मोदी जी के तीसरे आव्हान से पहले कुछ जरूरी बातें

राकेश अचल

इस बात में अब कोई संदेह नहीं रहा है कि भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गांधीपथ पर आगे बढ़ते हुए लोकनायक बनते जा रहे हैं। उनकी एक आवाज पर देश ताली,थाली बजाने से लेकर दीपोत्सव मनाने तक के लिए तैयार हो जाता है, लेकिन दुर्भाग्य ये है कि देश मोदी जी का अनुसरण करते हुए न राष्ट्रानुशासन का परिचय देता है और न मोदी जी का सम्मान ही अक्षुण्‍ण रख पाता है। ये तो मोदी जी हैं जो अपना अपमान सहकर भी बार-बार जनता का आव्हान करते रहते हैं, उनकी जगह यदि महात्मा गांधी होते तो कबके घर बैठकर इस अपमान का प्रतिकार करते ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भीतर भले ही पंडित दीनदयाल उपाध्याय और श्यामाप्रसाद मुखर्जी विराजते हों लेकिन बीते कुछ सालों में उन्होंने महात्मा गांधी का पूरी मुस्तैदी से नहीं तो काफी हद तक अनुसरण किया है। देश में समग्र स्वच्छता अभियान इसका पहला उदाहरण था, ये बात अलग है कि देशवासियों ने उसे अपनी आदतों के चलते शत-प्रतिशत कामयाब नहीं होने दिया। मोदी का उक्त अभियान यदि कामयाब हो गया होता तो मुमकिन है कि आज कोरोना काल में देश को इतनी मुश्किलों का सामना न करना पड़ता।

बहरहाल मैं बात कर रहा था मोदी जी के भीतर पक रहे गांधी की, इसका संकेत मुझे मित्र डॉ. अरविंद कुमार दुबे की एक पोस्ट से मिला। उन्होंने इंगित किया कि मोदी जी ने कोरोनाकाल में जो दो राष्ट्र आव्हान किये उनमें गांधी की प्रतिध्वनि थी। गांधी ने अपनी दांडी यात्रा का जब आव्हान किया था तब उनके साथ एक लाख से अधिक लोग थे लेकिन किसी ने अनुशासन भंग नहीं किया, ब्रिटिश पुलिस की लाठियां खाते रहे, गिरते रहे, हालांकि वे यदि एक-एक थप्पड़ भी मारते तो पुलिस का कचूमर निकल जाता, लेकिन ऐसा नहीं हुआ क्योंकि गांधी के अनुयायी एक तो अपने नेता के मान की रक्षा के प्रति संकल्पित थे दूसरे उनमें एक अनुशासन था।

गांधी ने ऐसा ही एक राष्ट्र आव्हान 1920 में रोलेट एक्ट के खिलाफ किया, शायद ये दुनिया की पहली देशव्यापी हड़ताल थी, इसमें लोगों ने अपनी नौकरियां छोडीं, मुम्बई जैसा महानगर पूरी तरह बंद रहा किन्तु कुछ लोगों ने कुछ अंग्रेजों को पीट दिया, एक थाने को आग लगा दी। गांधी को जैसे ही इन घटनाओं का पता चला उन्होंने अपने आपको इस आंदोलन से अलग कर लिया जबकि अंग्रेजों का मानना था की गांधी इस आंदोलन के जरिये स्वाधीनता के अपने मकसद से महज एक इंच दूर थे।

प्रधानमंत्री जी ने 22 मार्च को जब एक दिन के लॉक डाउन का आव्हान किया तो पूरा देश उनके साथ खड़ा हुआ लेकिन शाम के पांच बजते ही लोग थाली, मंजीरे और शंख लेकर सड़कों पर आ गए। अनुशासनहीन भीड़ ने प्रधानमंत्री जी के न मान की चिंता की और न राष्ट्रानुशासन का प्रदर्शन किया। प्रधानमंत्री जी ने फिर देशव्यापी लॉकडाउन के नौवे दिन 5 अप्रैल को राष्ट्र से दीपोत्स्व का आव्हान किया, लेकिन जनता ने दूसरी बार भी प्रधानमंत्री जी के मान की चिंता नहीं की और आतिशबाजी कर डाली, इसके चलते देश में आगजनी की अनेक दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं हुई। मोदी जी ने घरों में उपलब्ध साधनों से रोशनी का आव्हान किया था लेकिन बाजार डिजाइनर दीपकों से सजा दिया गया।

लोग न जाने कहाँ से आतिशबाजी का सामान निकाल लाये। यदि मोदी जी वास्तव में गांधी का अनुसरण कर रहे होते तो शायद अपने आपको इस दीपोत्‍सव से अलग कर लेते, या देश को डांटते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। इससे लगता है कि उन्हें न अपने अपमान से चोट पहुंची और न राष्ट्र अनुशासन टूटने से वे व्यथित हुए। प्रधनमंत्री के मान की रक्षा करना और राष्ट्रीय अनुशासन बनाये रखने का दायित्व मोदी जी के भक्तों का भी है लेकिन दुर्भाग्य कि वे अपनी दृष्टि खो चुके हैं, उन्हें जाग्रत करने की जरूरत भी है।

कोरोना के खिलाफ जब पूरी दुनिया त्रस्त है तब अकेले भारत में प्रधानमंत्री मोदी जी को सुना और समझा जा रहा है। लोग उनके आव्हान पर सब कुछ करने को तैयार हैं, ऐसे में बहुत जरूरी हो जाता है कि मोदी जी अपना तीसरा नैशनल कॉल देने से पहले सौ बार सोचें। सोचें कि उनका आह्वान ‘मॉस हिस्टीरिया’ में तब्दील न हो। क्योंकि भीड़ के साथ चलने के जितने लाभ हैं उतने ही नुक्सान भी हैं।

आज देश के सामने परीक्षा की घड़ी है, देश इस परीक्षा में उत्तीर्ण भी हो सकता है क्योंकि आज उसके पास मोदी जी जैसा नेता है जिसकी बात सुनी जाती है, इसलिए बेहद जरूरी है कि मोदी जी अपने अंदर कुलबुलाते गांधी को पूरी तरह आत्मसात करते हुए अब राष्ट्र का अनुशासन तोड़ने वालों के खिलाफ सख्त हों, और ऐसे आव्हानों से अपने आपको अलग भी कर लें जिनमें अनुष्ठान टूटता हो या नेतृत्व का अपमान होता हो। ये तय है कि देश को मौजूदा संकट से बाहर निकालने में गांधी का रास्ता ही काम आएगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधीपथ की शक्ति को पहचाना है, वे इसका सही इस्तेमाल और कर दिखाएँ तो राष्ट्र कल्याण हो।

(ये लेखक के अपने विचार हैं। इससे वेबसाइट का सहमत होना आवश्‍यक नहीं है। यह सामग्री अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के तहत विभिन्‍न विचारों को स्‍थान देने के लिए लेखक की फेसबुक पोस्‍ट से साभार ली गई है।)

 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here