं जो खुद भेदभाव का आरोप लगाती हैं, खुद ही भेदभाव भी करती हैं?
ऐसे कई और किस्से हैं, लेकिन सभी को यहां लिखना संभव नहीं हैं। जानती हूं कि ऊपर लिखे गए मामलों में भी महिला के फेवर का एंगल निकाला जा सकता है। या ये भी कहा जा सकता है कि महिलाओं के साथ जो होता है, उसके कारण उनकी सोच बदली है। सब एक्सेप्टेड, लेकिन हमें ये भी स्वीकारना होगा कि महिलाएं जो पुरुषों के कंधे से कंधा मिलाने की बात करती हैं वो लड़की होने का बेवजह फायदा भी उठाती हैं। ओवर टाइम हो, काम के लिए कहीं दूर जाना हो, मेट्रो में सीट चाहिए हो, छुट्टी चाहिए हो आदि की जब जरूरत होती है तब अचानक महिलाएं उम्मीद करने लगती हैं कि महिला होने के नाते उन्हें ज्यादा रियायत दी जाए।
जो महिलाएं फेमिनिस्ट होने का दावा करती हैं वो खुद भी कई मामलों में महिला होने का नाजायज फायदा उठाती दिखी हैं मुझे। ऐसे में वो पुरुषों से सम्मान पाने की उम्मीद कैसे कर सकती हैं। वो भूल जाती हैं कि फेमिनिज्म बराबरी का हक पाने के लिए शुरू किया गया मूवमेंट था, न कि महिला होने के कारण नाजायज फायदा उठाने का मौका। यकीन मानिए जो महिलाएं बात-बात पर वूमेन कार्ड नहीं खेलतीं और पुरुषों को भी सम्मान से देखती हैं, उन्हें भी पुरुषों से बदले में सम्मान ही मिलता है, क्योंकि वे फिर महिला को महिला की तरह नहीं, बल्कि एक मेहनती कलिग या दोस्त के रूप में देखने लगते हैं। और हां ये मत भूलिए कि गेंहू के साथ घुन भी पिसता है। तो अगर आप वूमेन कार्ड से खेलते हुए फायदा उठा रही हैं, ऐसे में यदि भविष्य में आपके आसपास मौजूद पुरुष आपका सम्मान न करें या फिर महिलाओँ के प्रति उनकी सोच ही ‘लड़की होने का फायदा उठाने वाली’ के रूप में हो जाए तो इसके लिए वे नहीं बल्कि आप ही जिम्मेदार होंगी।
(अक्षरा उपाध्याय के ब्लॉग से साभार)