बगैर टेस्टिंग कोरोना लॉक डाउन के भीतरी नजारे…!

अजय बोकिल

देश में लॉक डाउन के दौरान जमातियों की मूर्खताओं से हटकर एक नजर इन खबरों पर डालें-

एक: कर्नाटक के कलबुर्गी जिले के रेवूर गांव में एक मंदिर के सालाना जलसे में भगवान का रथ खींचने हजारों लोग जमा। सोशल डिस्टेंसिंग के उल्लंघन पर मंदिर ट्रस्ट व 19 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज। पांच गिरफ्तार। एक एसडीएम व एक एसआई सस्पेंड। पूरा गांव सील। इसी जिले में देश में कोरोना से पहली मौत हुई थी।

दो: कर्नाटक के ही बेंगलुरू के पास रामनगर में राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एचडी कुमारस्वामी के बेटे का भव्य विवाह। मेहमानों के चेहरों पर बिना मास्क की खुशियां। दावा मात्र साठ-सत्तर मेहमानों का। जलसे की बाकी कसर कोरोना के बाद निकालने का वादा। सरकार की खानापूर्ति कि यदि कोरोना दिशा निर्देशों का उल्लंघन पाया गया तो कुमारस्वामी के खिलाफ कार्रवाई होगी।

तीन: महाराष्ट्र के पालघर जिले के दाभड़ी खानवेल रोड स्थित एक आदिवासी गांव में भीड़ ने 3 यात्रियों को लुटेरा समझ कर पीट-पीटकर मार डाला। पुलिस पहुंची तो उस पर भी हमला। पांच पुलिसकर्मी घायल। सवाल ये कि लॉक डाउन में भी इतने सारे ग्रामीण एक साथ कैसे जमा हो गए? दो सौ के खिलाफ मामला दर्ज।

चार: बिहार में पटना के पास पिकअप वैन से आलू लेकर दानापुर आ रहे एक व्यक्ति से कोर्ट ड्यूटी में तैनात पुलिसकर्मियों द्वारा पांच हजार रुपये रिश्वत की मांग। इंकार करने पर पुलिस वालों ने उसे गोली मार दी और फरार हो गए। मामला उजागर होने पर तीनों पुलिसकर्मियों को गिरफ्तार कर जेल भेजा।

पांच: मप्र के भिंड जिले में शादी में कम दहेज मिलने से नाराज दलित परिवार के दूल्हे ने विदा के बाद दुल्हन को बीच रास्ते में गाड़ी से उतार दिया। बाद में पुलिस ने थाने से ही दुल्हन की विदा कराई। दूल्हा दहेज में कम नकदी मिलने से नाराज था।

ये देश के विभिन्न राज्यों के बीते एक पखवाड़े के वो नजारे हैं, जिन्हें पढ़कर शायद यकीन नहीं होगा ‍कि आप करीब एक माह से लॉक डाउन में जी रहे हैं। इन बातों का जिक्र इसलिए जरूरी है कि लॉक डाउन का कथित रोमांटिसिज्म, भुखमरी और बेरोजगारी की निष्ठुर सच्चाई, कोरोना वॉर की कई प्रेरक जिंदा कहानियां और इन कहानियों को बट्टा लगाती अनेक मूर्खताएं आजकल सुर्खियों में है। लॉक डाउन को देखने, समझने, भोगने और अनुभूत करने के सबके अपने अलग-अलग तरीके और पैमाने हैं।

सम्पन्न सुखी वर्ग के लिए यह क्वालिटी और फैमिली टाइम है। जहां अपने हाथों से खाना बनाना भी एक रेयर एक्स्पीरियंस और विवशताजनित अनुभव है। ऐसे घरों में झाड़ू-पोंछा, परिजनों के साथ ठहाके, मोबाइल की दुनिया से बाहर निकलकर कुछ अपनों से बातें भी अब रेयर आयटम में शुमार हैं। लिहाजा ऐसे वर्ग के लिए मजबूरन लॉक डाउन होना भी कई अहसासों को अनलॉक करना है। साथ में यह सबक भी कि पैसे से सब कुछ नहीं खरीदा जा सकता।

दूसरा मध्यमवर्गीय तबका है, जो उम्मीदों और आशंकाओं में घिरा किसी तरह लॉक डाउन का वक्त काट रहा है। घर का सामान भी किफायत से खर्च किया जा रहा है। पैसे हैं, पर इतने भी नहीं कि बस यूं ही उड़ा दिए जाएं। वर्क फ्रॉम होम का तनाव और किसी तरह जॉब बचाए रखने की कोशिश। घर से बाहर जाने को मन करता है, लेकिन न जा पाने की मजबूरी है। रिश्तेदारों से भी मोबाइल पर इतनी बातें और रेसिपियों का आदान प्रदान हो चुका है कि अब और कुछ नया बाकी नहीं रहा, सिवाय पीएम, सीएम के कोरोना संदेशों को देखते रहने के।

तीसरा तबका वो है, जिसके लिए लॉक डाउन न समाप्त होने वाले दुस्वप्न की तरह है। कोरोना वायरस के हाथ में खंजर होगा, सो होगा, लेकिन यहां तो हर दिन मौत करीब आती दिख रही है। सरकार ने लॉक डाउन ढीला करने के संकेत दिए हैं, लेकिन उम्मीद की किरण कहीं नजर नहीं आती। कोरोना के पहले जो काम बंद हुआ, वह फिर मिल ही जाएगा, इसकी कोई गारंटी नहीं। उदास घर में कभी बच्चों के चेहरे तो कभी अपने सिकुड़ते पेट को देखते हैं।

कुछ ने जुगाड़ से फ्री का राशन भी इतना भर लिया है कि उसी को बेचकर खाने का बाकी सामान खरीद रहे हैं। सबसे बुरी हालत भिखारियों, बेघर पागलों और आवारा कुत्तों और पालतू चौपायों की है। उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि ये कैसा लॉक डाउन, जिसमें धड़कती जिंदगी को कायम रखने सब कुछ बंद कर दिया गया है।

लेकिन इन सबसे हटकर समाज के वो लोग हैं, जिनका जिक्र इस कॉलम के आरंभ में हुआ है। ये वो लोग हैं, जिनका लॉक डाउन में कुछ भी नहीं बिगड़ा है। न चाल, न ढाल न नीयत। मानो कोरोना भी उन पर बेअसर है। वरना क्या कारण है कि कर्नाटक के एक मंदिर में सख्ती के बाद भी हजारों लोग बेखौफ होकर भगवान का रथ खींचने के लिए जुट जाते हैं। वो भगवान, जो खुद आजकल भक्तों से डिस्टेंसिंग बनाए हुए हैं। लेकिन भक्तों को इसकी भी चिंता नहीं। यानी मर जाएंगे, पर बाहर निकलना नहीं छोड़ेंगे।

कर्नाटक के पूर्व मुख्य मंत्री कुमारस्वामी ने तो गजब ही किया। उन्होंने लॉक डाउन में भी बेटे और बहू के विवाह की गांठ धूमधाम से बांध दी। बेंगलुरू के रेड जोन में होने से कुमारस्वामी ने विवाह का भव्य समारोह अपने चुनाव क्षेत्र रामनगर में आयोजित किया। बकौल स्वामी यह 60-70 मेहमानों का ‘सादा’ आयोजन था। हसरत हजारों को न्यौतने की थी। वैसे भी राजनेताओं के लिए ऐसे आयोजन अपनी राजनीतिक शक्ति प्रदर्शन और जनता से संवाद साधने के होते हैं। कोरोना ने उनकी हसरतों को कट जरूर किया, लेकिन मार तो वह भी नहीं पाया।

राज्य में भाजपा की येदियुरप्पा सरकार भी स्वामी के खिलाफ कोई कार्रवाई करने की हिम्मत नहीं कर पा रही, क्योंकि वो वोक्कालिगा समुदाय के नेता हैं। यूपी में ऐसे एक भाजपा पार्षद ने लॉक डाउन में भी अपनी शानदार बर्थ डे पार्टी मना डाली थी।

इससे भी क्षुब्ध करने वाली बात यह है कि ऐसे लोगों ने लॉक डाउन में न तो दहेज लेना छोड़ा है और न ही रिश्वत लेना। भिंड जिले में नवविवाहिता को रास्ते में उतार देने वाले लोभी पति को इस बात का अहसास भी नहीं होगा कि अगर वह भी कोरोना की चपेट में आ जाएगा, तो दहेज रखेगा कहां। पटना और प्रकारांतर से पूरे देश में पुलिस वालों की रिश्वतखोरी वैसे ही चल रही है, जैसी कि कोरोना के पहले चलती थी। एक क्या दसियों कोरोना भी आ जाएं तो इस देश में रिश्वतखोरी नहीं रुक सकती। यानी रिश्वतखोर जेल जाने से तो क्या कोरोना से भी नहीं डरते। बल्कि उन्हें इस बात का दुख ज्यादा सता सकता है कि बिना कोई घूस खाए वो मर क्यों गए?

कहने का आशय कि भले ही देश में लॉक डाउन हो, जनजीवन थमा सा लगता हो, निजी आजादी की नजरबंदी हो, बेलगाम घूमने फिरने पर पहरा हो, लेकिन समाज की बुराइयां कहीं लॉक नहीं हो पा रही हैं। लॉक डाउन ने इंसानियत के भी कई लंगर खोले हैं, लेकिन लॉक डाउन हटते ही वो कब बंद हो जाएंगे, कोई नहीं कह सकता। कहा जा रहा है कि लॉक डाउन ने लोगों की जिंदगी को बदल दिया है, उनके सामाजिक सोच को बदल दिया है, लॉक डाउन हटेगा तो हमारा समाज भी कोरोना का धुला ‍निकलेगा। उसका चेहरा बदला हुआ होगा। ये होगा, वो होगा।

लेकिन खबरें जो बता रही है, वो ये कि इस लॉक डाउन की सुरंग में भी वही सब कुछ और पहले जैसा ही चल रहा है। न अंधभक्ति कम होगी, न अपनी रसूखदारी का नंगा नाच रुकेगा, न पैसे का लोभ घटेगा और न ही बेईमानी थमेगी। इस बात का डर जरूर है ‍कि कोरोना के बाद देश कहीं अभावों और मजबूरियों का ऐसा नजारा न देखे, जो पहले शायद ही देखा हो। देश की जीडीपी बढ़े न बढ़े, लेकिन भ्रष्टाचार कहीं कोरोना की माफिक बहुत तेजी न बढ़े। और इसे बूझने के लिए किसी टेस्टिंग की जरूरत नहीं है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं। इससे वेबसाइट का सहमत होना आवश्‍यक नहीं है। यह सामग्री अभिव्‍यक्ति की स्‍वतंत्रता के तहत विभिन्‍न विचारों को स्‍थान देने के लिए लेखक की फेसबुक पोस्‍ट से साभार ली गई है।)

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